कविता

कुछ आत्ममुग्ध बूढ़े

कुछ आत्ममुग्ध बूढ़े 
कुछ अंधभक्त शिष्याएं 
बूढों को लगता है कि वो हैं साहित्यिक धरोहर 
वो लिखते है कुछ भी …..
बिना तर्क का ….नकारात्मक 
और लोगों से मनवाते है उसको सर्वोतम ….
और शिष्याएं …..
उनको जब कुछ समझ नहीं आता 
तो वो गर्व से कहतीं है…”आपका ज्ञान मुझ मंदबुद्धि की पहुँच से है बड़ा”
बस साहित्य का लक्ष्य हो जाता है पूर्ण 
इसीलिए तो रची गयी थी वो रचना
जो किसी की समझ में ना आये
अरे !!! नहीं समझे …..
जो समझ में आये वो श्रेष्ठ तो हो सकता है …सर्वोतम नहीं ….
और आत्ममुग्धों को चाहिए सर्वोतम …..
और सर्वोत्तम ही तो करता है अहम् को पूर्ण
क्या ///// शिष्याओं को क्या मिलेगा बदले में …..?
अरे ! महान साहित्यकारों की आलोचना / समीक्षा
और क्या चाहिए ………………………………..
इससे ज्यादा चाहिए भी क्या ……
यही तो प्रथम पग है ….साहित्यिक धरोहर होने का …
____________________अभिवृत | कर्णावती | गुजरात

8 thoughts on “कुछ आत्ममुग्ध बूढ़े

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    अभिवृत जी , कविता बहुत अच्छी है . आप की कविता में गहराई है . बूड़े हो कर अक्सर लोग समझने लगते हैं कि उन को गियान की बातें ज़िआदा आती है . इस लिए वोह चाहते हैं कि लोग उन को समझें उन पर विशवास करें उन की किताबों को पड़ कर दुसरे लोगों को उद्हारने दें. जैसे आप ने लिखा है कि अगर लोगों को समझ नहीं आती तो वोह बोलते हैं कि आप की बातें हमारी समझ से बाहिर हैं . कुछ बजुर्ग तो क्रितेसिज़म भी सहार नहीं सकते . लेकिन सच यह भी है कि नैक्स्ट जेनरेशन बहुत क्लैवर है ख़ास कर मॉडर्न टैक्नोलोजी में . सच्ची बात कहूँ मेरी बेटी अच्छी पोस्ट पर लगी हुई है लेकिन उस की बेटी भी अच्छी पोस्ट पर है लेकिन मेरी बेटी बताती मुझे बताती है कि डैडी, वोह मुझ से कहीं ज़िआदा हुशिआर है . इस लिए अब अपना यानी हम बुडों को ओपिनियन बच्चों पर जबरदस्ती ठूंसना इन्वैलेड है .

    • आपका हार्दिक आभार गुरुमेल जी …मैं चाहता हूँ सबको समान अवसर मिले …योग्यता का आंकलन उम्र देखकर ना हो

  • धनंजय सिंह

    मजेदार कविता. ऐसी कविता लिखना बड़े साहस का काम है.

    • हार्दिक आभार धनंजय जी …जिस लेखक में साहस नहीं तो उसका तो लिखना ही बेकार है

  • विजय कुमार सिंघल

    हा…हा…हा… आपकी कविता साहित्यिक मठाधीशों को निर्वस्त्र कर रही है.

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