कविता

तांका

1
जल के बिना
सृष्टि निर्वाह नहीं
सदुपयोग
है ये अमुल्य निधि
अवनि का अमृत

2
चाहत लक्ष्य
डगर पथरीला
राह शूल से
ना होना भयातुर
मिले मंजिल छोर

3
तितली पंख
सतरंगी चमक
चिताकर्षक
उपवन बहार
कुसुम आलिंगन

4
लाल कनेर
मस्त गुलमोहर
मन बावरा
सराबोर रंगो में
उमंग राग मन

शान्ति पुरोहित

शान्ति पुरोहित

निज आनंद के लिए लिखती हूँ जो भी शब्द गढ़ लेती हूँ कागज पर उतार कर आपके समक्ष रख देती हूँ

4 thoughts on “तांका

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    शान्ति बहन , कविता बहुत अच्छी है

    • शान्ति पुरोहित

      धन्यवाद, भाई साहब.

  • विजय कुमार सिंघल

    Good.

    • शान्ति पुरोहित

      धन्यवाद, भाई जी.

Comments are closed.