महिमा डी जे की
ऐसे नाच रहे जैसे बिच्छू सबके काट रहे।
ऐसे गाय रहे जैसे, चोरी करके भाग रहे।।
सदाबहार गीतों को डी जे ने बर्बाद ही कर डाला
मीठे रागों का अभाव, खरहा धुन सुनाय रहे।
नागिन पर डांस ऐसे होते, जैसे मिर्गी के मरीज-
गया नशा बोतल का जब, वो देख कर शमार्य रहे।।
नीली, पीली रोशनी में, विजली की है जान गयी।
बाम्बे की नकल है उतरी, ठेला लेके जाय रहे।
राजकुमार तिवारी (राज)
हा…हा…हा… सही व्यंग्य किया है आपने.