कविता

***मैँ मध्यप्रदेश हूँ ***

मैँ भारत माता का हृदय हूँ,
सत्य सार्थक की विजय हूँ,

ग्वालियर का राजभवन मै, उज्जैनी का महाकाल हूँ,
राजाओँ की नगरी इंदौरी ठाट बाट का भोपाल हूँ।

खजुराहो का शिल्प महान फिर, बाँधवगढ का शेर हूँ,
कभी शीतल जल का धुँआधार मैँ, खेतोँ की मीठी बेर हूँ।

नर्मदे की कल कल धारा, शिप्रा का मैँ अविरल जल,
निमाड, मालवा, बुंदेलखंड मुझमे ही बसता है चंबल।

सागर, सतना, रीवा, पन्ना मेरे आँचल के कुछ फूल,
सिँध, बेतवा, तवा, ताप्ति महकाती धरती की धूल।

वीरोँ की गाथाओँ से है भरा पडा मेरा इतिहास,
नित नव नूतन उमंग है और जीवन का नया उल्लास।

सतपुडा, महादेव, पचमढी के पर्वत मेरा मान बढाते हैँ,
किसान बोते सोया, गेहूँ पहले माँ को चढाते है।

मैँ धर्मस्थल, कर्मस्थल मैँ ही भारत का कृषिप्रधान,
भूल गये तो याद करो फिर मुझको मिलता नित सम्मान।

मेरा जन जन बढकर आगे भारत का गर्व बढाएगा ,
मुझको तो है यही आस वह विश्वविजय कर जाएगा।

मैँ उदय कर राष्ट्र भावना, समुचित करता सारे उद्देश हूँ।
जन जन के मैँ हित की भूमि भारत का मैँ मध्यप्रदेश हूँ।।

______सौरभ कुमार दुबे

सौरभ कुमार दुबे

सह सम्पादक- जय विजय!!! मैं, स्वयं का परिचय कैसे दूँ? संसार में स्वयं को जान लेना ही जीवन की सबसे बड़ी क्रांति है, किन्तु भौतिक जगत में मुझे सौरभ कुमार दुबे के नाम से जाना जाता है, कवितायें लिखता हूँ, बचपन की खट्टी मीठी यादों के साथ शब्दों का सफ़र शुरू हुआ जो अबतक निरंतर जारी है, भावना के आँचल में संवेदना की ठंडी हवाओं के बीच शब्दों के पंखों को समेटे से कविता के घोसले में रहना मेरे लिए स्वार्गिक आनंद है, जय विजय पत्रिका वह घरौंदा है जिसने मुझ जैसे चूजे को एक आयाम दिया, लोगों से जुड़ने का, जीवन को और गहराई से समझने का, न केवल साहित्य बल्कि जीवन के हर पहलु पर अपार कोष है जय विजय पत्रिका! मैं एल एल बी का छात्र हूँ, वक्ता हूँ, वाद विवाद प्रतियोगिताओं में स्वयम को परख चुका हूँ, राजनीति विज्ञान की भी पढाई कर रहा हूँ, इसके अतिरिक्त योग पर शोध कर एक "सरल योग दिनचर्या" ई बुक का विमोचन करवा चुका हूँ, साथ ही साथ मेरा ई बुक कविता संग्रह "कांपते अक्षर" भी वर्ष २०१३ में आ चुका है! इसके अतिरिक्त एक शून्य हूँ, शून्य के ही ध्यान में लगा हुआ, रमा हुआ और जीवन के अनुभवों को शब्दों में समेटने का साहस करता मैं... सौरभ कुमार!

One thought on “***मैँ मध्यप्रदेश हूँ ***

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया कविता. मुझे मध्य प्रदेश ज्यादा देखने का मौका नहीं मिला. उज्जैन और जबलपुर गया हूँ बस. पचमढ़ी जाना चाहता हूँ.

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