स्वास्थ्य

हंसी, हर मर्ज़ की एक दवा है

 ( पहले देखिए  1-शाँति, सबके लिए   और 2- सेहत, सबके लिए  और 3- अमीरी सबके लिए और 4-अपने जीवन को बदलिए, सिर्फ़ एक दिन में)

1. आपका ऑक्सीजन लेवल बढ़ेगा।
2. आपका तनाव घटेगा।
3. आपको शान्ति मिलेगी।
4. आपका इम्यून सिस्टम मज़बूत होगा।
5. आपके रोग मिट जाएंगे।
6. आपके शोक मिट जाएंगे।
7. आपकी आमदनी और दौलत बढ़ेगी।
8. आप सलामत रहेंगे।
9. आपकी लम्बी उम्र तक जिएंगे।
10. आप रचनात्मक काम करेंगे।
11. रचनात्मक काम आपको रिश्तेदारों, दोस्तों और समाज में लोकप्रिय बना देंगे।
12. आपके वैवाहिक सम्बंधों में मधुरता बढ़ जाएगी।
13. आपका जीवन प्रेम से भर जाएगा।
14. आपके जीवन के सभी पहलुओं में आपको सफलता मिलेगी।
15. …और इससे भी ज़्यादा बहुत कुछ और भी मिलेगा।

आपके अन्दर आज भी एक बच्चा है। हरेक आदमी के अन्दर एक बच्चा है। वही बच्चा इन्सान का असली स्वरूप है। जब आप किसी बच्चे को देखते हैं तो दरहक़ीक़त आप अपने अन्दर के स्वरूप को बाहर देखते हैं। आपको पल भर के लिए कुछ होने लगता है लेकिन आपको पता नहीं होता कि आपको क्या हो रहा है?
बाहर की हर चीज़ एक मिसाल है जो कुछ समझाती है। बाहर की हरेक चीज़ किसी न किसी चीज़ की याद दिलाती है। बच्चा आपको आपकी याद दिलाता है। जब आप इस दुनिया में आए थे तो बच्चा बनकर ही आए थे। जब आपको यह याद आ जाता है, जब आप जान लेते हैं कि आपके अन्दर आज भी एक बच्चा मौजूद है तो आप एक महान सत्य को पा लेते हैं।
जब आप बच्चे की तरह फ़ील करते हैं तो आपकी शख्सियत पर निखरने लगती है। दुख-दर्द, घुटन, निराशा, चिंता, डर और सन्देह के भाव सब विलीन हो जाते हैं। ये जाते हैं तो आपका रोग, शोक और क्रोध सब चला जाता है। इन्हीं के कारण आपका चेहरा उदास रहता था, इन्हीं के कारण आप बीमार रहते थे। आप इनसे मुक्ति पाने में ख़ुद को बेबस महसूस करते थे। यही बेबसी आपके अन्दर आक्रोश और क्रोध को पैदा करती थी। आप दिन भर ग़ुस्से से या तो अन्दर ही अन्दर भुनभुनाते रहते थे या फिर बर्दाश्त से बाहर हुआ तो लोगों पर बरस पड़ते थे। आप चिड़चिड़े और ग़ुस्सैल मशहूर हो चुके थे। लोग आपसे बचने लगे थे कि यह आदमी जाने कब क्या कह दे?
घर के लोग भी आपके साथ अपना समय बिताना पसन्द नहीं करते थे। आप देखते थे कि घर के सब लोग आपस में घुल-मिल कर हंस रहे हैं, बतिया रहे हैं लेकिन जैसे ही आप घर में दाखि़ल हुए तो सब तित्तर-बित्तर हो गए। आपने समझा कि सब लोग आपका लिहाज़ करते हैं, आपके आदर में सब ऐसा करते हैं। नहीं, ऐसा नहीं था, सब आपसे दामन बचाते थे। वे आपसे केवल तब बात करते थे जबकि बात किए बिना कोई चारा नहीं रह जाता था। जैसे कि किसी नए कोर्स में एडमिशन लेना है और रक़म दरकार होता था, जैसे कि नए मॉडल का कोई व्हीकल चाहिए और आपसे मोटा माल चाहिए होता था। ये ज़रूरतें न हों तो आपके बच्चे अपना समय अपने दोस्तों में बिताते हैं या फिर वहां जहां कि लोग हंसते-मुस्कुराते हों।
‘हंसते के साथ दुनिया है और रोते के साथ कोई नहीं’ यह कहावत मशहूर है। अब आप बच्चे हैं। अब आप हंस सकते हैं। अब आपके साथ दुनिया है और सबसे पहले घर की दुनिया आपके साथ है। यह आपके जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है।
अगर एक आदमी बहुत बड़ा लीडर है, उसका भाषण सुनने के लिए दूर दूर से लोग आते हैं और लाखों लोग आते हैं लेकिन उसके बीवी-बच्चे नहीं आते। वह घर जाता है तो भी उसकी बीवी के चेहरे पर वह मुस्कुराहट नहीं आती जो कि दिल की गहराई से आती है। उसके बच्चे उससे आकर नहीं लिपटते तो उसकी सारी क़ाबिलियत और सारी मेहनत से उसे वह हासिल ही नहीं हुआ जो कि उसके अस्तित्व की पुकार है और जो कि उसे स्वभाव से ही सिद्ध हो जाना चाहिए था। वह अपने घर में एक तिरस्कृत व्यक्ति है। नेता हो, सेठ हो, कलाकार हो या फिर किसान-मज़दूर हो, सब इस तिरस्कार को, अपनों के तिरस्कार की पीड़ा को झेल रहे हैं। ये लोग समाज में बड़े कहलाते हैं।
…लेकिन जब आप हंसते हैं तो फिर आपको वह मिलता है जिससे कि समाज के बड़े महरूम हैं। छोटा बनकर सब कुछ मिलता है और बड़ा बनकर सब जाता रहता है। वास्तव में बड़ाई यहां किसी इन्सान के लिए नहीं है बल्कि बड़ाई केवल एक ईश्वर अल्लाह के लिए है।
हंसी आपके लिए अमृत है। जब आप हंसते हैं तो आप उदास और मायूस नहीं रह सकते, आप तनाव में नहीं रह सकते। आपकी 95 प्रतिशत बीमारियों के पीछे आपका तनाव है। आपके हंसते ही आपका तनाव अपना वुजूद खो देता है और आपकी बीमारियां भी। आपकी हंसी बेस्ट मेडिसिन है। आप हंस सकते हैं तो आपको किसी दवा की ज़रूरत नहीं है।
नॉर्मन कझिन्स का वाक़या मशहूर है कि उसे कैंसर हो गया। उसके डॉक्टर ने उससे कह दिया कि अब तुम्हारा बचना मुमकिन नहीं है। नॉर्मन कझिन्स ने तय किया कि अब थोड़ा सा जो जीवन बचा है, क्यों न उसे हंसते हुए गुज़ारा जाए। लिहाज़ा वह 3 महीने तक हंसी-मज़ाक़ की फ़िल्में और टी. वी. शो देखता रहा। 3 माह बाद उसके शरीर में कैंसर का कोई लक्षण बाक़ी न बचा था।
हंसने से आदमी खुलकर सांस लेता है। जिससे वह पहले से ज़्यादा ऑक्सीजन ले पाता है। हंसने से उसका तनाव मिट जाता है। तनाव मिटने से बॉडी की सेल्स खुल जाती हैं और वे ऑक्सीजन को लेने लगती हैं। ऑक्सीजन की 35 प्रतिशत कमी बॉडी की सेल्स को कैंसर सेल्स में बदल देता है और ऑक्सीजन की पूर्ति कैंसर सेल्स को नष्ट कर देती है।
आदमी तनाव में भी सांस लेता है लेकिन तनाव में नर्वस सिस्टम ‘फ़ाइट ओर फ़्लाइट मोड’ पर सैट होता है। जिसमें बॉडी की सेल्स को क्लोज़ कर दिया जाता है और ऑक्सीजन व ग्लूकोज़ की सप्लाई ख़ून में दे दी जाती है। जिससे कि वह जो भी करे ज़बर्दस्त शक्ति के साथ करे।
मिसाल के तौर पर गांव के लोग खेत जाते हैं। वे काम करते हुए देखते हैं कि अचानक एक तरफ़ से भेड़िया निकल सामने आ खड़ा हुआ है। अब यह एक तनाव पैदा करने वाली हालत है, जिसमें इन्सान की जान को ख़तरा है। ऐसे में नर्वस सिस्टम ‘फ़ाइट ओर फ़्लाइट मोड’ पर सैट होता है। जिससे ख़ून में ऑक्सीजन और ग्लूकोज़ का लेवल बढ़ जाता है और भेड़िया देखने के बाद आदमी उस पर हमला करेगा तो उसे अपने अंदर ज़बर्दस्त शक्ति का अहसास होगा और अगर वह भागेगा तो वह आम दिनों के मुक़ाबले ज़्यादा तेज़ी से भाग सकेगा।
यह ईश्वर अल्लाह की विशेष कृपा है। जिसके लिए हम जितने ज़्यादा शुक्रगुज़ार हों, कम है। यह जीवन रक्षा कवच है। इस ताक़त के बल पर इन्सान बड़ी से बड़ी मुसीबत से पार पा लेता है लेकिन आज के इन्सान के सामने एक बड़ी प्रॉब्लम खड़ी हो गई है।
एक देहाती किसान भेड़िए से निपटने के बाद जब शांत हो जाता है तो उसका नर्वस सिस्टम ‘फ़ाइट ओर फ़्लाइट मोड’ से हटकर फिर से नॉर्मल मोड पर काम करने लगता है और शरीर की कोशिकाएं जो कि तनाव की हालत में बन्द पड़ गई थीं, उन्हें फिर से ऑक्सीजन मिलने लगती है। जिससे वे अपने अन्दर के टॉक्सिन्स को बाहर निकालकर ख़ुद को पाक साफ़ करती हैं और अपने ज़रूरी काम अंजाम देती हैं।
आज के इंसान के सामने प्रॉब्लम यह है कि वह देहाती किसान की तरह कभी शांत नहीं हो पाता। नए दौर का इंसान हर वक्त तनाव से घिरा हुआ है। उसके शरीर की कोशिकाएं बन्द रहती हैं। उन्हें टॉक्सिन्स बाहर निकालने और अपने काम अंजाम देने के लिए ऑक्सीजन नहीं मिल पाती। लिहाज़ा उनमें बिगाड़ आने लगता है और जिस आदमी के बदन का जो हिस्सा सबसे ज़्यादा कमज़ोर होता, वह सबसे पहले बर्बाद होता है।
जब आदमी हंसता है तो उसका तनाव दूर हो जाता है और आपके शरीर की कोशिकाएं ओपन हो जाती हैं। वे ऑक्सीजन ग्रहण करने की हालत में आ जाती हैं। जब तक वे ओपन न हो जाएं तब तक ऑक्सीजन आपके ख़ून के साथ घूमती रहेगी लेकिन उसे सेल्स ग्रहण नहीं करेंगी। इसलिए शरीर में ऑक्सीजन का लेवल बढ़ाना ही काफ़ी नहीं है बल्कि सेल्स का ओपन होना भी ज़रूरी है। आपकी हंसी आपके ऑक्सीजन लेवल को भी बढ़ाती है और आपकी कोशिकाओं को भी ओपन करती है। तब वे ऑक्सीजन लेती हैं और ख़ुद को पाक-साफ़ करके अपना काम अंजाम देती हैं।
इन्सानी बदन की हरेक कोशिका ख़ुद को पाक-साफ़ करती है और अपना काम जानती है लेकिन इन्सान इन दोनों से ग़ाफ़िल है। एक गोद का बच्चा भी जब पेशाब-पाख़ाने की गंदगी महसूस करता है तो वह रोता है ताकि उसकी मां उसे पाक-साफ़ कर दे। बच्चे के रोने का कारण गंदगी है। इन्सान के दुख का कारण भी गंदगी है। शरीर की स्थूल गंदगी से ज़्यादा दुख देने वाली चीज़ मन की सूक्ष्म गंदगी है।
बच्चे के मन में गंदगी नहीं होती। वह किसी से बैर-विरोध नहीं रखता। वह किसी से जलन-कुढ़न नहीं रखता। वह किसी का बुरा नहीं चाहता। वह किसी से इंतेक़ाम नहीं लेना चाहता। उसके शरीर से मल निकल जाए, उसके लिए बस इतना ही काफ़ी है। जब आप ख़ुद को बच्चा महसूस करें तो आपके लिए भी इतना ही काफ़ी होना चाहिए। आपका मन भी बच्चे की तरह निर्मल होना चाहिए।
जब आप अपने मन को निर्मल करते हैं तो आप महज़ एक महीने बाद ही देख सकते हैं कि आपकी स्किन बच्चे की तरह मुलायम होती चली जा रही है। यह एक बड़ा लक्षण है। जिससे आप जान लेंगे कि आपको अपनी साधना का पूरा फ़ायदा मिल रहा है। जब आप इसे लगातार करते रहेंगे तो आपके चेहरा बच्चे की तरह भोला और मासूम नज़र आने लगेगा।
सब कुछ बिल्कुल आसान और पूरी तरह वैज्ञानिक है।

4 thoughts on “हंसी, हर मर्ज़ की एक दवा है

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छा लेख डाक्टर साहब,

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    अनवर भाई , बहुत अच्छा लिखा है , आप दरुसत फरमाते हैं कि हँसना बहुमूल्य है . जो हंस सके उस जैसा भाग्यशाली हो ही नहीं सकता . लेकिन दुःख की बात यह है कि आज के समय में इंसान इतना ज़िमेदारिओं के बोझ से दब्बा हुआ है कि उसे हंसी आती ही नहीं . ऊपर से टीवी के सीरीअल इतने बुरे कि टीवी के सामने बैठे बैठे रो रहे होते हैं . सच मानों मैं कई वर्षों से टीवी सीरीअल देखे ही नहीं . मैं सिर्फ कॉमेडी शो ही देखता हूँ . जिस को हंसी आ सके बहुत अच्छी बात है और आप को इस आर्टीकल के लिए वधाई .

    • लेख पसंद करने के लिये शुक्रिया. आपका ज़िक्रे खैर बहन लीला तिवानी से सुना था, आज मिल भी लाइ. हक़ीक़त यही है कि इंसान लगातार ऐसी चीज़ें देखता है जिनकी छाप उसके मन को दुख देती है और फिर वह दुख उसके जीवन में और ज़्यादा प्रबल हो जाता है. हरेक आदमी केवल ‘शान्ती और प्रेम’ के भाव रखे और हंसे-मुस्कुराये. 6 महीने में उसके दुख कम हो जायेंगे और ज़्यादा अक़्लमंदी से प्रयोग किया तो खतम ही हो जायेंगे. अगर हम अपने बच्चों को ऐसे जीना सीखा पाते हैं तो हम अपने बच्चों का सबसे ज़्यादा भला करते हैं. जो कुछ आसपास चल रहा है उस सोच और अमल से अपने परिवार को बचाना बहुत ज़रूरी है. फिर परिवार के किसी सदस्य का आपरेशन नहीं होगा और न ही वे कभी किसी दुर्घटना के . होंगे.

      जो भाव हम रखते हैं वही हम देते हैं और जो हम देते हैं वह कई गुना होकर हमारी तरफ ही लौटता है.

      यह प्रकृति का नियम है. हमें इस नियम से लाभ उठना चाहिये न कि नुक़सान.

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