लघुकथा

अपनों से जीत की हार

चन्द्र बाबु के पैर कोर्ट जाते हुए कांप रहे थे। पर एक आदर्श शिक्षक के रूप में अपने जीवन को आदर्श सिधान्तो के साथ व्यतीत किया था। तो आज अन्याय कैसे सहते ? बेटे की शादी के तुरंत बाद ही वो बहू को लेकर विदेश चला गया । एक दिन बहू बेटे ने आकर पिता के मकान का सौदा पक्का कर लिया। पिता आवाक् रहगए ! कुछ सोचा और उन्होंने मन ही मन कुछ निर्णय लिया । अगले दिन बेटे के हाथ में नोटिस था पिता ने केस किया मुकद्दमा किया। और अपने खून पसीने की कमाई से बना घर बचा लिया । पिता के दोस्त ने वकील के रूप में अपना मेहनताना भी नही लिया । कोर्ट से जाते हुए अपने अपनों को  देखा तो अपनी जीत को अपनों से हार सम ही लगी।

शान्ति पुरोहित

निज आनंद के लिए लिखती हूँ जो भी शब्द गढ़ लेती हूँ कागज पर उतार कर आपके समक्ष रख देती हूँ

2 thoughts on “अपनों से जीत की हार

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी लघु कथा. आजकल संतानें भी धन के लिए माँ-बाप की दुश्मन हो जाती हैं.

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