कविता

दो मुक्तक

हो गम की रात, आँखों ही आँखों में गुज़र जाने दो
दर्द के दरिया को अपनी हद से गुजर जाने दो
दिया उम्मीद का जीवन में सदा जलाए रखना
बेरहम वक्त का भयावह तूफ़ान तो थम जाने दो ।

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अश्क बहे जब जब मेरे सावन की झरी भी शरमाई
दरिया में बहते बहते राते कितनी ही जागकर बिताई
जिए जा रहे याद में, आरजू है कि मरने भी देती नही
उलझनों में उलझ गयी जिंदगी, रूह फिर भी है हर्षाई ।

गुंजन अग्रवाल

नाम- गुंजन अग्रवाल साहित्यिक नाम - "अनहद" शिक्षा- बीएससी, एम.ए.(हिंदी) सचिव - महिला काव्य मंच फरीदाबाद इकाई संपादक - 'कालसाक्षी ' वेबपत्र पोर्टल विशेष - विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं व साझा संकलनों में रचनाएं प्रकाशित ------ विस्तृत हूँ मैं नभ के जैसी, नभ को छूना पर बाकी है। काव्यसाधना की मैं प्यासी, काव्य कलम मेरी साकी है। मैं उड़ेल दूँ भाव सभी अरु, काव्य पियाला छलका जाऊँ। पीते पीते होश न खोना, सत्य अगर मैं दिखला पाऊँ। छ्न्द बहर अरकान सभी ये, रखती हूँ अपने तरकश में। किन्तु नही मैं रह पाती हूँ, सृजन करे कुछ अपने वश में। शब्द साधना कर लेखन में, बात हृदय की कह जाती हूँ। काव्य सहोदर काव्य मित्र है, अतः कवित्त दोहराती हूँ। ...... *अनहद गुंजन*

6 thoughts on “दो मुक्तक

  • गुंजन अग्रवाल

    shukriya saurabh dubey ji

  • गुंजन अग्रवाल

    thanx shanti di

  • गुंजन अग्रवाल

    aabhar vijay bhai ji

  • विजय कुमार सिंघल

    गुंजन जी, आपके मुक्तक बहुत अच्छे लगे। मुक्तक तो मुक्त ही होता है।

  • शान्ति पुरोहित

    अच्छे मुक्तक।

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