गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : दिलों को मिला देती है

Rajiv Chaturvedi जी दादा का एक शेर पढ़ा और पढ़कर बहुत अच्छा लगा और शब्द उतरते चले गये

“जिन हवाओं को हक़ नहीं मिलता है यहाँ ,
आँधियाँ बन कर दरख्तों को हिला देती हैं .” —- राजीव चतुर्वेदी

जलाती हैं तेज धूप में अंगारों पर चलाती हैं ,
जख्म दर जख्म ये हमें कैसा सिला देती हैं .

अंधेरों में जिंदगी होम हुई जाती है अब तो ,
एक हलकी सी चुभन दिल को दहला देती है .

फूट कर निकलते है जब अहसास-जल के स्रोत,
दृढ चट्टानों को भी जलजलों से हिला देती है .

है बेगानी भीड़ यहाँ गिरकर संभलना मुश्किल,
एक हमदर्दी सी कहन फूलों सा खिला देती हैं .

चाहतों का भी अपना एक अलग ही है मज़ा ,
दिल की दीवार तोड़ दो दिलों को मिला देती हैं .

One thought on “ग़ज़ल : दिलों को मिला देती है

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया.

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