कविता

दुआएं असर में बिखरती रहीं—-मौन

uljhan

मेरे मन की पीड़ा भी अजीब है,
किसी दर के सामने रूकती नहीं।
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हर नस में इसका असर हुआ,
किेसी निगाह में ठहरती नहीं।
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आइना देखने को जो जी करे,
खड़े होने पर अक्श ठहरती नहीं।
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मेरे हाथ जो मांगते दुआ अगर,
वो दुआएं असर में बिखरती रहीं।
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कोई आइना तो ऐसा ला दो मेरे यार,
मौन दर्द को, मन सूकून देती जाए।

One thought on “दुआएं असर में बिखरती रहीं—-मौन

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया.

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