राष्ट्रभाषा हिन्दी के तिरस्कार पर प्रसिद्ध कवि शंकर कुरूप की व्यंग्य कविता
एक बूढ़ी औरत…. राजघाट पर बैठे- बैठे रो रही थी !! ना जाने किसका पाप था जो अपने आंसुओं से
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Read More( पहले देखिए 1-शाँति, सबके लिए और 2- सेहत, सबके लिए और 3- अमीरी सबके लिए और 4-अपने जीवन को बदलिए, सिर्फ़ एक दिन में)
Read Moreगज़ल (बचपन यार अच्छा था) जब हाथों हाथ लेते थे अपने भी पराये भी बचपन यार अच्छा था हँसता मुस्कराता
Read More25 जून की सुबह छपरा के पास हुई राजधानी एक्सप्रेस की दुघर्टना का आंखों-देखा हाल, लगातार दिखाने वाले चैनलों ने
Read Moreसंघर्षो की नयी कहानी नयी जवानी लिखती है! नए गीत की नयी मालाएं नए शब्दों में दिखती है प्रेरणा पुंज
Read Moreप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बनी भाजपा-राजग गठबंधन सरकार को एक माह हो गया है। मीडिया में अपनी आदतों
Read Moreकिसी और के चुम्बन ने तुम्हे जानां मैं जानता हूँ रुलाया तो बहुत होगा रो रो कर अपने होंठो से
Read Moreयूँ तो मजहब के ठेकेदार हमेशा से जनमानस को “ईश्वर” के जाल में फंसा के उनका शोषण करते आये हैं
Read More========== आज दिल कर रहा है कुछ याद करूं अपना ही भूले-भटके हुये गुनाहों को खुद से ही फ़रियाद करू
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