कविता

कज़ा होनें लगी, अब यहां प्यार में।

मुझको दिल है मिला आज व्यापार में ।
प्यार बिकने लगा, देखो बाजार में।

हर तिजारत में हुश्न की भरमार है
हर गली में मिले अब ये बेकार है।।
नाज़नी जिसको दुनिया कहती यहां-
वो घड़ा मिट्टी का है,अब संसार में।

काग़ज मेें सबकी है हस्ती बिकी,
जवानी यहां सबसे सस्ती बिकी।
हसीनाओं का मजमा है लगने लगा-
कज़ा होनें लगी,अब यहां प्यार में।

वाह खुदा तेरी दुनिया है कितनी हंसी।
कूंचे में आ गयी सारी पर्दानशी।
है कोई ‘राज’ गलियों में फैला हुआ-
नाम शरीफो का लिखा है गुनहगार में

राजकुमार तिवारी (राज)

राज कुमार तिवारी 'राज'

हिंदी से स्नातक एवं शिक्षा शास्त्र से परास्नातक , कविता एवं लेख लिखने का शौख, लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र से लेकर कई पत्रिकाओं में स्थान प्राप्त कर तथा दूरदर्शन केंद्र लखनऊ से प्रकाशित पुस्तक दृष्टि सृष्टि में स्थान प्राप्त किया और अमर उजाला काव्य में भी सैकड़ों रचनाये पब्लिश की गयीं वर्तामन समय में जय विजय मासिक पत्रिका में सक्रियता के साथ साथ पंचायतीराज विभाग में कंप्यूटर आपरेटर के पदीय दायित्वों का निर्वहन किया जा रहा है निवास जनपद बाराबंकी उत्तर प्रदेश पिन २२५४१३ संपर्क सूत्र - 9984172782

One thought on “कज़ा होनें लगी, अब यहां प्यार में।

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी कविता, राज कुमार जी.

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