कविता

पथिक सयाने पथ पर चलना जरा संभल संभलके

पथिक सयाने पथ पर चलना जरा संभल संभलके 
मोड़ हैं आते जीवन पथ में हर क्षण बदल बदलके 

देख चन्द्रमा अपनी चांदनी कैसे बिखराता है 
कैसे सूरज हर अँधियारा अपनी आभा पाता है 
कैसे कमल खिल कीचड में लक्ष्मी का आसन बनता 
कैसे बादल के आँचल से नीर सदा से है छनता
और सुगन्धि फैलाते हैं पुष्प भी मचल मचलके 
मोड़ हैं आते जीवन पथ में हर क्षण बदल बदलके

देख सिंधु के पार उधर भी राह नजर आती है
गिरकर उठने उठकर चलने की चाह नजर आती है
बूँद बूँद से सागर बनता बनता गहरा और विशाल
नवपल्लव खिलते हैं जीवन वृक्ष की खिलती हर डाल
और प्राणो में नयी ऊर्जा भरती जाती है चल चलके
मोड़ हैं आते जीवन पथ में हर क्षण बदल बदलके

देख प्राण के प्यारे तू ना गलत राह पर जाना
सुबह होए तो कर्मभूमि और साँझ ढले घर आना
मन को अपने बनाके मंदिर तुझको भगवान मिलेंगे
कर्मपथ पर आगे बढ़ना सब सम्मान मिलेंगे
और समेटते जाना सुखद क्षण जीवन के पल पलके
मोड़ हैं आते जीवन पथ में हर क्षण बदल बदलके

______________सौरभ कुमार दुबे

सौरभ कुमार दुबे

सह सम्पादक- जय विजय!!! मैं, स्वयं का परिचय कैसे दूँ? संसार में स्वयं को जान लेना ही जीवन की सबसे बड़ी क्रांति है, किन्तु भौतिक जगत में मुझे सौरभ कुमार दुबे के नाम से जाना जाता है, कवितायें लिखता हूँ, बचपन की खट्टी मीठी यादों के साथ शब्दों का सफ़र शुरू हुआ जो अबतक निरंतर जारी है, भावना के आँचल में संवेदना की ठंडी हवाओं के बीच शब्दों के पंखों को समेटे से कविता के घोसले में रहना मेरे लिए स्वार्गिक आनंद है, जय विजय पत्रिका वह घरौंदा है जिसने मुझ जैसे चूजे को एक आयाम दिया, लोगों से जुड़ने का, जीवन को और गहराई से समझने का, न केवल साहित्य बल्कि जीवन के हर पहलु पर अपार कोष है जय विजय पत्रिका! मैं एल एल बी का छात्र हूँ, वक्ता हूँ, वाद विवाद प्रतियोगिताओं में स्वयम को परख चुका हूँ, राजनीति विज्ञान की भी पढाई कर रहा हूँ, इसके अतिरिक्त योग पर शोध कर एक "सरल योग दिनचर्या" ई बुक का विमोचन करवा चुका हूँ, साथ ही साथ मेरा ई बुक कविता संग्रह "कांपते अक्षर" भी वर्ष २०१३ में आ चुका है! इसके अतिरिक्त एक शून्य हूँ, शून्य के ही ध्यान में लगा हुआ, रमा हुआ और जीवन के अनुभवों को शब्दों में समेटने का साहस करता मैं... सौरभ कुमार!

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