कहानी

कहानी : मुश्किल फैसला

निशा ने राहुल को स्कूल के लिये तैयार किया और उसका लंच बॉक्स उसे दिया | राजेश को भी आज जल्दी निकलना था, उनका भी लंच बॉक्स तैयार किया और निशा ने उन दोनों को विदा किया | घर का सारा काम खत्म करते -करते आधा दिन खत्म हो गया | अब निशा थोड़ी देर आराम करने अपने कमरे मे आयी ही थी कि फोन की बेल बजी | निशा ने रूखेपन से फोन उठाया |

‘हेल्लो निशा, मै काव्या बोल रही हूँ.’

‘अरे ! काव्या तुम!’ निशा ने खुश होते हुए कहा , ‘कैसी हो,ससुराल मे सब ठीक है ना, लोग अच्छे है ना?’ निशा ने जैसे सवालों की झड़ी लगा दी |

काव्या ने कहा ”रुको, निशा तम्हे सब बताने के लिये ही फोन किया है पर यहाँ फोन पर नहीं, तुम कल मेरे घर आ जाओ ,फिर  बैठ कर बाते करते है”. काव्या ने दुखी मन से कहा और फोन कट कर दिया |

कल का जाना तय हुआ, जानकर निशा ने राहत महसूस की, क्योंकि आज वो बहुत थकी हुई थी, पर अब उसको काव्या से मिलने की बेसब्री भी बहुत हो रही थी, तो उसको नींद भी नहीं आ रही थी | दूसरे दिन निशा ने जल्दी -जल्दी काम खत्म किया और काव्या के घर पहुँच गयी | निशा ने काव्या को देखते ही कहा, ”अरे! ये तेरे चेहरे पर उदासी क्यों ? नई -नई शादी हुई है, लालिमा की जगह ये कालिमा क्यो है ? क्या कुछ ठीक नहीं है क्या ससुराल मे ?’

काव्या ने कहा सब बताती हूँ, ‘निशा मुझे लगता है मेरे पति कल्पेस के मन मे कोई बात है जिसको लेकर वो मुझसे नाराज है या उसके दिल मे कुछ और ही चल रहा है पर क्या ? ये मेरी समझ मे नहीं आया | उसने मुझसे इन सात दिनों मे कभी कोई बात नहीं करी और अगले दिन भैया मुझे पग- फेरे की रस्म के लिये लिवाने आ गये मै उनके साथ वापस यहाँ आ गयी हूँ |’

”तो क्या तुम्हारा वैवाहिक जीवन शुरू ही नहीं हुआ ? कल्पेश ने तुम्हे छुआ तक नहीं क्या?’

‘नहीं’, काव्या ने कहा |

‘तुमने कल्पेश से इस बारे मे पूछा कभी’

‘बहुत बार पूछा पर उसने कभी मेरी बात ही नहीं सुनी |’

‘ओह !  तुमने अपने ससुराल मे किसी को बताया ?’

‘नहीं , ये मैंने सही समझा इससे कल्पेस की और मेरी इज्जत ही कम होती ना|’ थोड़ी देर काव्या से बाते कर के निशा भारी मन से अपने घर आ गयी थी |

समय बीतता गया अब काव्या को छ माह से भी ज्यादा समय हो गया था, ना कल्पेश उसे लेने आया और ना ही उसका कोई सन्देश आया | काव्या ने एक पत्र भी लिखा था पर कोई जवाब नहीं आया | काव्या के मम्मी -पापा और बाकी सब भी काव्या को देख कर दुखी थे पर क्या कर सकते थे | काव्या के पापा ने कभी नहीं सोचा था कि इतना पढ़ा लिखा लड़का काव्या के लिये देखा, फिर भी ये सब उसे  सब भुगतना पड़ेगा |

उस वक़्त काव्या को बी.कॉम .का दूसरा साल चल रहा था | एक दिन रात के खाने के वक़्त देवराज ने अपनी पत्नी उमा को कहा कि ”मैंने काव्या के लिये एक लड़का देख लिया है चार दिन बाद लडके वाले काव्या को देखने आयेगे |”

“अरे ! अभी क्या जल्दी है काव्या की शादी की अभी तो उसकी पढाई भी पूरी नहीं हुई है,कौनसी मेरी बेटी की उम्र बहुत ज्यादा हो गयी है ?” पर काव्या के पापा ने हुकुम जरी करते हुए कह दिया कि “अब इस बारे मे कोई बहस नहीं होगी | लड़के वाले आते ही होंगे एक दो दिन मे | तुम सब तैयार रहना |”

काव्या ने ये सब निशा को बताया तो निशा ने काव्या को कहा कि ”काव्या ये कोई मजाक नहीं है, शादी गुड्डे -गुड्डी का खेल नहीं होती है | ये तुम्हारे भविष्य का सवाल है किसी तरह अपने पापा को समझा कर अभी शादी मत होने दो और अपनी पढाई पूरी कर लो तुम |”,निशा ने कहना जरी रखा कि ”काव्या कभी -कभी हम औरतो के जीवन मे मुश्किल घड़ी आ जाती है तब अगर हम किसी योग्य है तो अपना मुश्किल वक़्त भी आसानी से तय कर सकती है नहीं तो नहीं | काव्या ने कहा ”निशा अब कुछ नहीं होने वाला है पापा का फैसला अटल है. मम्मी ने अपनी तरफ से बहुत कोशिश की पर सब बेकार गयी. पापा जो चाहते है वो ही होता है |” आख़िरकार काव्या की शादी कर दी गयी थी |

अब काव्या के पापा मम्मी बहुत दुखी है. अपने फैसले से सोच रहे है कि काश ,काव्या को पढने दिया होता तो आज ये दिन ना देखना पढता | वो ये सोच के और भी हैरान है कि इतना पढ़ा -लिखा समझदार लड़का है कल्पेश पर उसने ऐसा क्यों किया काव्या के साथ, क्या गल्ती हुई होगी काव्या से | उमा देवी अपने पति को अपनी बेटी काव्या की इस हालत का जिम्मेदार मानती है | पर इन सब मे काव्या को ही भुगतना पढ़ रहा है |

आखिरकर काव्या के पापा ने एक फैसला किया कि कल्पेश से बात करने के लिये अपने बेटे हरीश को भेजा जाये | अपनी पत्नी उमा से कहा कि कल हरीश को जल्दी से खाना बना के दे देना उसे काव्या की ससुराल जाना है | उमा को ये बात ठीक लगी क्योंकि वो अपनी बेटी को अब और दुखी नहीं देख सकती थी| पूरी रात ट्रेन का सफर तय कर के जब हरीश काव्या की ससुराल पहुंचा तो सब ने उसकी बहुत खातिर की | जिसकी उसने उम्मीद नहीं की थी | खाना खाने के बाद जब कल्पेश उसे अपने कमरे मे ले गया तो हरीश ने अच्छा मौका जानकर कहा ”आप काव्या को लेने अब तक क्यों नहीं आये ऐसा क्या हुआ था उससे जिसकी आपने उसे इतनी बड़ी सजा दे दी | काव्या का आपके इस रूखेपन से बुरा हाल है उसका सुख -चैन सब आपके कारण खो गया है |”

अब कल्पेश ने अपने मन की बात बताने मे ही भलाई समझी ”मैंने अपनी शादी मे आपसे दस लाख रूपयों की उम्मीद की थी,सोचा काव्या एक ही बेटी है और आपके पास पैसा बहुत है उन पैसो से मै क्लीनिक खोलना चाहता था|” कल्पेस ने कहा, “पर आप लोगो ने ऐसा किया नहीं | इतनी सी बात के लिये आपने इतने दिन लगा दिए | आपका काम हो जायेगा.” और वो उन सब से विदा लेकर अपने घर आ गया था |

मम्मी -पापा उसकी प्रतीक्षा मे ही थे। जैसे ही हरीश आया उन्होंने पूछना शुरू किया ”क्या हुआ वहां जाने स कुछ बात बनी ,’हाँ सब ठीक है बस कल्पेश को दस लाख रूपया चाहिए अपने क्लीनिक के लिये |”

पापा ने कहा ”ये कोई बहुत बड़ी बात नहीं है कल ही तुम दस लाख का चेक और काव्या को ले कर जाना | काव्या ने पापा और भैया की बाते सुनली थी और एक मुश्किल फैसला कर लिया |अगले ही दिन माँ ने काव्या को हरीश के ससुराल जाने को कहा तो उसने कहा, ”मैंने आपकी और भैया की सब बाते सुनली है, सुनने के बाद मैंने अपने जीवन का मुश्किल फैसला कर लिया है कि मै ऐसे आदमी के साथ अपना जीवन नहीं काट सकती, जिसको इंसान की कोई कद्र नहीं है और जो पैसो के आगे इंसान की भावना की कद्र ना कर सके | आपको एक पैसा भेजने की जरुरत नहीं है | अब मै अकेले ही अपना जीवन गुजारुंगी|”  इतना कह कर वो अपने कमरे चली गयी और रोने लगी |

शान्ति पुरोहित

निज आनंद के लिए लिखती हूँ जो भी शब्द गढ़ लेती हूँ कागज पर उतार कर आपके समक्ष रख देती हूँ

9 thoughts on “कहानी : मुश्किल फैसला

  • जो लोग दहेज मांगते हैं वोह लोग कमीने हैं. दस लाख दहेज देने की बजाये उस पैसों से ऊंची शिक्षा ली जा सकती है. आज की लडकी पड़ लिख गई है और अपने हकों को जानती है. सुसराल में रह कर ऐसे लोगों की हर बात को रिकॉर्ड कर के उन पर केस कर देना चाहिए और सबक सिखा देना चाहिए. साथी ज़िन्दगी में और भी मिल जायेंगे ख़ास कर आज के ज़माने में जब लोग लड़किओं को पैदा होने से पहले ही मार देते हैं जिस से लड़के लड़की कि रेशो में बड़ा अंतर हो रहा है. शान्ति परोहित जी, कहानी जाग्रुपक है .

    • विजय कुमार सिंघल

      मैं आपसे पूरी तरह सहमत हूँ, भाई साहब भमरा जी.

    • शान्ति पुरोहित

      बहुत बहुत धन्यवाद, भमरा जी. आपने सही कहा है.

  • नीलेश गुप्ता

    कव्या जैसा साहस हर लड़की में नहीं होता. दहेज़ मिटाने के लिए काव्य जैसी लड़कियों कि जरुरत है.

    • शान्ति पुरोहित

      आपका कहना सही है. धन्यवाद.

  • तीसमार सिंह

    कहानी बहुत अच्छी लगी.

    • शान्ति पुरोहित

      धन्यवाद, तीसमार सिंह जी.

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कहानी. यदि काव्या जैसा साहस हर लड़की में हो तो दहेज़ लोभियों को सबक सिखाया जा सकता है. माता-पिता को भी बेटी कि पढ़ाई पूरी किये बिना उसका विवाह नहीं करना चाहिए.

    • शान्ति पुरोहित

      धन्यवाद, भाई.

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