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गुलामी का जीवन जीते मासूम

कल रात दिल्ली आज तक पर खबर दिखाई जा रही थी जिसमे बच्चो की तस्करी के विषय में दिखाया जा रहा था। इस खबर को देख कर कोई भी संवेदनशील इन्सान जरुर विचलित हो सकता है ।

खबर के अनुसार पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेसन से पुलिस ने 72 मासूम बच्चो को मानव तस्करों के चंगुल से छुड़ाया , इन बच्चो की उम्र 8 -15 साल तक थी । इनमे से कई बच्चो को पता ही नहीं था की उन्हें कंहा और क्यों ले जाया जा रहा है। चेहरे पर मासूमियत लिए बच्चे गरीब घरो के थे जिनके माँ बापों को थोड़े पैसे देके या तो खरीद लिया गया था या फिर यह कह कर लाया गया था की उन्हें काम पर लगवा दिया जायेगा और उसके बदले में वे अपने माँ बापों को हर महीने पैसे भेजते रहेंगे।

दूसरी खबर थी करोल बाग़ के बिडान पूरा से जंहा की एक ज्वेलर फेक्ट्री से 20 बच्चे छुड़ाए गए । इन बच्चो की भी उम्र 13 वर्ष से कम थी,इन मासूम बच्चो से 15-20 घंटो तक काम कराया जा रहा था ।

तीसरी खबर साऊथ दिल्ली से 11 नाबालिक लडकियों को छुड़ाया गया , जिन्हें देश के अलग अलग जगहों पर घरेलु काम करने के लिए सप्लाई करने की तयारी हो रही थी ।

ऐसा नहीं है की ये घटनाए पहली है , ऐसी सैकड़ो घटनाए हैं जो खबरों में आ ही नहीं पाती पर इन घटनाओ से यह प्रश्न जरुर खड़ा हो जाता है की क्या देश का भविष्य कहे जाने वाले बच्चो का भविष्य यही है ? देश एक तरफ नित नई उपलब्धिया प्राप्त कर रहा है, तरक्की करने का दावा कर रहा है। पर क्या यह खोखली तरक्की नहीं है जंहा जिस देश के बच्चो का भविष्य घुप अँधेरे में हों , वंहा क्या ऐसी तरक्की बेमानी नहीं है ?

जिस देश में यह कहा जाता हो की ‘ बच्चो में भगवन बसते हैं’ वंहा बच्चो की यह हालत हो?
जिस देश में यह कहा जाता है की यह ‘बच्चे मन के सच्चे’ पर क्या जिन पर उन सच्चे मन के बच्चो की जिम्मेदारी है उनके मन सच्चे हैं? इसमें क्या हैरत की ऐसे उपेक्षित और समाज द्वारा प्रताणित बच्चे कल को अपराधी बन जाये और अपराध करे ? इसका जिम्मेदार समाज नहीं होगा क्या?

ये सभी बच्चे बिहार ,झारखण्ड और उत्तर प्रदेश के गरीब परिवारों से हैं जंहा माँ बापों के लिए उनके लिए पढ़ना तो दूर दो वक्त की सूखी रोटी खिलाना भी मुश्किल होता है। तस्कर ऐसे गरीब लोगो को अपना निशाना बनाते हैं और लालच देके बच्चो को खरीद लेते हैं।
यदि सरकरे साठ सालो में इतना नहीं कर पाई की सभी को दो जून की रोटी मिल सके तो कैसे गरीब जनता अपने को आजाद समझे?

आज सुबह जब अपनी मोटरसाइकिल सर्विस के लिए देने गया तो वंहा भी यह नजारा देखने को मिला , गैराज चलाने वाले ने कई छोटे छोटे बच्चे काम पर लगाये हुए थे जिनकी उम्र 10-12 साल की होगी। जब मैंने गैराज मालिक से इस विषय में बात करनी चाही तो वह कहने लगा की ये मेरे रिश्तेदार के बच्चे हैं और ये काम सीख रहे हैं। ज्यादा पूछताछ करने पर वह बिफर गया और कहने लगा की अपनी मोटर साईकिल कंही और सर्विस करवा लो।

यह सब देश की राजधानी में खुले आम हो रहा है जहा देश के बड़े बड़े नेता रहते हैं और कहने को सबसे तेजतर्रा पुलिस है , तो आप अंदाजा लगा सकते हैं की दूर दराज के क्षेत्रो और छोटे शहरो में क्या हाल होता होगा।

जरुरत है सरकार के साथ साथ समाज को भी इन बच्चो के प्रति संवेदनशीलता का परिचय देने की ताकि मासूमो से उनकी मासूमियत न छिन पाए,देश का भविष्य वास्तव में तभी सुरक्षित रह पायेगा ।
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संजय कुमार (केशव)

नास्तिक .... क्या यह परिचय काफी नहीं है?

2 thoughts on “गुलामी का जीवन जीते मासूम

  • विजय कुमार सिंघल

    यह हमारे लिए बहुत शर्म की बात है कि आज़ादी मिलने के ६७ साल बाद भी हम बच्चों को उनका बचपन नहीं दे पाए हैं. शिक्षा के साधनों की कमी ही इसका सबसे बड़ा कारण है. अधिक बच्चे पैदा करना भी एक बड़ा कारण है. जनसँख्या नियंत्रण से इस बुराई पर काबू पाया जा सकता है.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    केशव जी , आप् फिकर ना करो , यह रिशिओं मुनिओं की धरती है , हमारी सभियता बहुत पुरानी है , भगवान् सभ देख रहा है, जरुर इन बच्चों ने पिछले जनम में बुरे काम किये होंगे . तभी तो कोई नेता इन की और देखता नहीं किओंकि यह बच्चे पिछले जन्मों की सजा भुगत रहे हैं .

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