कविता

क्या सुनी आज तुमने चाँद की सिसकियाँ?

क्या सुनी आज तुमने चाँद की सिसकियाँ?
आज आर्यावर्त के उत्तरी कोने मेँ चाँद छिपा रो रहा था,
बार बार सिसकता,
बारिश मेँ ठिठुरता,
आँसुओँ का बोझ ढो रहा था,
क्या सुनी आज तुमने चाँद की सिसकियाँ?

फिर थरथराते बादलोँ के बीच छिपता चाँद,
जैसे बचने धरती के कोलाहल से मिल गयी हो मांद,
खाक छानता अंबर पर,
ढूँढता फिरता शांति का घर,
अपने आँसुओँ को बारिश के गड्ढो मेँ डूबो रहा था,
क्या सुनी आज तुमने चाँद की सिसकियाँ?

कुछ तो खटकती थी आज उसकी रोशनी,
जम गयी थी आज बदलियोँ के बीच जैसे चासनी,
थपथपती पीठ बिजली,
पर गरजती घोर बदली,
तिमिर की छाया मेँ उसका रंग काला हो रहा था,
क्या सुनी आज तुमने चाँद की सिसकियाँ?

___सौरभ कुमार दुबे

सौरभ कुमार दुबे

सह सम्पादक- जय विजय!!! मैं, स्वयं का परिचय कैसे दूँ? संसार में स्वयं को जान लेना ही जीवन की सबसे बड़ी क्रांति है, किन्तु भौतिक जगत में मुझे सौरभ कुमार दुबे के नाम से जाना जाता है, कवितायें लिखता हूँ, बचपन की खट्टी मीठी यादों के साथ शब्दों का सफ़र शुरू हुआ जो अबतक निरंतर जारी है, भावना के आँचल में संवेदना की ठंडी हवाओं के बीच शब्दों के पंखों को समेटे से कविता के घोसले में रहना मेरे लिए स्वार्गिक आनंद है, जय विजय पत्रिका वह घरौंदा है जिसने मुझ जैसे चूजे को एक आयाम दिया, लोगों से जुड़ने का, जीवन को और गहराई से समझने का, न केवल साहित्य बल्कि जीवन के हर पहलु पर अपार कोष है जय विजय पत्रिका! मैं एल एल बी का छात्र हूँ, वक्ता हूँ, वाद विवाद प्रतियोगिताओं में स्वयम को परख चुका हूँ, राजनीति विज्ञान की भी पढाई कर रहा हूँ, इसके अतिरिक्त योग पर शोध कर एक "सरल योग दिनचर्या" ई बुक का विमोचन करवा चुका हूँ, साथ ही साथ मेरा ई बुक कविता संग्रह "कांपते अक्षर" भी वर्ष २०१३ में आ चुका है! इसके अतिरिक्त एक शून्य हूँ, शून्य के ही ध्यान में लगा हुआ, रमा हुआ और जीवन के अनुभवों को शब्दों में समेटने का साहस करता मैं... सौरभ कुमार!

5 thoughts on “क्या सुनी आज तुमने चाँद की सिसकियाँ?

  • जगदीश सोनकर

    बेहतर, भाई.

  • शान्ति पुरोहित

    बहुत सुन्दर कविता.

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कविता. बधाई !

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    सौरव जी , कविता बहुत अच्छी है

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