कविता

बरखा रानी – एक अरदास

PhotoGrid_1402221285210-300x300 तरसे मन तुम्हें मिलने को, आओ न बरखा रानी
आग उगल रहा सूर्य, बरसाओ तुम्हीं शीतल पानी
त्रस्त हुए जीव धरा के, बढी जा रही है व्याकुलता
करो तुम्हीं तृप्त काया, याद सभी को आयी नानी

सूखे सभी ताल-तलैया,भटकते हैं पंछी बिन पानी
गर्मी झुलसाये तन-मन,दिनकर कर रहा मनमानी
सब ढूंढते तरवर छाया, वनस्पति भी है कराह रही
उमड-घुमड़कर यूं बरसो, ओढ ले धरा चुनर धानी

खोज रहे सब शीतलता, घूम रहे मंजिल अन्जानी
लू – थपेड़ों से बचने को, प्रयास-रत हैं सभी प्राणी
निकल न जायें प्राण कहीं, छिपते सभी हैं फिर रहे
बहा जटाओं से गंगा, कल्याण करो हे औघड़ दानी

सुधीर मलिक

भाषा अध्यापक, शिक्षा विभाग हरियाणा... निवास स्थान :- सोनीपत ( हरियाणा ) लेखन विधा - हायकु, मुक्तक, कविता, गीतिका, गज़ल, गीत आदि... समय-समय पर साहित्यिक पत्रिकाओं जैसे - शिक्षा सारथी, समाज कल्याण पत्रिका, युवा सुघोष, आगमन- एक खूबसूरत शुरूआत, ट्रू मीडिया,जय विजय इत्यादि में रचनायें प्रकाशित...

4 thoughts on “बरखा रानी – एक अरदास

  • शान्ति पुरोहित

    आपका गीत पसंद आया, सुधीर जी.

    • सुधीर मलिक

      शान्ति जी हार्दिक आभार

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी सामयिक कविता

    • सुधीर मलिक

      समय की आवश्यकता पर लिखे चंद मनोभावों को पसंद करने के लिये सादर धन्यवाद

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