इतिहास

भारत की आज़ादी

१५ अगस्त १९४७ को इन्डिया आज़ाद हुआ था। वह एक अधूरी आज़ादी थी। हम मानसिक रूप से गुलामी की अवस्था में ही जी रहे थे। २६ मई, २०१४ को भारत आज़ाद हुआ। हमने मानसिक गुलामी की जंजीरें तोड़ डाली। प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में सर्वत्र भारत दिखाई पड़ रहा था। ब्रिटेन और अमेरिका के अखबारों ने अन्त अन्त तक मोदी का घोर विरोध किया। लोकसभा चुनाव के पहले ब्रिटेन का प्रमुख अन्तराष्ट्रीय अखबार ‘गार्जियन’ यूरोप, अमेरिका और भारत के भी उन अंग्रेजी अखबारों में शामिल था, जिन्होंने भारतीय मतदाताओं से विभाजनकारी नरेन्द्र मोदी को न चुनने की  सेक्युलर बुद्धिजीवियों की अपीलें जोरदार ढंग से छापी थीं। लेकिन मोदी की भारी जीत के बाद इनके सुर अचानक बदल गये। १८ मई को गार्जियन ने अपने संपादकीय में लिखा – “मोदी की जीत दिखाती है कि अंग्रेज आखिर भारत से चले गए।” पश्चिम के एक और अखबार ने उन्हीं दिनों लिखा – “भारत एक केन्द्रीकृत, बाड़ों में बन्द, सांस्कृतिक रूप से दबा हुआ और पूर्ववर्तियों की तरह अपेक्षाकृत छोटे, अंग्रेजी बोलने वाले संभ्रान्त वर्ग द्वारा शासित देश था, जिसका आम लोगों के प्रति नज़रिया उनको नज़रानें बांटने और उनका फायदा उठाने का तो था, लेकिन सबको साथ लेकर चलने वाला कभी नहीं था।” इस अखबार समेत कई विचारक अब मान रहे हैं कि “नया भारत खैरात नहीं, अवसर और अपनी पहचान चाहता है और यह किसी की धौंस में आने को राजी नहीं है।” चर्चित समाचार वेबसाईट ‘हफ़िंगटन पोस्ट’ में प्रख्यात ब्लागर वामसी जुलुरी ने भाजपा विरोधी पार्टियों के सेक्युलरिज्म को ‘हिन्दुफ़ोबिया’ बताया है और लिखा है कि यह जनादेश जितना सुशासन और विकास के लिये है, उससे कही अधिक इस नए उभरते हुए विचार की घोषणा के लिये भी है कि विश्व में हिन्दू और भारतीय होने का क्या मतलब है; सर्व धर्म समादर और शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व जिसके सभ्यतागत जीवन मूल्य हैं। यह नया रूप १९८०-९० दशक के हिन्दू राष्ट्रवादी उभार से अलग है। भारतीयता का यह बोध उग्र राष्ट्रवाद और अल्पसंख्यकों की लानत-मलामत को तवज्जो नहीं देता, फ़र्जी सेक्युलरवाद और उद्धत राष्ट्रवादी अतिरेक, दोनों को नकारता है। प्रचलित धारणा के उलट भारत के लोगों ने ठीक ही सोचा कि यह चुनाव सेक्युलरिज्म और हिन्दू उग्रवाद के बीच नहीं बल्कि ‘हिन्दूफ़ोबिया’ और ‘भारत सबके लिए’ के बीच है।”

पश्चिमी जगत के अखबारों के ये बदलते स्वर अनायास नहीं हैं। सचमुच भारत की जनता को भी यह विश्वास है कि भारत की सांस्कृतिक विरासत को विश्व में एक नई पहचान देते हुए प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी इसे विकास की नई ऊंचाई प्रदान करेंगे। अगर हम निष्पक्ष समीक्षा करेंगे तो यह पायेंगे कि १९४७ में आज़ादी पाने के बाद भी हम मानसिक रूप से अंग्रेजों के गुलाम रहे। भारत की संसद, सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट की कार्यवाही देखने के बाद क्या कोई विश्वास के साथ कह सकता है कि हम एक आज़ाद देश के वासी हैं। हम भारतवासी अंग्रेजी, अंग्रेज और अंग्रेजियत के इस कदर गुलाम रहे कि एक वंश के शासन को ६० वर्षों तक स्वीकार करते रहे। हद तो तब हो गई जब अंग्रेजों के खिलाफ़ आज़ादी की लड़ाई लड़ने वाली कांग्रेस ने एक आयातित गोरी चमड़ी का नेतृत्व सहज भाव से स्वीकार कर लिया। कांग्रेस के कुशासन से तंग आकर जनता ने एक खांटी देसी व्यक्ति को देश की कमान देकर भारत में कांग्रेस मुक्त राज की कल्पना को साकार किया है। कांग्रेस से मुक्ति पाये बिना सुशासन की कल्पना एक दिवास्वप्न थी। चाटुकारों और स्वार्थी तत्वों ने इस देश के स्वाभिमान को रसातल में पहुंचा दिया है। जनता ने उन्हें नकार दिया। लेकिन अभी भी कई काम अधूरे हैं। चुनाव ने तो राज को कांग्रेस मुक्त बना दिया लेकिन अगर कांग्रेसियों में तनिक भी स्वाभिमान शेष है तो भारत की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी को विदेशी नेतृत्व से मुक्त कराना होगा। वंशवाद की जिस बेल का कांग्रेस ने खाद-पानी देकर ६७ वर्षों से हरा-भरा किया, वह विषबेल अब भाजपा और कम्युनिस्ट पार्टियों को छोड़ सभी पार्टियों को अपनी गिरफ़्त में ले चुकी है। यह विषबेल लोकतंत्र और भारत के लिये भी गंभीर चुनौती है। अच्छे दिन आ गये हैं। हम आशा करते हैं कि हमारे महान राष्ट्र को वंशवाद से भी शीघ्र मुक्ति मिल जायेगी। बिहार ने राह दिखा दी है। अन्यों को सिर्फ़ अनुसरण करना है।

बिपिन किशोर सिन्हा

B. Tech. in Mechanical Engg. from IIT, B.H.U., Varanasi. Presently Chief Engineer (Admn) in Purvanchal Vidyut Vitaran Nigam Ltd, Varanasi under U.P. Power Corpn Ltd, Lucknow, a UP Govt Undertaking and author of following books : 1. Kaho Kauntey (A novel based on Mahabharat) 2. Shesh Kathit Ramkatha (A novel based on Ramayana) 3. Smriti (Social novel) 4. Kya khoya kya paya (social novel) 5. Faisala ( collection of stories) 6. Abhivyakti (collection of poems) 7. Amarai (collection of poems) 8. Sandarbh ( collection of poems), Write articles on current affairs in Nav Bharat Times, Pravakta, Inside story, Shashi Features, Panchajany and several Hindi Portals.

One thought on “भारत की आज़ादी

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छा लेख. वास्तव में १५ अगस्त १९४७ को प्राप्त आज़ादी अधूरी थी. पूरी आज़ादी अभी हासिल करनी है.

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