कविता

****पाखंड का नाश करें****

आओ पाखंड का नाश करें
जड़ से इसे विनाश करें

भवजल में फंसे हुए साथी
जो आगे बढ़ ना पाये हैं
उन्होंने कपोल कल्पना के
भगवान सदा बिठाये हैं
हर ठौर ठौर पर कोई इंसान 
लूट रहा है भक्ति को
चुरा रहा सामर्थ्य हमारा
ह्रदय विराजित शक्ति को
धर्मपथ धुंधलाता जाता
आओ इसे प्रकाश करें
पाखंड का नाश करें
जड़ से इसे विनाश करें!!

तुम सत्य सनातन के अनुयायी
राम कृष्ण की पूजा करते
सीता राधा को माता कहते
फिर काम क्यों दूजा करते
श्रद्धा विश्वास में केवल बह जाते
इस चक्रव्यूह को समझ ना पाते
हो मानव मानव के आगे
किस अधिकार से शीश झुकाते
आओ अपने अंतर से पूछें
कहाँ हरिहर वास करें
पाखंड का नाश करें
जड़ से इसे विनाश करें!!

दुविधाएं आती हैं आएं
धर्म द्रोह हम नहीं सहेंगे
मानव को मानव समझेंगे
इसे राम न कृष्ण कहेंगे
पथ उजियारा आज करेंगे
प्राणो में नवक्रांति भरेंगे
सत्य सनातन को पूजेंगे
दुःख क्लेश हमारे स्वतः हरेंगे
कण कण से पूछो क्षण क्षण से
क्यों ना उठें प्रयास करें
पाखंड का नाश करें
जड़ से इसे विनाश करें!!

______________सौरभ कुमार दुबे

सौरभ कुमार दुबे

सह सम्पादक- जय विजय!!! मैं, स्वयं का परिचय कैसे दूँ? संसार में स्वयं को जान लेना ही जीवन की सबसे बड़ी क्रांति है, किन्तु भौतिक जगत में मुझे सौरभ कुमार दुबे के नाम से जाना जाता है, कवितायें लिखता हूँ, बचपन की खट्टी मीठी यादों के साथ शब्दों का सफ़र शुरू हुआ जो अबतक निरंतर जारी है, भावना के आँचल में संवेदना की ठंडी हवाओं के बीच शब्दों के पंखों को समेटे से कविता के घोसले में रहना मेरे लिए स्वार्गिक आनंद है, जय विजय पत्रिका वह घरौंदा है जिसने मुझ जैसे चूजे को एक आयाम दिया, लोगों से जुड़ने का, जीवन को और गहराई से समझने का, न केवल साहित्य बल्कि जीवन के हर पहलु पर अपार कोष है जय विजय पत्रिका! मैं एल एल बी का छात्र हूँ, वक्ता हूँ, वाद विवाद प्रतियोगिताओं में स्वयम को परख चुका हूँ, राजनीति विज्ञान की भी पढाई कर रहा हूँ, इसके अतिरिक्त योग पर शोध कर एक "सरल योग दिनचर्या" ई बुक का विमोचन करवा चुका हूँ, साथ ही साथ मेरा ई बुक कविता संग्रह "कांपते अक्षर" भी वर्ष २०१३ में आ चुका है! इसके अतिरिक्त एक शून्य हूँ, शून्य के ही ध्यान में लगा हुआ, रमा हुआ और जीवन के अनुभवों को शब्दों में समेटने का साहस करता मैं... सौरभ कुमार!

2 thoughts on “****पाखंड का नाश करें****

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी कविता. पाखंड और अन्धविश्वास हिन्दू समाज की बीमारियाँ हैं, जो हिन्दू धर्म को अन्दर से खोखला कर रही हैं. इनका हर स्तर पर विरोध होना चाहिए.

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