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आचार्य विनोबा भावे

vinoba bhaaveअहिंसा के प्रबल हिमायती और भूदान आंदोलन के प्रणेता और संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे आचार्य विनोबा भावे। उन्होंने समाज के धनाढय लोगों खासकर बड़े भूमिधरों को इस बात के लिए प्रेरित किया कि वे अपनी जमीन का छठवां हिस्सा उन लोगों को दान कर दें जिनके पास जमीन नहीं है ताकि उन्हें खेती के जरिए जीविकोपार्जन का सहारा मिल सके। उनका यह आंदोलन कुछ हद तक सफल भी रहा लेकिन राज्य सरकारों ने समय रहते उनके इस भूदान आंदोलन को वाजिब तरजीह नहीं दी अन्यथा आज देश की तस्वीर कुछ और होती। शायद इस देश में किसी भी हिस्से में भूमिहीन नहीं होते। वैसी विषमता भी न होती जैसी आज है। उन्होंने वंचितों और दलितों के उत्थान के लिए कार्य करने में ही पूरी जिंदगी समर्पित कर दी। उनकी सेवाओं को देखते हुए सन 1983 में मरणोपरांत उन्हें भारत रत्न से नवाजा गया। यही नहीं उनके दो और भाइयों ने भी समाज सेवा को ही जीवन का मुख्य उददेश्य मानकर उम्र बिताई।

विनोबा भावे का असली नाम विनायक नरहरि भावे था। उनका जन्म 11 सितंबर 1895 को महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के घागोडे गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम नरहरि शंभूराव और मां का नाम रुक्मिणी देवी था। घागोडे में ही उनका बचपन बीता। उनकी पढ़ाई बडा़ैदा में हुई। भागवतगीता. महाभारत और रामायण का उन्होंने कम उम्र में ही अध्ययन किया। इन ग्रंथों से वे बहुत प्रभावित हुए। उनके दो भाइयों बाल्कोबा और शिवाजी ने भी समाज सेवा को ही जीवन अर्पित कर दिया। विनोबा 8 अप्रैल 1921 को महात्मा गांधी से मिलने पहुंचे। इससे पूर्व आठ साल तक वे महात्मा गांधी से पत्राचार करते रहे थे। गांधीजी से मुलाकात के बाद वे वर्धा में गांधी आश्रम की शुरुआत करने गए। वर्धा में उन्होंने अपने विचारों को विस्तार देने के उददेश्य से मराठी में एक पत्रिका निकाली जिसका नाम था महाराष्ट्र धर्म। इसमे वे उपनिषदों पर निबंध लिखते थे ताकि उनका मर्म पाठको तक पहुचाया जा सके।

कुछ वर्षों मे ही गांधीजी से उनके रिश्ते प्रगाढ़ बन गए। तब उन्होंने गांधीजी के रचनात्मक कार्यक्रमों को भी जनता के बीच में और प्रभावी ढंग से लागू करने का काम शुरू कर दिया। सन 1932 मे ब्रिटिश हुकूमत ने उन्हें गिरफतार कर जेल भेज दिया। उन पर ब्रिटिश शासन की नीतियों के विरोध में काम करने का आरोप लगा। उन्हे छह महीने तक धुले के जेल में बंद रखा गया। इस दौरान उन्होंने जेल में बंद साथी कैदियों को भगवत गीता के प्रवचन मराठी में सुनाए। जेल में उन्होंने जो प्रवचन सुनाए थे उन्हें सनेहगुरुजी ने संग्रहीत कर लिया जो बाद में एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित की गईं। सन 1940 के पहले तक विनोबा भावेजी गांधीजी के अनुयायियों के बीच ही जाने जाते थे। 5 अक्टूबर 1940 को जब महात्मा गांधी ने उन्हें पहला वैयक्तिक सत्याग्रही घोषित किया तो पूरा देश उन्हें जान गया।

विनोबा भावे ने स्वतंत्रता आंदोलन में भी बढ़.चढ़कर हिस्सा लिया। लेकिन उनकी पहचान आध्यात्मिक गुरु के रूप मंे रही। इसका कारण यह था कि वे संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे और स्वतंत्रता सेनानियों को आध्यात्मिक रूप से जागरूक करने के कार्य में ही लगे रहते थे। समाज के वंचित तबको की पीड़ा उन्हें बहुत सालती थी। वे हमेशा वंचितों के हितों की पैरवी करते रहते थे। उन्होंने वंचितों के हितों को ध्यान में रख्कार ही भूदान आंदोलन शुरू किया। इसके तहत उन्होंने बड़े भ्ूमिधरों का यह आहवान किया कि वे अपनी जमीन का कुछ हिस्सा वंचितों को दान कर दें ताकि वे खेती कार अपने परिवार का जीविकोपार्जन कर सकेें। उनके इस आंदोलन से हजारों लोग जुड़ें। बहुत से लोगों को जमीन मिली लेकिन कालांतर में यह आंदोलन जारी न रह सका। इसके पीछे प्रदेशा सरकारों की उदासीनता को भी एक प्रमुख कारण माना जाता है।

भूदान आंदोलन और वंचितों के हित में किए गए कार्यों की वजह से विनोबा भावे को सन 1958 रैमन मैगसेसे अवार्ड प्रदान किया गया। यह पुरस्कार हासिल करने वाले वे पहले भारतीय थे। विनोबा भावे कुछ समय तक महात्मा गांधी के साबरमती स्थित आश्रम पर भी रुके थे. वहां विनोबाजी के नाम पर एक कुटिया का निर्माण किया गया था जिसमे में वे रहा करते थे। विनोबाजी ब्रहमचर्य के सिद्धांतों में अटूट आस्था रखते थे। इसका उन्होंने ताउम्र पालन किया। उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में भी प्रमुखता से हिस्सा लिया। वे विभिन्न धर्मों के सिद्धांतों में भी आस्था रखते थे। उनका मानना थ कि सारे धर्मों का सार है ओम तत्सत। उन्होंने लोगों को समझाया कि उनकी सारी समस्याओं का हल उनकी आध्यामिक सुदृढ़ता से मिल सकता है।

वंचितों के उत्थान के लिए उन्होंने सर्वोदय आंदोलन की शुरुआत की जो काफी लोकप्रिय हुआ। 18 अप्रैल 1851 को उन्होंने पोचमपल्ली से भूदान आंदोलन की शुरुआत की। इसके तहत 80 अनुसूचित परिवारों को भूमि दिलाई। वे इस आंदोलन के तहत 13 साल तक पैदल घूम.घूमकर लोगों को भूदान के लिए पे्ररित करते रहे। वे बड़े लोगों से यह आग्रह करते कि भूमिहीनों को भी अपना बेटा मानकर एक बटा छह हिस्सा जमीन दान करें ताकि उनकी जीविकोपार्जन का प्रबंध हो सकेे। इस आदोलन को विस्तार देने के लिए उन्होंने पूरे देश का भ्रमण किया। जमीन दान में मिलने पर उन्होंने उसे भूमिहीनों के बीच वितरित कर दी। वे गौ हत के प्रबल विरोधी थे। वे गौ को जीविकोपार्जन और भारतीय अर्थव्यवस्था का प्रमुख आधार मानते थे। इस दिशा में भी उन्होंने समाज को जागरूक करने का काम किया।

अपने आंदोलन को विस्तार देने की खातिर उन्होंने देश के विभिन्न हिस्सों में आश्रम बनाए। वे आदि श्ंाकराचार्य के चार धामों की तर्ज पर बनाए गए। इनमे से कुछ देश के तीन कोनों और कुछ भीतरी हिस्सों में स्थापित किए गए। बिहार के बोधगया में समन्वय आश्रम. पवनार में ब्रहम विद्या मंदिर. पठानकोट में प्रस्थान आश्रम. इंदौर में विसर्जन आश्रम. असम के लखीमपुर में मैत्री आश्रम बनाए। विनोबा भावे महान विचारक और अध्ययेता थे। उन्होंने अनेक पुस्तकें लिखीं। वे बहुत अच्छे अनुवादक भी थे। उन्होंने संस्कृत की कई पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद भी किया ताकि आम आदमी भी उनका अण्ययन कर सकें। वे कई भाषाओं के ज्ञाता भी थे। उन्हें मराठी. पुजराती. हिंदी. उर्दू. अंग्रेजी. संस्कृत आदि भाषओं का विशद ज्ञान था। वे नवोन्मेषी समाज सुधारक भी थे। वे नागरी लिपि को पूरी दुनिया की स्क्रिप्ट की रानी मानते थे।

उन्होंने कई कृतियों के संबंध में आलोचनात्मक लेख भी लिखे। दशर्न और धर्म संबधी कई पुस्तकों की उन्होंने आलोचनात्मक समीक्षा भी लिखी। उन्होंने भागवत गीता. आदि शंकराचार्य के कामों. बाइबिल और कुरान के संबंध में भी लेख लिखे। कई और संतांे के कार्यों की भी समीक्षा की। भगवत गीता का उन्होंने मराठी में अनुवाद भी किया। उन्होंने माना कि गीता उनकी सांस है। उन्होंने इसेंस आफ कुरान. इसेंस आफ क्रिश्चियन टीचिंग. थाटस आफ एजुकेशन. स्वराज्यशास्त्र नामक ग्रंथ भी लिखे। इस महान आचार्य ने 15 नवंबर 1982 को आखिरी सांस ली।

उमेश शुक्ल

उमेश शुक्ल पिछले 34 साल से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं। वे अमर उजाला, डीएलए और हरिभूूमि हिंदी दैनिक में भी अहम पदों पर काम कर चुके हैं। वर्तमान में बुंदेलखंड विश्वविद्यालय,झांसी के जनसंचार एवं पत्रकारिता संस्थान में बतौर शिक्षक कार्यरत हैं। वे नियमित रूप से ब्लाग लेखन का काम भी करते हैं।

One thought on “आचार्य विनोबा भावे

  • विजय कुमार सिंघल

    लेख अच्छा है. विनोबा भावे एक महान कार्यकर्त्ता और विद्वान थे. लेकिन अपने पक्षपातपूर्ण राजनैतिक विचारों के कारण वे कांग्रेस के सरकारी संत बनकर रह गए थे. उनके सर्वोदय और भूदान दोनों आन्दोलन बुरु तरह असफल रहे. उन्होंने आपातकाल का समर्थन किया था. इस कारण जनता में उनकी मान्यता शून्य हो गयी थी. वे बातें अच्छी करते थे, लेकिन व्यावहारिकता के धरातल पर उतारकर अपना प्रभाव खो देते थे.

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