कहानी

हर कदम पर बंदिशें

जाड़ों का समय है सूरज के किरणों ने समुद्र की कोख में जाने का मन बना लिया है. धीरे धीरे वह अगले दिन फिर से आने का संकेत करती हुई चमक (रोशनी) निरंतर कम होती हुई, संतरी और नीले आसमान से गायब हो रही है. हरियाणा के गाँव सुकना के प्रधान के घर आज बड़ी खुशियाँ मनाई जा रही है, ढलते सूरज की किरणों को कम होता देख, प्रधान दादा के घर के बाहर दीयों से चारों ओर रौशनी की गई है. सामने से आते हुई गाँव के सबसे मेहनती किसान ने घर के बाहर दिए जला रहे प्रधान दादा के छोटे भाई से पूछा………………क्या हुआ अमर भाई क्या कोई ख़ास बात है…………………..??? अरे हाँ लीलाधर आज बड़े भाई के घर बेटा पैदा होने वाला है……………..चोंककर लीलाधर ने फिर एक सवाल किया…….!!!! क्या कह रहे हो अमर भाई तुन्हें कैसे पता के बेटा ही होगा…………………………..??? अरे लीलाधर राजघरानों में बेटा ही पैदा होता है……………………………क्या तुम नहीं जानते…!!!!!!!!!! आश्चर्य से भरे लीलाधर ने माथे पर अपनी ऊँगली फेरते हुए कहा हां हो सकता है………………………! भाई हमारी ओर से भी बधाई कह देना प्रधान दादा को…………………….!!! हां जरुर अमर सिंह ने पलटकर जवाब दिया. कुछ ही देर में प्रधान दादा के घर से आ रही उनकी पत्नी की चीखने की आवाज़ तेज़ होने लगी, गाँव के सभी लोग इस इंतज़ार में वहां इकट्ठा हुए हैं, के आज तो प्रधान दादा बड़ी दावत देने वाले हैं……………..!!!!!

गाँव के सबसे मेहनती किसान लीलाधर को ये समझ में नहीं आ रहा था कि बेटा ही पैदा कैसे हो सकता है…………………..??? इसका फैसला तो ऊपर वाला करता है…………….. फिर ये इतना विश्वस्त कैसे है कि बेटा ही होगा……………………..(लीलाधर ने सिर खुजाते हुए सोचा). अब उससे रहा नहीं जा रहा था, तो अपनी बैचनी को कम करने के लिए उसके बगल में खड़े चमडे काकाम करने वाले सुरजा से पूछा… अरे भाई क्या मामला है…??? ये इतना विश्वास से कैसे कह रहा है कि लड़का ही होगा…??? अरे… भाई लीलाधर हमारे प्रधान दादा को लड़कियों से परहेज है. ये नहीं चाहते कि इनके घर में लड़की हो, देखा भी होगा तुमने जब भी गाँव में किसी के घर लड़की पैदा होती है तो यह जाते नहीं हैं वहां उसे बधाई देने. और अगर लड़का हो जाए तो बधाई तो क्या इनाम भी देते हैं. सही कहा पर इतना गहराई से तो मैंने सोचा ही नहीं था………….लीलाधर ने आश्चर्य से भरे सुर में जवाब दिया……………………!!! पर भाई सुरजा इतना विश्वास कैसे????? लीलाधर ने फिर सवाल किया. आज कल माडर्न ज़माना है भैया शहर गए थे किसी डाकटर के पास जांच के लिए, वहां उसी ने कहा आपको लड़का पैदा होगा………!!! सुरजा ने जवाब दिया. और भाई अगर वो लड़की कहता तो…………………..लीलाधर ने फिर पूछा?????? तो क्या मार देते उसे कोख़ में ही…………………..!!!! सुरजा ने जवाब दिया…!!!!!!! हे भगवान, राम……राम…….राम……!!!!! बड़ा पाप लगता भाई……………..लीलाधर ने कहा!!!!! क्या पाप भैया ये तो ऐसा ही करते आ रहे हैं……………..पिछले पांच सालों से सुरजा ने पलटकर कहा………..!!!!

ऐसा क्यों करते हैं ये लोग…………..??? आखिर क्यों मार देते मासूम लडकियों को………………??? क्या कसूर है उनका…………………??? क्या जिस लड़के को उसकी पत्नी जन्म देने वाली है वो औरत नहीं है…..??? अगर उसे भी कोख में ही मार दिया जाता तो क्या आज वह उस लड़के का सुख प्राप्त कर पाता……………..??? लीलाधर ने खुद से ये कुछ सवाल किये…..!!! और सहमी आँखों को लिए सुरजा की तरफ देखने लगा…….शायद कुछ पूछना चाहता था……………….और सुरजा समझ भी गया था पर वह भी लडकियों के खिलाफ था…………!!! अरे मैं कुछ बात ही नहीं करता इस विषय को लेकर कहता हुआ सुरजा… लीलाधर से अपना बचाव करता हुआ दूसरी ओर जा खड़ा हुआ……………….!!! उसे बस अपनी दावत से मतलब था……….लड़की हो……………………लड़का हो उसे कोई फरक नहीं पड़ता था…….!!! वह खुद भी अपनी दो बेटियों को पहले ही कोख में ही मार चूका था……..!!! कारण था………………पुरातन काल से चली आ रही दोषपूर्ण परंपरा……..!!!! शायद चलन था……………इस गाँव में लड़कियों को मार देने का…………….!!! अब लीलाधर कुछ-कुछ समझ रहा था…………………कि आखिर हर कोई उसे शैतानी निगाहों से क्यों देखता है………………….और गाँव में उसके अलावा किसी के घर में लड़की क्यों नहीं है…………………!!! गाँव के बाहरी छोर पर कुछ लोगो के घर लड़कियां थी…………..!!! पर गाँव के अन्दर केवल लीलाधर के घर ही दो लडकियां थी…!!!!

वह गर्व करता था अपनी दोनों बच्चियों पर…करना बनता भी था, वह दोनों गाँव के सभी लड़कों से ज्यादा ध्यान लगाकर पढ़ती थी और हमेशा अच्छे नंबरों से पास भी होती थी……!!! यूँ तो उस गाँव में लड़कियों को लिखाने-पढ़ाने का कोई चलन नहीं था, परन्तु समाज की सभी कुरीतियों को त्याग कर लीलाधर अपनी बच्चियों को पढ़ने के लिए भेजा करता था. कई साल ऐसे ही बीत गए….यही सब चलता रहा….लड़कियों को कोख में मारने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा था………लीलाधर पर भी लगातार दबाव बनाया जा रहा था कि वह अपनी लड़कियों की पढ़ाई छुड़वाए और…..उनका विवाह कर दे….परन्तु लीलाधर गाँव से दूर शहर में कुछ समय के लिए रह कर आया था. तो वह जानता था, शहर में लड़कियों के आगे बढ़ने को लेकर शहरों में क्या क्या किया जाता था. परन्तु अपराध ज्यादा होने के कारण वह अपनी लड़कियों को गाँव में ही पढ़ा लिखाना चाहता था…..परन्तु वहां भी रोक टोक…!! पर उसने किसी की एक नहीं मानी अपनी लड़कियों को पढ़ाई छोड़ने नहीं दी…!!! उन्हें गाँव के सभी लड़कों से बहुत पढ़ा लिखा दिया…….!!! अब सभी उन लड़कियों से चिड़ने लगे थे…..!!! उन्हें दबी कुचली मानसिकता के सामने दबने के लिए कहा जा रहा था…..!!! बहुत संघर्ष करके सब कुछ सही हुआ…..समय निरंतर आगे की ओर बढ़ रहा था…..!!! परिवेश बदल रहे थे…………एक पूरा दौर बदल चुका था………….गाँव के ज्यादातर लड़के जो लीलाधर के लड़कियों के बराबर के थे……!!! अब लीलाधर की लड़कियों पर नज़र रखने लगे थे……उन्हें बेइज्जत करने लगे थे…….!!! उनका जीना मुश्किल हो गया था………के अचनक उनकी ज़िन्दगी के नया मोड़ लेती है…….!!! एक दिन अकस्मात् ही प्रधान दादा लीलाधर में घर आते हैं………अरे! लीलाधर कहाँ हो………रोब भरी दरवाजे से आती आवाज़ सुनकर लीलाधर की बड़ी बेटी सुनैना ने अन्दर से बाहर की ओर आते हुए कहा……!!! बाबा तो घर पे नहीं हैं……अचानक उसकी नज़र प्रधान दादा पर पड़ती है तो…….वह कहती आइये दादा अन्दर आइये…….लीलाधर कब आएगा बेटी………दादा ने सुनैना से पूछा….???

पर ये आवाज़ सुनकर……दादा की बात गौर से सुन रहे………………..अहमद ने अपने मन में सोचा अरे! ये क्या किसी लड़की को बेटी कहते प्रधान दादा को पहली बार सुन रहा हूँ…….माजरा क्या है….??? जानना पडेगा पर कैसे………..उसने योजना बनाने के बारे में सोचते हुए कहा….!!! तभी लीलाधर दरवाज़े आवाज़ लगाता है. कंगना……….लीलाधर की दूसरी बेटी…….!!! अन्दर से आवाज़ आती है……बाबा मैं अन्दर हूँ…………क्या जानते हैं हमारे घर प्रधान दादा आये हैं…….आपका इंतज़ार कर रहे हैं………………लीलाधर के मुंह से बस इतना निकला……………..क्या……………..!!! अन्दर जाकर घुटनों पर बैठते हुए….. सिर झुककर, हाथ जोड़ते हुए लीलाधर ने हकलाते हुए कहा……………मालिक हुक्म कीजिये………!!! कैसे आना हुआ………….मुझे बुला लिया होता………………!!! नहीं लीलाधर आज हम तुमसे खुद मिलना चाहते थे……….प्रधान दादा ने कहा. कहिये मालिक क्या करना है मुझे…………….??? हम तुम्हारी दोनों बेटियों का हाथ मांगने आये हैं……………..!!! लीलाधर के ज़मीन से पाँव जैसे उठने लगे…..हवा में उड़ने लगा था वह. पहले तो उसे यकीं नहीं हुआ…….उसने कई बार प्रधान दादा से डरते हुए कहा…………….ये क्या कह रहे हैं मालिक हम कहाँ और आप कहाँ…………………..!!! मेरी बेटियाँ बड़े घर में रहेंगी……………….अच्छा खायेंगी पहनेंगी…….!!! दूसरी ओर उसके मन में लड्डू भी फुंट रहे थे. पर उसे शायद ये पता नहीं था……कि प्रधान दादा जो मीठा बनके उनके घर में आये हैं आखिर चाहते क्या हैं…….!!! उनके मन में क्या चल रहा है……………….??? लीलाधर मान गया………..शादी की तैयारियां हुई और प्रधान दादा के दोनों बेटों के साथ लीलाधर की दोनों बेटियों का विवाह हो गया.

लीलाधर बहुत खुश था……मान्यता के अनुसार बेटियों का ब्याह करने के बाद बाप गंगा में स्नान के लिए जाते थे……………तो लीलाधर भी चल दिया………………….लगभग एक महीने बाद जब वह चार धाम के दर्शन करके लौटा तो क्या देखता है……………………………उसकी दोनों बेटियाँ घर पर ही उसका इंतज़ार कर रही हैं…..??? दरवाज़ा खुला देखकर वह घर में घुसता है और हक्का बक्का रह जाता है……………..सबसे पहला सवाल, क्या हुआ तुम दोनों यहाँ क्या कर रही हो…………………..??? दोनों भागकर आई और रोती हुई अपने बाबा के गले लगकर सिसकने लगी……………….हुआ क्या तुम दोनों बताओगी…………..लीलाधर ने अपने आंसुओं को संभालते हुए उनसे पूछा….!!! बाबा निकाल दिया हमें घर से………………..बहुत मारा भी आपके जाते ही हम दोनों को बाहर भगा दिया. तीनों हमें गाली दे रहे थे………….मार रहे थे………………….देखिये बाबा क्या किया है दोनों ने……………..अपने फटे कपडे और गले पर निशान दिखाते हुए……………….छोटी बेटी कंगना बोली…………………उसके आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे………………….!!! सुनैना को तो अपना होश ही नहीं था………!!! वह तो मानों कोमा में चली गई हो एक ही जगह देखे जा रही थी…………..उदासी ने उसे अपनी चपेट में ले लिया था. बेटी क्या हुआ क्या हुआ तुम्हें……………कुछ तो बोलो………….लीलाधर के बहुत प्रयास करने के बाद भी सुनैना पर कोई असर नहीं पड़ रहा था. तभी कंगना बोली बाबा दीदी को भी नोंच नोंच कर मारा है दोनों ने…….बाबा अब हम वहां नहीं जायेंगे. हाँ मत जाना मेरी बच्ची……………..कहीं मत जाना……लीलाधर ने आश्वासन देते हुए कंगना को शांत कराया.

अगले दिन जब प्रधान दादा को पता चला की लीलाधर आ गया है……..तो वह उससे मिलने पुन: उसके घर पहुंचे………………………….बाहर बैठा……………लीलाधर अपनी बच्चियों के बारे में सोच रहा था…………….तभी हंसने की आवाज़ के साथ आवाज़ आती है… कैसे हो लीलाधर…….??? लीलाधर ने गुस्से से प्रधान दादा की ओर देखा कर भी तो कुछ नहीं सकता था…………………..क्योंकि सारा गाँव तो प्रधान दादा का ही हितैषी था…….वह लीलाधर की कहाँ सुनने वाला था. और अगर कुछ बोलता तो तीनों को मार दिया जाता……………..खुद का कोई डर नहीं था उसे पर अपनी दोनों बेटियों को कैसे मरने दे सकता था…. तो खड़ा हुआ सुनता रहा…हाँ पता चला…….कि हम क्या करते हैं लड़कियों के साथ…याद है एक बार तूने कहा था कि एक दिन अपनी लड़कियों को बड़ा आदमी बनाउंगा…..प्रधान दादा ने ऊँचे स्वर में कहा…. याद है या नहीं…..!!! अमर सिंह ने हमें बताया था कि लड़के की बात सुनकर तुम्हें बड़ा अचम्भा हो रहा था…सुरजा ने भी हमें बताया कि बड़े सवाल कर रहे थे. ये गाँव है लीलाधर… तुम्हारा शहर नहीं है… जहां लडकियां छोटी पेंट पहनकर घुमती हैं……. हमन उसी दिन ये बात सोच ली थी तुम्हें तुम्हारी गलती की सजा मिलेगी…………और आज हमने तुम्हें तुम्हारी गलती की सजा दे दी. आज तुम्हें पता चलेगा गाँव में कायदे तोड़ने का क्या नतीजा होता है. प्रधान दादा ने लंबा चौड़ा भाषण देते हुए लीलाधर का मज़ाक उड़ाते हुए चिल्लाकर कहा. सारा गाँव हंस रहा था. खिल्ली उड़ा रहा था….लीलाधर की. उसकी बेटियाँ मज़ाक बन चुकी थी. नज़रें उठाने के लायक भी नहीं बची थी वह अब. आंसू निरंतर बह रहे थे……नज़रें झुकी थी पर आंसू नहीं रुक रहे थे. सब धीरे धीरे जाने लगे थे… कह चुके जो कहना था. सभी अपनी अपनी जगह रुक गए… तभी लीलाधर ने कहा कोई बात नहीं आपने हमारे साथ जो किया. क्या हुआ गर आपने इन दो मासूम लड़कियों की जिंदगियां बर्बाद कर दीं. क्या हुआ गर ये सब लोग मुझपर और मेरी बेटियों पर हंस रहे हैं. क्या हुआ जो आज मैं और मेरी बेटियाँ अपनी जिंदगी का त्याग कर देंगी… पर याद रखिये……..प्रधान दादा एक ऐसा आयेगा जब आप अपने आप से भी नज़रें नहीं मिला पायेंगे… आज जो ये सारे गाँव वाले मुझपर हंस रहे हैं. एक दिन रोयेंगे… शायद उनकी बेटियों के साथ भी ऐसा ही हो…..पर मैं भगवान् से गुजारिश करता हूँ की ऐसा न हो……इतना कहते ही वह अपनी दोनों बेटियों के साथ पास में ही बने गहरे बहुत गहरे कुएं में कूद गया और गाँव वालों को अनगिनत सवाल दे गया….!!!

-अश्वनी कुमार

 

अश्वनी कुमार

अश्वनी कुमार, एक युवा लेखक हैं, जिन्होंने अपने करियर की शुरुआत मासिक पत्रिका साधना पथ से की, इसी के साथ आपने दिल्ली के क्राइम ओब्सेर्वर नामक पाक्षिक समाचार पत्र में सहायक सम्पादक के तौर पर कुछ समय के लिए कार्य भी किया. लेखन के क्षेत्र में एक आयाम हासिल करने के इच्छुक हैं और अपनी लेखनी से समाज को बदलता देखने की चाह आँखों में लिए विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में सक्रीय रूप से लेखन कर रहे हैं, इसी के साथ एक निजी फ़र्म से कंटेंट राइटर के रूप में कार्य भी कर रहे है. राजनीति और क्राइम से जुडी घटनाओं पर लिखना बेहद पसंद करते हैं. कवितायें और ग़ज़लों का जितना रूचि से अध्ययन करते हैं उतना ही रुचि से लिखते भी हैं, आपकी रचना कई बड़े हिंदी पोर्टलों पर प्रकाशित भी हो चुकी हैं. अपनी ग़ज़लों और कविताओं को लोगों तक पहुंचाने के लिए एक ब्लॉग भी लिख रहे हैं. जरूर देखें :- samay-antraal.blogspot.com

6 thoughts on “हर कदम पर बंदिशें

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    कहानी बहुत दर्दनाक है . आज हरिआना में किया हो रहा है ? लड़कों की शादिआन हो नहीं रही , जब पेट ही मार देंगे तो लड़की कहाँ से लाएंगे . किसी चीज़ का अत्त हो जाए तो लोगों को अकल आती है . मारते जाओ बेतिआं कोख में भाई ! जिस दिन एक भी लड़की नहीं होगी तो सब आदमी मर जाएंगे और गाँव खाली हो जायेंगे . यह जो अन्पड गंवार परम्परा पकड कर बैठे हुए हैं इन को एक दिन ऐसी सजा मिलेगी कि गाँव उजाड़ हो जायेंगे . रिशिओं मुनिओं के देश में यह शुभ कार्य हो रहा है . मंदिर जाते हैं तो ऐसे लगता है जैसे भगवान् के साथ बैठे हों .

    • अश्वनी कुमार

      सर मैं आपका धन्यवाद अदा करता हूँ. आपने इतनी गहराई से कहानी को पढ़ा इसके लिए भी मैं आपका आभारी हूँ.

  • धनंजय सिंह

    कहानी पढ़कर बहुत अफ़सोस हुआ। एक बहादुर बाप को योग्य बेटियों सहित आत्महत्या करनी पड़े यह शर्म की बात है।

    • अश्वनी कुमार

      धन्यवाद दोस्त!!!

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत मार्मिक कहानी। क्या इसका कोई समाधान नहीं है?

    • अश्वनी कुमार

      गुरु धन्यवाद!!! समाधान केवल यही है कि हम सभी को एकजुट होकर इस प्रथा का विरोद्ध करना होगा, तभी समस्या हल हो सकती है.

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