गीतिका/ग़ज़ल

धुन वुन मैं क्या जानू रहे जानू तो जानू बस भावो को शब्द देना जानू रे

गिरने वालो जरा संभल जाओ
ऊँचाई छूनी गर बदल जाओ

मिलते ख़ाक में ना लगेगी देर
पुन्य रस्ते पर जरा टहल जाओ

हासिल ना होगा नफरत से कुछ
प्यार मिलता है गर बहल जाओ

शौक पालना है तुम्हें तो खूब पालो
जिन्दगी में कर ना खलल जाओ

याद आता रहे तू हमे बदस्तूर
मुहब्बत की कर ऐसी पहल जाओ

सविता मिश्रा

*सविता मिश्रा

श्रीमती हीरा देवी और पिता श्री शेषमणि तिवारी की चार बेटो में अकेली बिटिया हैं हम | पिता की पुलिस की नौकरी के कारन बंजारों की तरह भटकना पड़ा | अंत में इलाहाबाद में स्थायी निवास बना | अब वर्तमान में आगरा में अपना पड़ाव हैं क्योकि पति देवेन्द्र नाथ मिश्र भी उसी विभाग से सम्बध्द हैं | हम साधारण गृहणी हैं जो मन में भाव घुमड़ते है उन्हें कलम बद्द्ध कर लेते है| क्योकि वह विचार जब तक बोले, लिखे ना दिमाग में उथलपुथल मचाते रहते हैं | बस कह लीजिये लिखना हमारा शौक है| जहाँ तक याद है कक्षा ६-७ से लिखना आरम्भ हुआ ...पर शादी के बाद पति के कहने पर सारे ढूढ कर एक डायरी में लिखे | बीच में दस साल लगभग लिखना छोड़ भी दिए थे क्योकि बच्चे और पति में ही समय खो सा गया था | पहली कविता पति जहाँ नौकरी करते थे वहीं की पत्रिका में छपी| छपने पर लगा सच में कलम चलती है तो थोड़ा और लिखने के प्रति सचेत हो गये थे| दूबारा लेखनी पकड़ने में सबसे बड़ा योगदान फेसबुक का हैं| फिर यहाँ कई पत्रिका -बेब पत्रिका अंजुम, करुणावती, युवा सुघोष, इण्डिया हेल्पलाइन, मनमीत, रचनाकार और अवधि समाचार में छपा....|

2 thoughts on “धुन वुन मैं क्या जानू रहे जानू तो जानू बस भावो को शब्द देना जानू रे

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी ग़ज़ल !

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    मज़ा आ गिया , कविता बहुत अच्छी .

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