कविता

हायकु

सिमटा हुआ
विविध रंग रूप
स्टेशन पर|

दूर गंतव्य
द्रुतगामिनी यात्री
प्रतीक्षारत|

दो पाट मध्य
दौड़ती जीव यात्रा
स्वमेव लक्ष्य|

गठरी बाँध
मुसाफिर चलता
गंतव्य तक|

दूर गंतव्य
द्रुतगामिनी यात्री
प्रतीक्षारत|

ट्रेन-जीवन
लौह पथ होकर
प्राप्त गंतव्य|

द्रुतगामिनी
दुःख सुख है संग
जीवन पथ|

भागती रेल
ठहरी सी जिन्दगी
दौड़ते लोग|

चीख पुकार
भगदड़ मचती
ट्रेन आते ही|

देर से आती
पलक झपकते ही
रफ्फूचक्कर|

थक के चूर
कालका अभी दूर
यात्री सुस्ताये| सविता मिश्रा 

*सविता मिश्रा

श्रीमती हीरा देवी और पिता श्री शेषमणि तिवारी की चार बेटो में अकेली बिटिया हैं हम | पिता की पुलिस की नौकरी के कारन बंजारों की तरह भटकना पड़ा | अंत में इलाहाबाद में स्थायी निवास बना | अब वर्तमान में आगरा में अपना पड़ाव हैं क्योकि पति देवेन्द्र नाथ मिश्र भी उसी विभाग से सम्बध्द हैं | हम साधारण गृहणी हैं जो मन में भाव घुमड़ते है उन्हें कलम बद्द्ध कर लेते है| क्योकि वह विचार जब तक बोले, लिखे ना दिमाग में उथलपुथल मचाते रहते हैं | बस कह लीजिये लिखना हमारा शौक है| जहाँ तक याद है कक्षा ६-७ से लिखना आरम्भ हुआ ...पर शादी के बाद पति के कहने पर सारे ढूढ कर एक डायरी में लिखे | बीच में दस साल लगभग लिखना छोड़ भी दिए थे क्योकि बच्चे और पति में ही समय खो सा गया था | पहली कविता पति जहाँ नौकरी करते थे वहीं की पत्रिका में छपी| छपने पर लगा सच में कलम चलती है तो थोड़ा और लिखने के प्रति सचेत हो गये थे| दूबारा लेखनी पकड़ने में सबसे बड़ा योगदान फेसबुक का हैं| फिर यहाँ कई पत्रिका -बेब पत्रिका अंजुम, करुणावती, युवा सुघोष, इण्डिया हेल्पलाइन, मनमीत, रचनाकार और अवधि समाचार में छपा....|

4 thoughts on “हायकु

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत रोचक हाइकु. लगता है कि शिमला की यात्रा कर रहे हैं.

    • सविता मिश्रा

      नमस्ते भैया ……शुक्रिया 🙂

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    सविता जी , कविता बहुत अच्छी है

    • सविता मिश्रा

      नमस्ते भैया .शुक्रिया

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