कहानी

रिश्तों का कत्ल

एक शहर में जूतों की एक मशहूर दूकान थी , दीना नाथ  जो उस शहर में नया था ,उस दूकान की चकाकौंध  देख कर जूते खरीदने के लिए दूकान में दाखिल हुआ |वहां पर बहुत सारे ग्राहक बेठे हुए थे तभी उस दूकान का मालिक अपनी सख़्त आवाज़ में किसी को पुकारते हुए बोला “ सुनो ज़रा …वहा ऊपर नीले रंग के जूतों के डिब्बे पड़े हैं, सात और आठ नंबर के जूते लाना | “ अभी  पांच मिनट ही हुए थे फिर गुस्से में चिल्लाया “ सो गए क्या… सुनाई नहीं देता..काम के न काज के ढाई सेर अनाज के, नाक में दम कर रखा है |”  वहां दो और कर्मचारी अपना काम कर रहे थे, फिर भी पता नहीं वो किस को हुक्म दे रहा था , फिर वो जूतों की बिक्री के लिए ग्राहकों के साथ मीठे स्वर में  बातें करने लगा |
             तबी अन्दर से एक बुज़ुर्ग आदमी ,कांपते हुए हाथों में चार-पांच डिब्बे उठाये , धीरे-धीरे चलता हुआ बाहर आया | उसके बालों की सफ़ेदी, मुरझाई चमड़ी और कांपते शरीर से उसका बुढ़ापा दिखाई दे रहा था | तभी संभल कर चलते हुए भी उसके हाथों से वो डिब्बे छूट कर ज़मीन पर जा गिरे | दूकान का मालिक गुस्से से तमतमाता हुआ उस पर चिल्लाते हुए बोला “ कितनी बार कहा है, ध्यान से काम किया कर…नजर नहीं आता..कैसे गिरा देते हो रोटी तो खाते वक्त हाथों से गिरती नहीं ” और वो इसी तरह चिल्लाता रहा | वोह बुज़ुर्ग आदमी बेइज़्ज़त होने के बाद ,आंखों में आंसू छुपाते हुए ,चुपचाप ज़मीन पर झुका और कांपते हुए हाथों से डिब्बों को समेटने लगा |
      उस बुज़ुर्ग के साथ ऐसा व्यवहार होता देख कर दीना नाथ को  बहुत दुःख हुआ और वो साथ बैठे ग्राहक को  बोला “ ये आदमी कितना बदतमीज़ और ज़ालिम है अपने नौकर के साथ कैसा व्यवहार कर रहा है . अरे, इसे तो ये तक अहसास नहीं कि वो बुज़ुर्ग इस के पिता की उम्र का है !” दूसरा ग्राहक धीरे से बोला “ नहीं भाई साहब वो बुज़ुर्ग इस का नौकर नहीं बल्कि इस का पिता ही है | इस के पिता ने सारी ज़मीन-ज़ायदाद ,ये सोच कर इस के नाम कर दी कि, इस बुढ़ापे  में ये उस की देखभाल करेगा, पर  इस ने  तो उसका बुढ़ापा नर्क बना दिया | “
                 ये सब सुन कर कर दीना नाथ दंग रह गया , उसे वहां घुटन-सी महसूस होने लगी ,वो ये सब और नहीं देख सका और वो छलनी हुए मन से बिना कुछ खरीदे दुकान से बाहर निकल आया और सोचने लगा, क्या शैतान किसी और दुनिया में रहते हैं, या हम इंसानों के बीच ही हैं ? ये रिश्तों का कत्ल नहीं तो और क्या है? इन सब  सवालों में उलझा हुआ और मन-ही-मन ऐसी औलाद को कोसता हुआ वह अपने घर की ओर चल पड़ा |

10 thoughts on “रिश्तों का कत्ल

  • अजीत पाठक

    आँखें खोल देने वाली कहानी.

    • मनजीत कौर

      कहानी पसंद करने और इतने हार्दिक कामेंट के लिए दिल की गहराइयों से बहुत शुक्रिया भाई साहब ।

  • केशव

    सीख – कभी किसी पर पूर्ण विश्वास मत करो

    • मनजीत कौर

      इतने हार्दिक कामेंट के लिए और कहानी पसंद करने के लिए आप का तहेदिल से शुक्रिया भाई साहब ।

  • कहानी बहुत अच्छी है और इस से सीख ली जा सकती है कि जीते जी कभी भी बच्चों को अपने कट के मत दो . जो भी जायदाद है आख़री दम तक अपने पास रखो . यों ही आप ने दिया बचों को बदलते देर नहीं लगेगी . वोह भूल जायेंगे कि आप ने उन को कुछ दिया था .

    • विजय कुमार सिंघल

      सही सलाह, भाई साहब.

      • मनजीत कौर

        धन्यवाद, विजय भाई साहब

    • मनजीत कौर

      कहानी पसंद करने और इतने शिक्षादायक और हार्दिक कामेंट के लिए आप का दिल की गहराईयों से शुक्रिया भाई साहब । आप ने बिलकुल सच कहा जीते जीअपने हाथ काट कर बच्चो को कभी नहीं देने चाहिए ।माता पिता सारी उम्र बच्चो के लिए कड़ी महनत करते ,उन को जीवन की तमाम खुशिया और सुख्सुविधाये देते है उनके सुनहरी भविष्य केलिए अपना आप न्योछावर कर देते है पर अपने बारे में सोचना भूल जाते है। बहुत दुःख की बात है दुनिया में कई ऐसे बच्चे भी है जो उनकी इन कुर्बानियों को भूल जाते है और दौलत के लिए रब जैसे माता पिता को खून के आंसू रुलाते है । ऐसी औलाद रब किसी को न दे ।

  • विजय कुमार सिंघल

    यह मात्र लघुकथा नहीं जीवन का सत्य है. आज की औलादें इतनी खुदगर्ज हो गयी हैं कि सगे माँ -बाप का अपमान करने और उनको सताने में भी लज्जा नहीं आती.

    • मनजीत कौर

      कहानी पसंद करने और इतने हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया विजय भाई साहब आप ने सच कहा ये जीवन का सत्य है दुनिया में ऐसी बहुत सी औलादे है जिन्हों ने माता पिता की जिन्दगी नर्क बना रखी है ऐसी हेवान औलादो का तो न होना ही अच्छा ।

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