कविता

रिश्ता

माँ बेटे का रिश्ता

होता है अनमोल

रहता है अहसास माँ को

अपने बेटे के दुःख दर्द का

बेटा चाहे नालायक हो जाये

माँ तब देती है दुआ,

माँ होती है अनमोल

क्यों नहीं समझ पाता है बेटा उसका

क्यों सताता है, लड़ता है उससे

क्यों नहीं समझता उसके दिल का हाल

पर माँ तो माँ ही होती है

बच्चा कही भी हो

उसकी हर आहट की पहचान होती है

बेटा क्यों नहीं समझ पाता

की माँ होती है अनमोल

और जब माँ चली जाती है

तो उसे होता है अहसास,

उसने क्या खो दिया

फिर पछताने  से क्या होता ?

पर भूल गए आज कल के बच्चे

माँ का क़र्ज़ कोई नहीं उतार पाता

ये रिश्ता होता है अनमोल

 

गरिमा लखनवी

दयानंद कन्या इंटर कालेज महानगर लखनऊ में कंप्यूटर शिक्षक शौक कवितायेँ और लेख लिखना मोबाइल नो. 9889989384

2 thoughts on “रिश्ता

  • सविता मिश्रा

    सुन्दर

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कविता. इसी प्रकार लिखती रहो.

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