गीतिका/ग़ज़ल

……मुलाकात बाकी रह गयी।

है यहां बरसात फिर भी प्यास बाकी रह गयी।
देख ली दुनियां सारी, तलाश बाकी रह गयी।।

कुछ वफा मेरी थी उनपे, कुछ वफा उनकी थी मुझपे
वायदा जिस दिन किये थे, बात बाकी रह गयी।।

हर घड़ी हम साथ रहते, डरते जुदाई से रहे
फिर भी लगता है मुझे, मुलाकात बाकी रह गयी।

एक मुददत हो गयी, नींद आंखों में नहीं
दूर है अपना सबेरा, रात बाकी रह गयी।

फूल हैं कितने यहां, ‘राज’ कैसे देख ले
पहला और अन्त वही, याद बाकी रह गयी।

राजकुमार तिवारी (राज)

राज कुमार तिवारी 'राज'

हिंदी से स्नातक एवं शिक्षा शास्त्र से परास्नातक , कविता एवं लेख लिखने का शौख, लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र से लेकर कई पत्रिकाओं में स्थान प्राप्त कर तथा दूरदर्शन केंद्र लखनऊ से प्रकाशित पुस्तक दृष्टि सृष्टि में स्थान प्राप्त किया और अमर उजाला काव्य में भी सैकड़ों रचनाये पब्लिश की गयीं वर्तामन समय में जय विजय मासिक पत्रिका में सक्रियता के साथ साथ पंचायतीराज विभाग में कंप्यूटर आपरेटर के पदीय दायित्वों का निर्वहन किया जा रहा है निवास जनपद बाराबंकी उत्तर प्रदेश पिन २२५४१३ संपर्क सूत्र - 9984172782

2 thoughts on “……मुलाकात बाकी रह गयी।

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह ! वाह ! बेहद खूबसूरत ग़ज़ल.
    “हर घड़ी हम साथ रहते, डरते जुदाई से रहे,
    फिर भी लगता है मुझको, मुलाकात बाकी रह गयी।”
    इन पंक्तियों ने मन मोह लिया.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    राज कुमार जी कविता बहुत अच्छी लगी .है यहाँ बरसात फिर भी पिआस बाकी रह गई , देख ली दुनीआं सारी तलाश बाकी रह गई .वाह वाह वाह , किया बात है .

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