कविता

हाइकु

रात सहती
प्रसव टहकना
सूर्य ले जन्म ।

टहकना = थोड़ी थोड़ी देर में दर्द उठना

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हो गई रात
रहस्य सूर्यग्रास
गगनांगन ।

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मन उठल्लू
स्वार्थ क्षणिक गांठ
सोच निठल्लू ।

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अनर्थ शब्द
रिश्ता-कश्ती डूबती
हद तोड़ती ।

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बने मकान
समुंद्र पाट देंगे
कचरा भर ।

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दोस्ती दरिया
प्यार शंख-सीपियाँ
धोखा ना रेंगे ।

## या ##

दोस्ती दरिया
धोखा शंख-सीपियाँ
रिश्ता मलिन ।

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तट छू लेती
उत्साहित ऊर्मियाँ
पग फेरती ।

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पत्ते चीखते
ठूंठ नहीं रो पाते
कुचले जाते ।

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*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ

One thought on “हाइकु

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया !

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