लघुकथा

पुण्यात्मा

उसने पहले दिन ही बता दिया था अपनी सौतेली माँ को कि ये शादी बाप ने ऐय्याशी के लिए की है, उनके बच्चे पूर्णतः बालिग़ हैं और अपना ख्याल रख सकते हैं।
धनेसर वाकई सठिया गया था , बेटी का वर ढूंढते-ढूंढते अपने लिए बीवी ढूंढ लाया। बीवी एकदम उम्र में कच्ची, बीस-इक्कीस से ज्यादा बिलकुल भी नहीं। बेटी की उम्र पच्चीस पार कर रही है। बेटा भी पूरे अट्ठाइस साल का नौजवान है, बाप के करतूत से बहुत आहत है , शर्म से घर में घुसा पड़ा है। लोग निकलते ही चिढ़ाने लगेगें।
दोपहर तक मोहल्ले वालों की आवाजाही लगी रही, धनेसर मुँह छुपाये किसी कोने में पड़ा रहा। बेटी किसी कोने में फफक-फफक कर रोती रही। धनेसर एक ही बात रटे जा रहा था कि किसी गरीब की बेटी का उद्धार किया है, ये कोई पाप नहीं। धनेसर की बहन दूसरे गाँव से आ धमकी है उसे सिर्फ एक जोड़ी साडी से मतलबहै।
धनेसर की बहन शाम से पहले ही दुल्हे-दुल्हन की कोठरी और बिछावन तैयार कर आई। दुल्हन का हाथ पकड़कर सेज़ पर बिठा आई। शाम ढलते ही धनेसर उस कोठरी की तरफ बढ़ा मगर बहन उसी की बाट जोह रही थी। धनेसर को समझते देर नहीं लगा उसने झट सौ का नोट बहन की ओर बढ़ाया, बहन रास्ते से हट गई। धनेसर आगे बढ़ा, इस बार बेटा सामने खड़ा था।
” पिता जी, आप जैसे पुण्यात्मा का मैं बहुत आदर करता हूँ। एक गरीब की लड़की से शादी कर आपने उद्धार कर दिया। किन्तु मैं जानता हूँ आप जैसे लोगों के लिए इतना पुण्य पर्याप्त नहीं है। आज आप जीवन के सारे निकृष्ट पापों से मुक्त हो जायेंगे।”
धनेसर बेटे के तेवर से काफी भयभीत था फिर भी डरते हुए पूछा, “क्या चाहते हो तुम ?”
बेटे ने धनेसर के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, ” आपको पाप मुक्त करना चाहता हूँ।”
धनेसर बोला, “वो कैसे?”
“पिताजी, आज आपको दो कन्यादान करने हैं …..एक आप अपनी बेटी का और दूसरी उस गरीब की बेटी का। मैंने सारा इंतज़ाम कर दिया है ….दोनों के शादी का।”
धनेसर उस कोठरी से दूर चला गया .था , उसके पैर लड़खड़ा रहे थे। धनेसर की बहन हतप्रभ थी , धनेसर का बेटा मुस्कुरा रहा था।
कुछ देर बाद ही लोगों की भीड़ बढ़ने लगी …शहनाई बजने लगी, पूरा आँगन गीत गाने वाली महिलाओं से भर गया, बच्चे ऊधम मचा रहे थे।
-प्रशांत विप्लवी-

3 thoughts on “पुण्यात्मा

  • मंजु मिश्रा

    Very nice !!

  • ऐसे बेटे को मैं दाद देता हूँ , काश इस कहानी से किसी किसी मजबूर कन्या का उद्धार हो जाए . बहुत अच्छी कहानी है .

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी लघु कथा. एक विकट समस्या का सही समाधान सुझाती है यह.

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