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साई बाबा का विरोध कितना सही कितना गलत

 

साईं बाबा के नाम को सुर्ख़ियों में लाने का श्रेय शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी को जाता हैं जिनका कहना हैं की साई बाबा की पूजा हिन्दू समाज को नहीं करनी चाहिए क्यूंकि न साई ईश्वर के अवतार हैं न ही साई का हिन्दू धर्म से कुछ लेना देना हैं। साई बाबा जन्म से मुस्लमान थे और मस्जिद में रहते थे एवं सबका मालिक एक हैं कहते थे। शंकराचार्य जी को कहना हैं की ओम साई राम में राम के नाम साई के नाम के साथ जोड़ना गलत हैं और जो राम का नाम लेते हैं वे साई का नाम कदापि न ले, यह हिन्दू धर्म की मान्यताओं के विरुद्ध हैं। कुछ लोग शंकराचार्य जी की दलीलों को सही ठहरा रहे हैं क्यूंकि साई बाबा के नाम के साथ मुस्लमान शब्द का जुड़ा होना होना उनके लिए असहनीय हैं जबकि कुछ लोग जो अपने आपको साई बाबा का भगत बताते हैं शंकराचार्य जी के विरोध में उनके पुतले फूंक रहे हैं।
हमें यह जानना आवश्यक हैं की साई बाबा का पिछले एक दशक में इतने अधिक प्रचलित होने के पीछे क्या कारण हैं? क्या कारण हैं की एकाएक हिन्दू मंदिरों में साई बाबा की मूर्ति सबसे बड़ी होने लगी और बाकि हिन्दू देवी देवता उसके समक्ष बौने दिखने लगे हैं? क्या कारण हैं की प्राय: हर हिन्दू के घर में रामायण, गीता, भागवत आदि के स्थान पर साई आरती के गुटके पढ़े जाते हैं? क्या कारण हैं की राम और कृष्ण के नामों से अपने बच्चों का  नामकरण करने वाले हिन्दू लोग साई के नाम से अपने बच्चों को पुकारने में गर्व करने लगे हैं? उत्तर स्पष्ट हैं की सामान्य जन साई बाबा द्वारा चमत्कार करने, बिगड़े कार्य बनाने, अधूरे काम बनाने, व्यापार, नौकरी, संतान प्राप्ति, प्रेम सम्बन्ध आदि कार्यों में सफलता प्राप्ति करने हेतु करते हैं। अगर विस्तृत रूप से देखा जाये तो हिन्दू समाज में जितनी भी पूजा-उपासना की विधियाँ प्रचलित हैं उनका लक्ष्य ईश्वर प्राप्ति नहीं अपितु जीवन में सफलता प्राप्ति अधिक हैं। जैसे कोई तीर्थों में ,कोई पहाड़ों में,कोई नदियों में, कोई जीवित गुरुओं के चरणों में या गुरु नाम में , कोई मृत गुरुओं के चित्र और वस्तुओं में, कोई पीरों में, कोई कब्रों में, कोई निर्मल बाबा के गोलगप्पों में, कोई व्रत कथाओं में, कोई हवनों में, कोई पुराणों के महात्म्य में, कोई निरीह पशुओं की बलि में, कोई  आडम्बरों में, कोई गंडा-तावीज़ में सफलता की खोज कर रहा हैं। वैसे हिन्दुओं के समान मुस्लिम समाज भी मक्का मदीना से लेकर दरगाहों और कब्रों में  तो ईसाई समाज भी प्रार्थना रूपी पूजा, ईसाई संतों के चमत्कारों में सफलता खोज रहा हैं।

 

सत्य यह हैं की हिन्दू समाज की ईश्वर के गुण, कर्म, स्वभाव से अनभिज्ञता, चमत्कार को कर्म-फल व्यवस्था से अधिक महता , वेदादि शास्त्रों में वर्णित ईश्वर की पूजा करने सम्बन्धी अज्ञानता इस अव्यवस्था के लिए मुख्य रूप से दोषी हैं। खेद हैं की शंकराचार्य जी भी इस समस्या का समाधान करने में विफल हैं क्यूंकि उनके अनुसार साई के स्थान पर गंगा स्नान और राम नाम के स्मरण से ईश्वर की पूजा करनी चाहिए।  जब तक सर्वव्यापक, अजन्मा, सर्वज्ञानी, सर्वशक्तिमान एवं निराकार ईश्वर की सत्ता में पूर्ण विश्वास नहीं होगा तब तक धर्म के नाम पर इसी प्रकार से पाखंड फैलते रहेंगे। जब तक मनुष्य को यह नहीं सिखाया जायेगा की हम ईश्वर की उपासना इसलिए करते हैं ताकी अनादि ईश्वर के सत्यता, न्यायकारिता, निष्पक्षता, दयालुता जैसे गुण हमारे भी हो जाये तब तक मनुष्य इसी प्रकार से सफलता प्राप्ति के लिए विभिन्न प्रकार के अंधविश्वासों में भटकता रहेगा। जब तक मनुष्य को यह नहीं सिखाया जायेगा की जीवन का उद्देश्य आत्मिक उन्नति कर मोक्ष की प्राप्ति हैं तब तक मनुष्य अपने आपको भ्रम में रखकर दुःख भोगता रहेगा।

इसलिए केवल साई बाबा का विरोध इस समस्या का समाधान नहीं हैं अपितु वेद विदित सत्य का प्रचार से ही इस समस्या का समाधान संभव हैं।

डॉ विवेक आर्य

One thought on “साई बाबा का विरोध कितना सही कितना गलत

  • विजय कुमार सिंघल

    आपका कहना बिल्कुल सत्य है. लोग पूजा पाठ किसी धार्मिक कारण से नहीं बल्कि शुद्ध स्वार्थ और सासारिक कारण से करते हैं. उनमें यह अन्धविश्वास है कि यदि कोई काम सफल हुआ है तो उनके प्रयास से नहीं बल्कि किसी काल्पनिक देवी-देवता या संत-महात्मा-पीर-फ़कीर के आशीर्वाद से हुआ है. और यदि कोई काम बिगड़ गया है, तो उसके लिए उनकी अकर्मण्यता या मूर्खता नहीं, बल्कि इन देवी देवताओं की पूजा न करना ही सबसे बड़ा कारण है.
    इस मूर्खता का कोई इलाज नहीं है. उनको सच्चा ज्ञान चाहिए ही नहीं. वे तो बस ऐसे शोर्ट कट नुस्खे की तलाश में रहते हैं, जिसको करने से उनकी साड़ी समस्याएं हल हो जाएँ और वे सुखी हो जाएँ. इसी तलाश में वे कभी संतोषी माता, तो कभी साईं बाबा और कभी निर्मल बाबा की शरण में जाते हैं.
    वैसे शंकराचार्य का कथन भी शुद्ध राजनीति है. साईं बाबा का प्रचार कोई आज से नहीं है बल्कि पिछले ३०-४० साल से जोर-शोर से हो रहा है. सोनिया गाँधी से लेकर लालू प्रसाद यादव तक इनकी कब्र पर हाजिरी लगाते रहे हैं. तब शंकराचार्य कुछ नहीं बोले. क्यों? अब वे कांग्रेस को फायदा पहुँचाने के लिए हिन्दू समाज को बांटने की कोशिश कर रहे हैं. हालाँकि उनके तर्क गलत नहीं है, लेकिन उनका समय और तरीका बहुत गलत है.
    लेख के लिए आपका आभार !

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