लघुकथा

लघुकथा : कक्षौन्नति

बात उन दिनों की है जब मैं चौथी कक्षा में थी | अंग्रेजी विषय तो जैसे अपने छोटी सी बुद्धि में घुसता ही ना था| और अंग्रेजी की टीचर भी बड़ी खूसट किस्म की थी| मारना और चिल्लाना ही उनका ध्येय था| उनके क्लास में आते ही सिट्टी-पिट्टी गुम हो जाती थी|
जिस दिन रीडिंग का पीरियड होता, जान हलक में अटकी रहती| अपनी बारी ना आये प्रार्थना ही करती रहती|
एक दिन रीडिंग करने खड़ी हुई| जो नाम मात्र आता भी था, वह भी डर से बोल नहीं पा रही थी| दो बार तो कस के डाट पिलाई टीचर ने| डाट खाते ही दिमाक तो जैसे घास चरने चला गया| अब तो बोलती ही बंद| इतना अटकी की …क्या बताऊ ….बड़ी तन्मयता से किताब को घूर रही थी बस, खोपड़ी पर डंडा जब बरसा तब तन्मयता टूटी| उनका डर इतना था कि हलकी सी ही चीख निकली पर आँखों से आंसू झरने सा बहा|
जैसे ही बोलना बंद किये कि बच्चे हंस लिए, “मम्मी आप इतनी कमजोर थी पढने में, और हमें कहती है हम कम नम्बर लाते है|”
“अच्छा क्लास में कौन सी पोजीशन आती थी मम्मी आपकी?”
“अरे बच्चो मत पूछो|”
तभी बच्चो के पापा तपाक से बोले- “तुम्हारी मम्मी कक्षा में उन्नति करती थी”
“मतलब” सीटू बोला
“मतलब कक्षौन्नति आती थी तुम्हारी मम्मी, जिसका मतलब निकालती थी की इन्होने कक्षा में उन्नति की है” “जबकि मतलब था किसी तरह पास हो गयीं हैं बस|”
उनकी बात सुन पूरे माहौल में ठहाका गूंज गया, और वनिता भी सर झुका हंसने लग पड़ी|

…सविता मिश्रा

*सविता मिश्रा

श्रीमती हीरा देवी और पिता श्री शेषमणि तिवारी की चार बेटो में अकेली बिटिया हैं हम | पिता की पुलिस की नौकरी के कारन बंजारों की तरह भटकना पड़ा | अंत में इलाहाबाद में स्थायी निवास बना | अब वर्तमान में आगरा में अपना पड़ाव हैं क्योकि पति देवेन्द्र नाथ मिश्र भी उसी विभाग से सम्बध्द हैं | हम साधारण गृहणी हैं जो मन में भाव घुमड़ते है उन्हें कलम बद्द्ध कर लेते है| क्योकि वह विचार जब तक बोले, लिखे ना दिमाग में उथलपुथल मचाते रहते हैं | बस कह लीजिये लिखना हमारा शौक है| जहाँ तक याद है कक्षा ६-७ से लिखना आरम्भ हुआ ...पर शादी के बाद पति के कहने पर सारे ढूढ कर एक डायरी में लिखे | बीच में दस साल लगभग लिखना छोड़ भी दिए थे क्योकि बच्चे और पति में ही समय खो सा गया था | पहली कविता पति जहाँ नौकरी करते थे वहीं की पत्रिका में छपी| छपने पर लगा सच में कलम चलती है तो थोड़ा और लिखने के प्रति सचेत हो गये थे| दूबारा लेखनी पकड़ने में सबसे बड़ा योगदान फेसबुक का हैं| फिर यहाँ कई पत्रिका -बेब पत्रिका अंजुम, करुणावती, युवा सुघोष, इण्डिया हेल्पलाइन, मनमीत, रचनाकार और अवधि समाचार में छपा....|

4 thoughts on “लघुकथा : कक्षौन्नति

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    सविता जी , बचपन याद दिला दिया , लगता है हम सभ एक ही कश्ती के सवार थे , बहुत बढिया लघु कथा .

    • सविता मिश्रा

      bahut bahut shukriya bhaiya apka …lag to yahi rha hai

  • विजय कुमार सिंघल

    हा..हा…हा…. बढ़िया कहानी. उस ज़माने में अंग्रेजी के नाम से बहुतों की जान निकल जाती थी. हमारे अंग्रेजी अध्यापक भी ऐसे ही थे. मैंने अपनी आत्मकथा में उनका वर्णन किया है.

    • सविता मिश्रा

      bahut bahut shukriya bhaiya apka .:D 😀

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