कविता

दौर हैं बदल रहे…

आज अचानक से जहन में एक महान साहित्यकार, कवि, ग़ज़लकार ‘दुष्यंत कुमार’ की एक पंक्ति आ गयी. उस ग़ज़ल की उस पंक्ति को अपनी जुबान से अगर मैं बोल भी लेता हूँ तो मेरे रोंगटें खड़े हो जातें हैं. वो सदाबहार पंक्ति है, ‘हो गई है पीर पर्बत सी पिघलनी चाहिए, इस हिमालय से कोई गंगा निकालनी चाहिए’. मैं दुष्यंत कुमार के पैरों की धुल भी नहीं हूँ. और न कभी भी उनके बराबर खड़ा हो सकता हूँ आज वह हमारे बीच में नहीं है, पर प्रेरणा हैं हम जैसों के लिए. मैं माफ़ी चाहता हूँ हर उस शक्स से जो मेरी इस गुस्ताखी को पढेगा. पर मैं अपने को रोक नहीं पा रहा हूँ, मैं आज इस ग़ज़ल में कुछ पंक्तियाँ जोड़ रहा हूँ. ये पंक्तियाँ जोड़ने से यह ग़ज़ल मेरी न हो जायेगी, रहेगी ये उस महान व्यक्तित्त्व कि ही जिसने इसकी नींव को रखा है. मैं एक बार फिर से सबसे माफ़ी मांगना चाहता हूँ. पंक्तियाँ इस प्रकार हैं.

 

दौर हैं बदल रहे, पुराने से नए की ओर

बंद थी, जो अब तलक, किस्मत वो खुलनी चाहिए.

 

रोक लें गर, हम किसी को दलदल-ए-अपराध से

एक सुर में, ये हवा चहुं ओर बढ़नी चाहिए.

 

रौशनी जो छिप गई थी, बादलों की आड़ में

फिर से जीवन बनके हर इंसा पे पड़नी चाहिए.

 

हर कहीं, हर ओर हरसू, चल पड़ी है जो लहर

चल पड़ी जो अब है तो कभी न थमनी चाहिए.

 

आम आदमी उठ खड़ा हुआ है, बदलाव को

झंझावत से आस की, ज्वाला न बुझनी चाहिए.

अश्वनी कुमार

अश्वनी कुमार, एक युवा लेखक हैं, जिन्होंने अपने करियर की शुरुआत मासिक पत्रिका साधना पथ से की, इसी के साथ आपने दिल्ली के क्राइम ओब्सेर्वर नामक पाक्षिक समाचार पत्र में सहायक सम्पादक के तौर पर कुछ समय के लिए कार्य भी किया. लेखन के क्षेत्र में एक आयाम हासिल करने के इच्छुक हैं और अपनी लेखनी से समाज को बदलता देखने की चाह आँखों में लिए विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में सक्रीय रूप से लेखन कर रहे हैं, इसी के साथ एक निजी फ़र्म से कंटेंट राइटर के रूप में कार्य भी कर रहे है. राजनीति और क्राइम से जुडी घटनाओं पर लिखना बेहद पसंद करते हैं. कवितायें और ग़ज़लों का जितना रूचि से अध्ययन करते हैं उतना ही रुचि से लिखते भी हैं, आपकी रचना कई बड़े हिंदी पोर्टलों पर प्रकाशित भी हो चुकी हैं. अपनी ग़ज़लों और कविताओं को लोगों तक पहुंचाने के लिए एक ब्लॉग भी लिख रहे हैं. जरूर देखें :- samay-antraal.blogspot.com

2 thoughts on “दौर हैं बदल रहे…

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत खूब ! आपने दुष्यंत कुमार जी की एक ग़ज़ल का काफिया लेकर बढ़िया पंक्तियाँ लिखी हैं. इसमें कोई बुराई नहीं है. आपकी भावनाएं अच्छी हैं.

    • अश्वनी कुमार

      मैं आभारी हूँ आपका….धन्यवाद!!!

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