कविता

माँ

वो जो टूटे
छत के नीचे,
कचरोँ के ढेर से जलते चूल्हे
मेँ एक पुराना
पीतल का
पतीला रखकर
उबलते पानी को,
बनता भोजन बताती है।
काम के बहाने
फटे वसनोँ मे ही
लकडियां बीनने जंगल
को जाती है।
चंद भिक्षा मेँ मिले
चाँवल के दानोँ को
पीसकर,
दूध बता अपने बेटे
को पिलाती है।
जो अकेली है पर
बच्चे की खातिर
कमजोर नहीँ,
समाज की
दुर्भावनाओँ
को लाख बार
झेलती
पर चुपचाप ही सहती
है,
अपने लाल को
भूखे पेट
जब नीँद नहीँ आती
तो
मीठी कहानियोँ
का घोल
पिला पेट
भरकर सुलाती है,
मैँ उस माँ को
अपने हृदय की अनंत गहराईयोँ से
अनंत बार नमन करता हूँ
कि वो मेरी माँ है…!

_____सौरभ कुमार दुबे

सौरभ कुमार दुबे

सह सम्पादक- जय विजय!!! मैं, स्वयं का परिचय कैसे दूँ? संसार में स्वयं को जान लेना ही जीवन की सबसे बड़ी क्रांति है, किन्तु भौतिक जगत में मुझे सौरभ कुमार दुबे के नाम से जाना जाता है, कवितायें लिखता हूँ, बचपन की खट्टी मीठी यादों के साथ शब्दों का सफ़र शुरू हुआ जो अबतक निरंतर जारी है, भावना के आँचल में संवेदना की ठंडी हवाओं के बीच शब्दों के पंखों को समेटे से कविता के घोसले में रहना मेरे लिए स्वार्गिक आनंद है, जय विजय पत्रिका वह घरौंदा है जिसने मुझ जैसे चूजे को एक आयाम दिया, लोगों से जुड़ने का, जीवन को और गहराई से समझने का, न केवल साहित्य बल्कि जीवन के हर पहलु पर अपार कोष है जय विजय पत्रिका! मैं एल एल बी का छात्र हूँ, वक्ता हूँ, वाद विवाद प्रतियोगिताओं में स्वयम को परख चुका हूँ, राजनीति विज्ञान की भी पढाई कर रहा हूँ, इसके अतिरिक्त योग पर शोध कर एक "सरल योग दिनचर्या" ई बुक का विमोचन करवा चुका हूँ, साथ ही साथ मेरा ई बुक कविता संग्रह "कांपते अक्षर" भी वर्ष २०१३ में आ चुका है! इसके अतिरिक्त एक शून्य हूँ, शून्य के ही ध्यान में लगा हुआ, रमा हुआ और जीवन के अनुभवों को शब्दों में समेटने का साहस करता मैं... सौरभ कुमार!

2 thoughts on “माँ

  • विजय कुमार सिंघल

    माँ का महत्त्व वही जानते हैं जो माँ से गहरे रूप में जुड़े हुए होते हैं. माँ से बड़ा संसार में कोई नहीं है. इस कविता में माँ के महत्त्व को अच्छी तरह दिखाया गया है.

  • प्रशान्त विप्लवी

    माँ पर लिखी गई कविता हमेशा ही टीस दे जाती है …अच्छी कविता …

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