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मेाबाइल फोन का सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव

विधान परिषद समिति की एक रिपोर्ट ने प्रस्ताव दिया है कि स्कूल-कालेजों मेें विद्याथियों को मोबाइल फोन ले जाने पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए उचित ही है। समिति का कहना है कि मोबाइल फोन के बढ़ते इस्तेमाल के चलते दुराचार और महिलाओं के अपहरण जैसी धटनाओं में तेज बढोत्तरी हो रही है। इन घटनाओं के बढ़ने के पीछे मोबाइल की अहम भूमिका है। हालांकि कर्नाटक सरकार में शिक्षामंत्री के रत्नाकर का कहना है कि कानूनन मोबाइल ले जाने पर रोक नहीं लगाई जा सकती। जबकि मुख्यमंत्री सिद्धरमैया का मत है कि इस पर पाबंदी से बच्चों के व्यवहार में कोई फर्क नहीं पड़ेगा। विधानसभा की महिला एवं बाल कल्याण मामलों की समिति ने महिलाओं की गुमशुदगी और दुष्कर्म ष्शीर्षक वाली अपनी रिपोर्ट में यह मुददा उठाया है।

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समिति की अध्यक्ष के अनुसार हमने कई अन्य घटनाओं में भी मोबाइल फोन की भूमिका की पड़ताल की। इसके बाद ही व्यापक विचार विमर्श के बाद समिति ने स्कूल कालेज में मोबाइल प्रतिबंधित करने की सिफारिश की है। उक्त रिपोर्ट के प्रकाश में आने के बाद न सिर्फ कर्नाटक अपितु उप्र सहित बिहार व देश के अन्य राज्यों में भी इस मसले में गम्भीर चर्चाओं का दौर प्रारम्भ हो गया है। देशभर से शिक्षाशास्त्री, समाजशास्त्री, शिक्षक व अभिभावक इस विषय पर अपने विचार व्यक्त कर रहे हैें। लगभग अधिकांशतः इस मत के प्रबल समर्थक हैं कि आज तकनीकी स्पर्धा व हर चीज आनलाइन होने के कारण मोबाइल फोन एक बहुत बड़ी जरूरत तो बन ही गया है लेकिन एक बहुत बड़ी आफत के रूप में भी सामने आ रहा है।

मोबाइल फोनों के माध्यम से अश्लीलता व पोर्नोग्राफी का प्रचार-प्रसार काफी तेजी से बढ़ गया है। जिसके चलते छात्राओं व युवतियों के प्रति अपराधों में मोबाइल फोन निश्चय ही एक बढ़ा जरिया बनता जा रहा है। आज अपराध जगत की दुनिया में एमएमएस व अश्लील वीडियो क्लीपिंग बनवाना तो बेहद आसान हो गया है तथा लोग इस तकनीक प्रयोग अपनी किसी के सथ दुश्मनी निकालने के लिए तथा अपने रास्ते आने वाले किसी काजीवन तबाह करने के लिए इस घिनौने हथियारों का बेधड़क प्रयोग किया जा रहा है। उप्र जैसे बढ़े राज्यों में तो प्रतिदिन समाचार पत्रों में ऐसी कोई न कोई घटना मिल जरूर जाती है। जिसमें किसी न किसी बहाने मोंबाइल से युवतियों व छात्राओं को फंसा लिया जाता है फिर उनके साथ दुराचार जैसी वारदात को अंजाम देकर उनका एमएमएस बनाकर उन्हें तंग किया जाता है। मोबाइल फोन में अब तस्वीरें उतारना व उनका वीडियो बनाकर एसएमएस करके उन्हें फैला देना आम बात होती जा रही है।

उप्र पुलिस सेवा 1090 में कालेज स्तर पर मोबाइल फोन से होने वाले कांडों की यदि बात करें तो यहां 15 नवंबर 2012 से 15 जून 2014 तक मोबाइल फोन सबंधी आने वाली शिकयतों का आंकड़ा 48201 है जिसमें 25325 केवल छात्राओं के हें। 24206 घरेलीू महिलाओं का तथा 8670 कामकाजी महिलाओं द्वारा की गई शिकायत है। लखनऊ की एक प्रमुख काउंसलर डा. अमृता दास का भी मानना है कि मोबाइल फोन प्रतिबंधित करना तो मुश्किल है लेकिन स्कूलों व कालेजो में तो होना ही चाहिये। उनका स्पष्ट मत है कि आजकल मोबाइल मेें इंटरनेट कनेक्शन बहुत ही घातक हो गया है। आज हालात इतने अधिक बुरे हो गये हैं कि कक्षा आठ में पढ़ने वाला बच्चा बीस हजार का मोबाइल लेकर अपने दोस्तों के बीच केवल अपना स्टेटस दिखाने व बढ़ाने के लिये लेकर जाता है। इन सभी का उपयोग शैक्षणिक कम अपसंस्कृति व अश्लीलता, अश्लील संगीत को बढ़ावा ही दे रहा है।

विगत वर्षो से कई राज्यों के स्कूलों से ऐसे समाचार प्राप्त हुए कि जिन स्कूलों में लड़कियां बहुत छोटी स्कर्ट पहनकर कालेज आती थीं लड़कें उनकी स्कर्ट के नीचे के फोटो उतारने का असभ्य प्रयास कर रहे थे। इस प्रकार के मामले छत्तीसगढ़ व झारखण्ड जैसे छोटे राज्यों के स्कूलों में भी देखने को मिले। जिन पर स्कूल प्रबंधकों को कड़ें फैसले भी लेने पड़े थे।

मोबाइल फोन का अश्लील प्रयोग अब कार्यालयों में भी पहुंच गया है। यहां पर भी कार्यरत महिलाएं व युवतियां अब सुरक्षित नहीं रह गयी हैं। अभी विगत वर्षों में कर्नाटक विधानसभा में ही सत्र के दौरान एक विधायक महोदय को भी पोर्न फिल्में देखते हुए पकड़ा गया था, जिसके चलते सत्तारूढ दल को शर्मसार होना पड़ गया था। बिहार के कला, संस्कृति एवं युवा मामलों के मंत्री विनय बिहारी का भी मत है कि आजकल बहुत से छात्र इंटरनेट युक्त मोबाइल फोन पर पोर्न देखते हैं व गंदे गाने सुनते हैं जिससे उनका कोमल मस्तिष्क विकृत हो जाता है। उन्होनें बताया कि उन्होनें स्वयं दो छात्रों को मोबाइल फोन पर पोर्न देखते पकड़ा था।

आज मोबाइल फोन से नैतिक पतन की बाढ़ आ गयी है। बच्चों व युवाओं का मन अध्ययन संस्कार ग्रहण करने की अपेक्षा गलत प्रवृत्तियों की ओर अधिक लगने लग गया है।आज मोबाइल फोन में गूगल कीसुविधा के चलते बच्चों ने पुस्तकालय जाना सांस्कृतिक कार्यक्रमों में जाना व परिवार के साथ बैठना भी कम कर दिया है। मोबाइल के चलते मानसिक तनाव अधिक पेैदा हो रहा है। आजकल लोगों की एक बेहद खराब आदत पड़ गयी है कि वे रेलवे ट्रैक पर मोबाइल से गाना सुन रहे हैं ,बाते कर रहे हैं जिसके कारण आये दिन कोई न कोई दुर्घटना का शिकार हो ही रहा है। रास्ते भर लोग पता नहीं क्या मोबाइल पर बातें किया करते हैं जो दुर्घटना का सबब बनते हैं। मोबाइल ने लोगों को झूठ बोलना भी खूूब सिखा दिया है।

समिति की रिपोर्ट आने के बाद पूरे देशभर में एक नयी बहस को जन्म दे दिया गया है। पश्चिमी सभ्यता और अंग्रेजीवाद में डूबे लोग समिति की रिपोर्ट की अच्छाईयों में न जाकर उसकी बुराई करने में ही जुट गये हैं।

यह बात सही है कि मोबाइल फोन आज की जरूरत बन गये हैं लेकिन उसका अधिक उपयोग वह भी बालक व बलिकाओं को खुली छूट देने से कई प्रकार की परेशानियां पैदा हो गयी हैं। कंपनियों को कम से कम ऐसे मोबाइल फोन छात्रों के हित में बनाने के उपाय खोजने चाहिये जिसमें कम से कम फोटो उतारना अवश्य प्रतिबंधित हो । मोबाइल फोन के माध्यमों से जहां अपराधों में वृद्धि हो रही है वहीं उनके माध्यम से पुलिस विभाग को अपराध नियंत्रण में सुगमता भी हो रही है। आज आवश्कयता इस बात की आ गयी है मोबाइल फोनों के प्रयोग कम से कम आचार संहिता तो अवश्य लागू होनी चाहिये।

2 thoughts on “मेाबाइल फोन का सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    दीक्षित जी ,अच्छा लेख है , यहाँ इन्त्र्नैत बहुत उपयोगी है वहां इस के नुक्सान भी बहुत ज़िआदा हैं . जवानी की उम्र तो ऐसे होती है कि पानी में आग लग जाए , ऐसे में मोबाइल का इस्तेमाल करना यंग जेनरेशन के लिए बहुत खतरनाक माधिअम बन रहा है . इस के लिए सख्त कानून बन जाने चाहिए . जो लोग अश्लील एमैमैस बनाते हैं उस के लिए सख्त सजाएं होनी चाहिए . पहले लोग लिएब्रेरी जाते और किताबे पड़ते थे , अखबार मैगजीन देखते थे अब वोह ख़त्म होता जा रहा है . स्पोर्ट्स की वजाए विडिओ गेम्ज़ खेलते हैं . लोगों को जागरूप करने के लिए कदम उठाने की जरुरत है . जो लोग अश्लील विडिओ बना कर अपलोड करते हैं उन को जेल होनी चाहिए .

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छा लेख. मोबाइल फ़ोन का सदुपयोग कम, दुरूपयोग अधिक किया जाता है. विद्यार्थियों को इसकी कोई आवश्यकता नहीं है. इसलिए यदि स्कूलों और कालेजों में इसे ले जाने पर रोक लगा दी जाये, तो कोई हानि नहीं है.

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