कहानी

पछतावा 

आज पूरी कोलोनी मे आरती का नाम ही सबकी जुबान पर था | पूरी कोलोनी मे आरती ही आरती छाई हुई थी | जैसे सबको टाइम पास का अच्छा-खासा मसाला मिल गया हो | बहुत दिनों से लोग आपस मे काना-फूसी कर रहे थे,पर आज तो ये बात आरती और उसके पति निशांत के कानो मे भी पड गयी है | आरती की मेड ने आज बताया ” मेम, बाजु वाली मेम साहब ने मुझे कहा कि ‘आरती को इतना अच्छा पति मिला है , फिर भी वो किसी दुसरे मर्द के साथ क्यों घुमती है ?”

निशांत ने भी ये सब सुना आरती को अपने पास बिठाकर बोला ”आरती ये सब क्या है ? लोग क्यों अपने रिश्ते को लेकर इतनी बाते बना रहे है ?”. आरती ने निर्भीक भाव से कहा ”तुम भी उसे जानते हो , वो और कोई नहीं ‘समीर ही तो है| जिससे मैंने तुम्हे कई बार मिलवाया है| मैंने तुम्हे उससे तब मिलवाया था जब मेरी ‘कविता संग्रह पगडंडी , के लिए पारितोषिक मिला था | वो भी एक कवि है | उस दिन उसने मेरी कविता का जो विस्तृत वर्णन किया,वैसा तो मैंने कभी सोचा भी नहीं था |”

आरती से ये सब सुनकर निशांत ने अपनी याददाश्त पर जोर दिया तो उसे सब याद् आया; जब आरती को सम्मानित किया गया था उस दिन सारा कार्यक्रम समीर ही सम्भाल रहा था | समीर ने आरती की कविता की एक -एक लाइन का इतना विस्तृत वर्णन किया था कि सोलह लाइन की कविता को पढने मे डेढ़ घंटा लगा दिया था | आरती तो कविता पाठ को सुनने मे खो गयी और निशांत बोर हो रहा था | वो परेशान हो गया कि कब प्रोग्राम ख़त्म होगा ?

निशांत शेयर मार्केट का काम करता था | उसे तो नम्बर और लाखो -करोडो की बातो से लगाव था |आरती की कविता और भाव से उसे कोई मतलब नहीं था | पर अगर वो आज कार्यक्रम मे नहीं आता तो आरती को बुरा लग जाता इसलिए उसे आना पडा था |

दो घटे बाद कार्यक्रम के आखिर मे जब आरती को दो शब्द बोलने के लिए बुलाया तो आरती ने समीर की तारीफ के पुल बांध दिए थे | निशांत को उसकी आधी बाते तो सुनी भी नहीं थी,वो तो फोन पर शेयर –मार्केट की बातो मे ही उलझा हुआ था | निशांत अतीत से वर्तमान मे आया और बोला ”वो कार्यक्रम ख़त्म और रिश्ता ख़त्म हो जाना चाहिए फिर अब तक क्यों रिश्ता रखा हुआ है उससे ?

आरती ने कहा ”उसका और मेरा रिश्ता सच्ची दोस्ती का है सच्ची दोस्ती तो ईश्वर को भी प्यारी होती है | मेरी लिखी कविता को सुनने मे आपको  कभी कोई दिलचस्पी नहीं है,तो तारीफ क्या करोगे ? समीर मेरी लिखी एक -एक बात को समझता है |,निशांत ने चीढते हुए कहा ‘आरती ! कविता से पेट नहीं भरता है |,जिन चीजो के लिए लोग तरसते है वो सब तुम्हे यहाँ मिल रहा है और क्या चाहिए तुम्हे ?,आरती ने तनिक रोष के साथ कहा ”जीने के लिए वो सब मुझे मिल रहा है ,और मेरे दिल और दिमाग के सुकून के लिए जो चाहिए वो मुझे तुमसे नहीं मिल रहा |, निशांत ने गुस्से से कहा ”फिर तुम समीर के साथ ही चली जाओ, इतना कह कर, निशांत वहां से उठकर चला गया |

आरती निशांत की बाते सुनकर दंग रह गयी कि इस इंसान को दुसरो की भावना की कोई क़द्र ही नहीं है |या फिर समझना ही नहीं चाहता है |आरती ने निशांत को अकेले मे बोलते हए सुना है कि कभी घर छोड़ने की बात आई तो कविता का भूत उतर जायेगा |

 थोड़ी ही देर मे आरती अपने कमरे मे से एक छोटा सा बैग लेकर आयी ,निशांत के सामने बैग रख कर कहा ”देख लो इस बैग मे तुम्हारी कमाई का कुछ भी लेकर नहीं जा रही हूँ,पर अब मै तुम्हारे साथ जी नहीं पाऊँगी| निशांत ने जोर से कहा ”ठीक है जाओ समीर के साथ ! कविता! कविता तो एक बहाना है| आरती ने कुछ जवाब नहीं दिया वो चुप -चाप चली गयी|

आरती ने सोचा,चलो ये भी अच्छा है हमारे कोई बच्चा नहीं है, नहीं तो मै ऐसे जा नहीं सकती थी| निशांत ने गुस्से के कारण आरती को एक बार भी रोकने की कोशिश नहीं की,पूरी रात बैचेनी मे जागकर बिताने के बाद उसे अपनी गलती का अहसास हुआ| वो तैयार होकर समीर के घर की ओर चल दिया|समीर के घर पहुंचा तो समीर ने नींद मे दरवाजा खोला ”आरती को बुलाओ”, निशांत ने कहा| उसकि ये हालत देख कर निशांत को फिर गुस्सा आ गया| समीर ने कहा, “आरती को उठाऊ ! वो यहाँ आयी कब थी ?” तभी  एक छोटा बच्चा और औरत दरवाजे के पास आये, जो समीर की पत्नी और बच्चा था | अब निशांत सोच में पड़ गया आरती यहाँ नहीं आई तो कहाँ गयी?

“पैसे कमाने के लालच मे आपने कभी ये नहीं सोचा कि आरती अकेली कैसे जीती होगी ?”, समीर की पत्नी ने कहा |आरती दीदी के पति हो ना ! रात को उनका फोन आया था, बहुत रो रही थी| आपने कभी उनको समझा नहीं , ऊपर से समीर के साथ उनका नाम जोडकर आरोप भी लगाया|  उन्होंने ये नहीं बताया कि उन्होंने घर छोड़ दिया है | अब निशांत को अपनी ग़लती पर बहुत अफ़सोस हो रहा था |

उसी वक्त समीर और निशांत आरती को ढूंढने निकले पर बहुत ढूंढने पर भी आरती का कोई पता नहीं चला | धीरे– धीरे समय बीतता गया | आज उस बात को आठ साल बीत गये, निशांत चुप कर के बैठ गया उए पता था, आरती उससे बेहद नफरत करती है | एक दिन समीर के घर एक फोन आया कि आरती देवी को उनकी एक और कविता संग्रह की बुक के लिए सम्मानित और पारितोषिक दिया जायेगा| आप इस प्रोग्राम मे आओ, ये वो चाहती है | मै उनकी बुक आपको भेज दूंगा |

प्रोग्राम वाले दिन समीर निशांत को लेकर वहां पहुँच गया | सालो पहले जिस जगह पर प्रोग्राम हुआ था | प्रोग्राम ख़त्म होते ही समीर से निशांत ने आरती से मिलने की विनती की | आज तो निशांत को आरती की भी कविता का अर्थ समझ आरहा था, उसकी कविता मे दर्द था | तभी समीर दौड़ता हुआ निशांत को बुलाने आया, वो दोनों आरती के पास पहुँचते तब तक वो वहां से जा चूकी थी | कहाँ गयी किसी को पता ही था.

हताश निशांत ने समीर से कहा ‘’घर की लक्ष्मी कभी गुस्सा नहीं होती पर जब होती है तो हम कितना भी पश्चाताप करले वो वापस मुडकर नहीं देखती है | निशांत दुखी मन से घर चला गया |

शान्ति पुरोहित

निज आनंद के लिए लिखती हूँ जो भी शब्द गढ़ लेती हूँ कागज पर उतार कर आपके समक्ष रख देती हूँ

11 thoughts on “पछतावा 

  • जगदीश सोनकर

    कहानी का अंत अच्छा भी हो सकता था. वैसे कहानी बहुत पसंद आई.

    • शान्ति पुरोहित

      धन्यवाद, जगदीश जी.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    शान्ति बहन , कहानी पसंद आई लेकिन मैं भी दुसरे कौमैन्तेटर से सहमत हूँ कि आरती ने गलत किया , छोटी सी बात को हवा दे कर अपना और पती का भविष्य खराब कर दिया . लेकिन इस बीच में , किओंकि मैं पंजाबी हूँ इस लिए पंजाबी की एक कहावत बोलूँगा , जोड़ियन जग थोड़ियन नर्ड बथेरे . इस का मतलब यह है कि एक दुसरे को समझने वाले कपल कम हैं लेकिन मजबूरी के बांधे कपल बहुत हैं . पती पत्नी को एक दुसरे को समझ कर कम्प्रोमाइज़ करना होता है , इस तरह तो आरती किसी के साथ भी रह नहीं सकती किओंकि १००% विचार मिलने बहुत असंभव हैं . एक बात से मैं आप से भी सहमत हूँ कि कोई भी साहितिक रुचिओं वाला इंसान ऐसे इंसान के साथ जो ०% हो के साथ रहने से frustrated हो जाता है . कोई भी कवी या कहानी लेखक लोगों से कुछ मांगता है , वोह है हौसला अफजाई , कुछ शलाघा के लफ्ज़ , उस की रचना पर कुछ शब्द . मेरी पत्नी इतनी पड़ी लिखी नहीं है और मैं भी कोई बड़ा लेखक नहीं हूँ लेकिन जो भी मैं लिखता हूँ वोह अपना ओपिनियन देती है और अगर उस को कहीं अच्छा न लगे तो उस को कुछ बदलने का सुझाव देती है . यह बात मिआं बीवी में होनि चाहिए . विचारों से आरती और निशांत ऐसे हैं जैसे मैगनेट के नौर्थ पोल और साऊथ पोल . लेकिन वोह अपने अपने फील्ड में कम्प्लीट हैं . निशांत शेअर मार्केट में एक्सपर्ट है , यह काम हर एक मिनट मागता है , इस में घाटा और मुनाफा दोनों होते हैं . लेकिन उस ने आरती को कभी नहीं कहा कि तुम कविता न लिखो . आरती का बिलकुल ही समीर की तरफ झुकाव हर पती के लिए शक पैदा कर सकता है . अगर निशांत ऐसा करे कि वोह किसी औरत के साथ इसी तरह करे तो किया आरती सोचने पर मजबूर नहीं होगी ?

    • विजय कुमार सिंघल

      प्रणाम, भाई साहब. आपने बहुत खूबसूरती से कहानी का विश्लेषण किया है. पति-पत्नी एक दुसरे को समझने कि कोशिश करें तो सारी समस्याएं सुलझ सकती हैं. समस्या तभी पैदा होती हैं जब वे दुसरे को समझे बिना अपनी ही राह पर चलते जाते हैं.

    • शान्ति पुरोहित

      भाई साहब, प्रणाम ! आपकी बात पूरी तरह सत्य है.

    • शान्ति पुरोहित

      ख़ुशी हुई, सौरभ जी.

  • अजीत पाठक

    कहानी अच्छी है. लेकिन उसका अंत सुखद भी हो सकता था. आरती और निशांत को मिलवा देना चाहिए था.

    • शान्ति पुरोहित

      धन्यवाद. लेकिन जब अंत दुखद था, तो सुखद कैसे होता?

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी कहानी. पति को पत्नी की भावनाओं की कद्र करनी चाहिए. लेकिन इसमें आरती ने जो कदम उठाया वह कुछ अतिवादी था. वह पति को बता सकती थी कि समीर पहले से शादी-शुदा है. उसके साथ संपर्क कम करके भी वह पति का समाधान कर सकती थी. मेरे विचार से दोनों ही गलती पर थे.

    • शान्ति पुरोहित

      धन्यवाद, विजय भाई.

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