कविता

मैंने हार नहीं मानी है

मैंने हार नहीं मानी है
ये रण जीतने की ठानी है

क्षण क्षण ऐसे बीता है
जैसे जीवन घट रीता है
हारी है दुर्भावनाएं सारी
बस मन का साहस ही जीता है
अब पीछे भूल से हट जाना भी
सपनो के संग बेमानी है,
मैंने हार नहीं मानी है 

पथ मेरा अविरल अटल रहा
आँखों में ना कायरता का जल रहा
सदैव प्रेरणा देता जीवन मुझको
मैं भले गिरा और विफल रहा
पर फिर फिर उठ उठकर
मैंने भी साहस की कीमत पहचानी है
मैंने हार नहीं मानी है

____सौरभ कुमार दुबे

सौरभ कुमार दुबे

सह सम्पादक- जय विजय!!! मैं, स्वयं का परिचय कैसे दूँ? संसार में स्वयं को जान लेना ही जीवन की सबसे बड़ी क्रांति है, किन्तु भौतिक जगत में मुझे सौरभ कुमार दुबे के नाम से जाना जाता है, कवितायें लिखता हूँ, बचपन की खट्टी मीठी यादों के साथ शब्दों का सफ़र शुरू हुआ जो अबतक निरंतर जारी है, भावना के आँचल में संवेदना की ठंडी हवाओं के बीच शब्दों के पंखों को समेटे से कविता के घोसले में रहना मेरे लिए स्वार्गिक आनंद है, जय विजय पत्रिका वह घरौंदा है जिसने मुझ जैसे चूजे को एक आयाम दिया, लोगों से जुड़ने का, जीवन को और गहराई से समझने का, न केवल साहित्य बल्कि जीवन के हर पहलु पर अपार कोष है जय विजय पत्रिका! मैं एल एल बी का छात्र हूँ, वक्ता हूँ, वाद विवाद प्रतियोगिताओं में स्वयम को परख चुका हूँ, राजनीति विज्ञान की भी पढाई कर रहा हूँ, इसके अतिरिक्त योग पर शोध कर एक "सरल योग दिनचर्या" ई बुक का विमोचन करवा चुका हूँ, साथ ही साथ मेरा ई बुक कविता संग्रह "कांपते अक्षर" भी वर्ष २०१३ में आ चुका है! इसके अतिरिक्त एक शून्य हूँ, शून्य के ही ध्यान में लगा हुआ, रमा हुआ और जीवन के अनुभवों को शब्दों में समेटने का साहस करता मैं... सौरभ कुमार!

4 thoughts on “मैंने हार नहीं मानी है

  • सौरव जी , ऐसा लगता है जैसे यह कविता मेरे लिए लिखी गई है किओंकि optimisum ही मेरा जीवन का लक्ष्य है जिस के सहारे आज मैं जिंदा हूँ .

  • सौरभ कुमार दुबे

    ji abhar ji

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी कविता, भावनाएं भी श्रेष्ठ हैं. मन के हारे हार है, मन के जीते जीत !

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