राजनीति

जापानियों से सीखें हम

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी जापान की पांच दिवसीय यात्रा में जापान से कई ऐसे समझौते किये हैं जिससे देश में 1800 अरब रूपये का वह पूंजी का निवेश करेगा। शताब्दियों तक जापान और भारत के बीच घनिष्ठ सांस्कृतिक सम्बन्ध रहे है क्योंकि जापानियों का मुख्य धर्म बौद्ध धर्म ही है। हालांकि वहाँ अन्य धर्मो के अनुयायी भी हैं, पर उनकी संख्या काफी कम है। पर जापान से भारत और दुनिया के अन्य देश जो सबसे बड़ी चीज सीख सकते हैं कि कठिन परिस्थितियों में भी चुनौतियों का मुकाबला कैसे किया जा सकता है। चीन ने भी जापान से बहुत कुछ सीखा है। हालांकि आज खुद जापान को चुनौती दे रहा है। जापान एक ऐसा देश है जिसे युद्ध और परमाणु बमों ने बिल्कुल नष्ट-भ्रष्ट कर दिया था और जिसे दूसरे विश्व युद्ध के बाद अपमानजनक और अवमानित हालात में जीने को विवश होना पड़ा था, आज विश्व के सात सबसे अधिक शक्तिशाली देशों में से एक है। जापान के पास बड़े सीमित प्राकृतिक स्रोत हैं और उनके सैनिक शक्ति बनने के सब प्रयास निष्फल कर दिये गये थे। लेकिन इन सबके बावजूद उसने प्रौद्योगिकी की प्रस्पिर्धात्मक दौड़ में विजय प्राप्त करने की शानदार सफलता दर्ज की। भारत जापान से बहुत कुछ सीख सकता है। उसके पास प्राकृतिक मानवीय संसाधनों की कमी नहीं है।

आज दूसरे देश जापान की बराबरी करना चाह रहे हैं। प्रौद्योगिकियों में मूल क्षमताएं प्राप्त करके, उनका प्रयोग वे अपने व्यापार में प्रतियोगात्मक औजारों के रूप में करते हैं। अमरीका जैसा शक्तिशाली राष्ट्र भी व्यापार-व्यवसाय के क्षेत्रों में जापान को और आगे न बढ़ने देने के विचार से ग्रस्त दिखायी देता है। यदि हम जापान पर एक नजर डालें तो पायेंगे कि ऐसे कई संकेत हैं, जिनके जरिए जापान के विकास का जायजा लिया जा सकता है। जिनके आधार पर तथ्यों को आंक कर निर्णय लिये जा सकते हैं। वे हैं राष्ट्रीय उत्पाद, घरेलू उत्पाद और प्रति व्यक्ति निर्यात के विकास के आंकड़े। यह विकास बहुत कम समय में किया गया। उसने यह हैसियत अपनी वैज्ञानिक एवं तकनीकी क्षमता बढ़ाकर ही हासिल की है। पिछली सदी के छठे दशक में जापानी विश्व प्रौद्योगिकी क्षेत्र के नेता नहीं थे। हकीकत तो यह है कि उस काल में जापानी माल को घटियापन का पर्याय कहा जाता था। उन दिनों जापान भारी मात्रा में प्रौद्योगिकियों का आयात करता था। लेकिन तभी जापानी उद्योगों और सरकारी एजेसिंयो ने अपनी मर्जी से यह फैसला किया कि वे अपनी जापानी प्रौद्योगिकी के जन्म व विकास के लिए आयातित प्रौद्योगिकी पर खर्च की गयी रकम से चार गुना ज्यादा राशि अपनी मूल जापानी प्रौद्योगिकी के विकास पर खर्च करेंगे। यह फैसला जापान की खुद की प्रौद्योगिकियों के विकास के लिए और अपने जापानी उद्योगों की मूल आन्तरिक समर्थता को विकसित करने के उद्देश्य से किया गया था। अगले दो दशकों के दौरान, जापान विश्व की एक आर्थिक शक्ति बन गया और इसका पूरा श्रेय जाता है उसकी अपनी प्रौद्योगिकियों के निर्यात व्यापार से अर्जित विशाल धनराशि को। यहाॅ यह बताना जरूरी है कि जापान के पास उसके अपने प्राकृतिक साधनों के नाम पर अधिकांश क्षेत्रों में करीब-करीब कुछ भी नहीं है।

आयात-निर्यात के बारे में जापानियों की युद्ध-नीति आयात के बदले निर्यात वाली नहंी है। जब वे किसी देश से कुछ आयात करते हैं तो जरूरी नहीं कि वे उसी प्रकार निर्यात भी करें, क्योंकि हर परिकल्पना के साथ-साथ कुछ न कुछ वास्तविकता भी होनी आवश्यक है। उनका दीर्घकालिक ध्येय था- प्रौद्योगिकी का वास्तविक निर्यातक बन जाना। यह महसूस करते हुए कि 1960 में वे अनेक क्षेत्रों में काफी पीछे थे और 1970 में उनकी युद्ध नीति कम विकसित देशों को निर्यात करने की थी, वे अपने से अधिक विकसित देशों से आयात करते थे और उनसे आयातित माल को इस्तेमाल करते थे, उसमें सुधार करते रहते थे और अपने से अधिक विकसित देशों को निर्यात करते थे। जहाॅ तक प्रौद्योगिकियों का सवाल है, जापानी उन देशों को निर्यात करते रहे, जो उनसे अपेक्षाकृत कम विकसित थे। और ऐसा करते-करते वे पूर्ण रूप से प्रौद्योगिकियों के निर्यातक बन गये। मगर अब जापान के लिए इतना ही काफी नहीं है। यह राष्ट्र सदा अपने लक्ष्य को और ज्यादा ऊॅचा बनाता रहता है। अपनी इस हैसियत को जापान ने कैसे हासिल किया? ऐसा रातोंरात संभव नहीं हुआ। ऐसी हैसियत हासिल करने में उसके उद्योगों, प्रयोगशालाओं, सरकार, वित्तीय संस्थाओं, उपभोक्ताओं, प्रयोगकर्ताओं के विशाल दलों को दो दशक लग गए। उन सबने विकसित देश होने के अपने सपने से कभी अपना लगाव नहीं छोड़ा और तब तक घोर श्रम करते रहे जब तक उनका यह सपना साकार नहीं हो गया।

इस सपने को असलियत में बदलने के लिए राजनीतिज्ञों, प्रशासकों, राजदूतों, व्यापारियों, वैज्ञानिकों, इंजीनियरों, तकनीशियनों, बैंकरों, आम लोगों ने जो जुदा-जुदा व्यवसाय से जुड़े थे, भरपूर सहयोग दिया। कोई भी जापानी एजेंसी या उद्योग किसी प्रौद्योगिकी का आयात करके, आराम से बैठ नहीं जाता था। वे उस प्रौद्योगिकी के काम को बारीकी से जानने और उसमें ज्यादा से ज्यादा सुधार करने में लग जाते थे। इस प्रक्रिया के दौरान वे आयातित प्रौद्योगिकी के मूल्य से चार गुना समय अपनी खुद की प्र्रौद्योगिकियों के विकास में लगाते। कारण वे जानते थे कि विकसित जापान तभी जन्म लेगा, जब वह प्रौद्योगिकियों के मामले में सक्षम होकर अपने डिजाइनों का विकास करने लगेगा। उसकी इस लगन और मेहनत ने जो नतीजे हासिल किये, वे आज जग जाहिर हैं। दुनिया में अमेरिका के बाद वही सबसे अधिक कच्चा लोहा, इस्पात, प्लास्टिक, सिंथेटिक रेजिन, रसायनिक, रेशे, कृत्रिम रबड़, बिजली, सीमेंट, मोटर कारें, मोटर साइकिलें, रेफ्रिजरेटर, वाशिंग मशीनें, और सिने तथा फोटो उपकरण तैयार करता है। जापान को पोत निर्माण तथा टेलीविजन सेटों के उत्पादन में प्रथम स्थान प्राप्त है। जापानी माल अनेक देशों में बिकते हैं।

नरेन्द्र मोदी और जापानी प्रधानमंत्री शिंजो एबी दोनों ही राष्ट्रवादी नेता के रूप में जाने जाते हैं। दोनों ही एशिया में चीन की बढ़ती सामरिक रणनीतियों से चिंतित है। इसलिए विश्लेषकों की राय में उनकी मंशा एशिया में चीन के बढ़ते दबदबे को रोकने की है। वे एशियाई केन्द्र बिन्दु में चीन को नहीं आने देना चाहते। इसलिए दोनों ही अपनी पिछड़ रही अर्थव्यवस्थाओं का रफ्तार देने के साथ चीन को धेरने की कोशिशो में भी हैं। चीन पहले ही भारत को घेरने की कोशिशों के तहत क्वादर (पाकिस्तान) से लेकर हम्बनटोटा (श्रीलंका) तक अपने पतन विकसित कर रहा है। दक्षिण चीन सागर में भारतीय गतिविधियों का भी रोकने की कोशिशों में लगा है और पूर्वी चीन सागर में एक द्वीप पर कब्जे को लेकर जापान के साथ उसका ऐतिहासिक झगड़ा है। इन परिस्थितियों में भारत और जापान ने प्रशान्त महासागर में संयुक्त नौसेना अभ्यास किया है। इस साल की शुरूआत में भारत, जापान और अमेरिकी युद्धपोतों ने भी एक ऐसा अभ्यास किया था इसलिए मोदी की यात्रा के दौरान जापान के साथ मजबूत रक्षा सहयोग पर सहमति बनने की संभावना हैं।

निरंकार सिंह

 

निरंकार सिंह

लेखक हिन्दी विश्वकोष के सहायक संपादक रह चुके हैं। आज कल स्वतंत्र रूप से लेखन कार्य कर रहे हैं। ए-13, विधायक निवास 6 पार्क रोड कालोनी, लखनऊ-226001 मो. 09451910615

One thought on “जापानियों से सीखें हम

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छा लेख, निरंकार जी. भारत जापान से बहुत कुछ सीख सकता है. हमें उनसे निकटतम सम्बन्ध बनाने चाहिए, तभी चीन पर भी लगाम लगेगी.

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