गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : जिन्हें दिल में अब हम बसाने लगे थे

जिन्हें दिल में अब हम बसाने लगे थे

वो ही दूर अब हम से जाने लगे थे…

 

जो कहते थे आँखें तेरी हम बनेंगे

वही हम से नज़रें चुराने लगे थे…

 

थी उनको जिन भी रकीबों से नफरत

उन्हें को वो अपना बताने लगे थे…

 

जिन पर यकीं था खुद से भी ज्यादा

वही झूठा कहकर बुलाने लगे थे…

 

जो सोचा नहीं था ख़्यालों में हमने

उसे सोच-सोच कर घबराने लगे थे…

 

न मांगी ख़ुदा से थी उसकी ख़ुदाई

क्यों ख़ुदा भी अब हमको भुलाने लगे थे…

 

जो मिलते थे सहरा में साहिल पे ‘आशू’

वही मिलने में अब कतराने लगे थे…

-अश्वनी कुमार

अश्वनी कुमार

अश्वनी कुमार, एक युवा लेखक हैं, जिन्होंने अपने करियर की शुरुआत मासिक पत्रिका साधना पथ से की, इसी के साथ आपने दिल्ली के क्राइम ओब्सेर्वर नामक पाक्षिक समाचार पत्र में सहायक सम्पादक के तौर पर कुछ समय के लिए कार्य भी किया. लेखन के क्षेत्र में एक आयाम हासिल करने के इच्छुक हैं और अपनी लेखनी से समाज को बदलता देखने की चाह आँखों में लिए विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में सक्रीय रूप से लेखन कर रहे हैं, इसी के साथ एक निजी फ़र्म से कंटेंट राइटर के रूप में कार्य भी कर रहे है. राजनीति और क्राइम से जुडी घटनाओं पर लिखना बेहद पसंद करते हैं. कवितायें और ग़ज़लों का जितना रूचि से अध्ययन करते हैं उतना ही रुचि से लिखते भी हैं, आपकी रचना कई बड़े हिंदी पोर्टलों पर प्रकाशित भी हो चुकी हैं. अपनी ग़ज़लों और कविताओं को लोगों तक पहुंचाने के लिए एक ब्लॉग भी लिख रहे हैं. जरूर देखें :- samay-antraal.blogspot.com

One thought on “ग़ज़ल : जिन्हें दिल में अब हम बसाने लगे थे

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह ! वाह !! बहुत खूब ! अच्छी ग़ज़ल.

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