गीतिका/ग़ज़ल

छुपा है राज ईशा में

घिरे है तन्हाई में हम, बचाने तुम चली आओ।
सोती यादों को जगानें तुम चली आओ।।
घिरे है तन्हाई में…..—–तुम चली आओ

उदासी हर घड़ी रहती, तड़पती रूह मेंरी है-
वो सरगम पायल की सुनानें तुम चली आओ।
घिरे है तन्हाई में………तुम चली आओ

समन्दर है यहां कितने, मगर नाकाम सारे हैं-
तबस्सुम की बूंद को, पिलानें तुम चली आओ।।
घिरे है तन्हाई में……….तुम चली आओ

फिजा मदहोश करती है, नजारे जख्मीं कर देते-
छुपा है राज ईशा में बुलाने तुम चली आओ।।
घिरे है तन्हाई में…….-..तुम चली आओ

सही दूरी नही जाती, बहते अश्क़ रातो दिन-
वे जुल्फो की चादर में, सुलाने तुम चली आओ।
घिरे है तन्हाई में…..-…..तुम चली आओ

बहुत हो गये हिज्र, अब सहना मुहाल है
जिन्दगी मुझको जहां से उठाने चली आओ।।
घिरे है तन्हाई में………. चली आओ
राजकुमार तिवारी (राज)

राज कुमार तिवारी 'राज'

हिंदी से स्नातक एवं शिक्षा शास्त्र से परास्नातक , कविता एवं लेख लिखने का शौख, लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र से लेकर कई पत्रिकाओं में स्थान प्राप्त कर तथा दूरदर्शन केंद्र लखनऊ से प्रकाशित पुस्तक दृष्टि सृष्टि में स्थान प्राप्त किया और अमर उजाला काव्य में भी सैकड़ों रचनाये पब्लिश की गयीं वर्तामन समय में जय विजय मासिक पत्रिका में सक्रियता के साथ साथ पंचायतीराज विभाग में कंप्यूटर आपरेटर के पदीय दायित्वों का निर्वहन किया जा रहा है निवास जनपद बाराबंकी उत्तर प्रदेश पिन २२५४१३ संपर्क सूत्र - 9984172782

3 thoughts on “छुपा है राज ईशा में

  • धनंजय सिंह

    उर्दू-फारसी शब्दों के साथ उनका अर्थ भी सरल हिंदी में देना चाहिए. कविता अच्छी है.

  • नीलेश गुप्ता

    क्या आप ईसा का प्रचार कर रहे हैं?

  • विजय कुमार सिंघल

    गीत अच्छा है, लेकिन शीर्षक पंक्ति का अर्थ समझ में नहीं आया. कृपया स्पष्ट करें.

Comments are closed.