गीतिका/ग़ज़ल

हमें कुछ लोग कहते हैं

मैं माफ़ी चाहता हूँ, मुनव्वर राणा साहब से, क्योंकि इस ग़ज़ल का रदीफ़ और काफ़िया उन्हीं की एक ग़ज़ल से ताल्लुक रखता है.

हमें कुछ लोग कहते हैं, के हम परेशानी में रहते हैं.

उन्हें कैसे बताएं हम, के वीरानी में रहते हैं.

जगा दे रूह को जो वो तो आहट होती ही रहती.

मगर हम हैं जुदा, अपनी ही रवानी में रहते हैं.

कहीं पर बाढ़ है, धरती कहीं खिसकने लगी है.

यहाँ पर लोग सभी, दुखों की सानी में रहते हैं.

कहीं कुछ होता रहे, अपने में ही मग्न जो रहें.

यही बचपन (बच्चे) हैं, जो यादें सयानी में रहते हैं.

बुढ़ापा चढ़ गया, हर ओर बदहाली के बादल हैं.

मगर कुछ लोग अब भी अपनी जवानी में रहते हैं.

सुने किस्से बहुत हमने वो लैला और मजनू के.

है ज़िंदा इश्क अब भी, या फिर हम कहानी में रहते हैं.

-अश्वनी कुमार

अश्वनी कुमार

अश्वनी कुमार, एक युवा लेखक हैं, जिन्होंने अपने करियर की शुरुआत मासिक पत्रिका साधना पथ से की, इसी के साथ आपने दिल्ली के क्राइम ओब्सेर्वर नामक पाक्षिक समाचार पत्र में सहायक सम्पादक के तौर पर कुछ समय के लिए कार्य भी किया. लेखन के क्षेत्र में एक आयाम हासिल करने के इच्छुक हैं और अपनी लेखनी से समाज को बदलता देखने की चाह आँखों में लिए विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में सक्रीय रूप से लेखन कर रहे हैं, इसी के साथ एक निजी फ़र्म से कंटेंट राइटर के रूप में कार्य भी कर रहे है. राजनीति और क्राइम से जुडी घटनाओं पर लिखना बेहद पसंद करते हैं. कवितायें और ग़ज़लों का जितना रूचि से अध्ययन करते हैं उतना ही रुचि से लिखते भी हैं, आपकी रचना कई बड़े हिंदी पोर्टलों पर प्रकाशित भी हो चुकी हैं. अपनी ग़ज़लों और कविताओं को लोगों तक पहुंचाने के लिए एक ब्लॉग भी लिख रहे हैं. जरूर देखें :- samay-antraal.blogspot.com

5 thoughts on “हमें कुछ लोग कहते हैं

  • सुधीर मलिक

    वाह…बहुत खूब

    • अश्वनी कुमार

      शुक्रिया सर!!!

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी ग़ज़ल, अश्वनी जी.

    • अश्वनी कुमार

      गुरु जी बहुत शुक्रिया…!!! और पत्रिका में मेरी ग़ज़ल और कहानी को स्थान देने के लिए मैं आपका धन्यवाद करता हूँ.

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