लघुकथा

लघुकथा : दान – पुण्य

‘कमला तुम अब दस दिन बाद ही काम पर आना, हम लोग तीर्थ यात्रा के लिए जा रहे है |’  

मालकिन का फरमान सुनकर कमला का कलेजा धक से कांपा, उसने तो सोचा था आज जाते ही पगार माँग लुंगी | घर में अन्न का एक दाना नही , धान लेकर जाउंगी | पति को तो अपनी दारु पिने से ही फुर्सत नही है | देशी ठर्रा पी कर धुत पड़ा रहता है | कमला ने ही घर से निकल कर चार पैसे कमाने शुरू किये तो दो वक्त की रोटी का जुगाड़ हुआ है | कमला ने काम समाप्त करके मालकिन से कहा ” ठीक है दस दिन बाद आजाउंगी ,पर इस महीने की पगार तो देते जाओ |’

मालिकन गुस्से से बोली ” अभी तुम्हे पगार कैसे दे सकती हूँ तीर्थ स्थल पर गरीबो को दान करना पुण्य करना है, बहुत पैसा खर्च होगा |’

कमला ने कहा ” मुझ गरीब को मेरी ही मेहनत का पैसा तो आप दे नही रही हो, क्या खाक दान पुण्य करेंगी आप ?”

मालकिन को सोचने पर मजबूर कर कमला चली गयी |

शान्ति पुरोहित

निज आनंद के लिए लिखती हूँ जो भी शब्द गढ़ लेती हूँ कागज पर उतार कर आपके समक्ष रख देती हूँ

3 thoughts on “लघुकथा : दान – पुण्य

  • गुंजन अग्रवाल

    achhi rachna di

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    शान्ति बहन , मज़ा आ गिया ऐसा जवाब सुन कर . यह अन्धविश्वासी लोग पता नहीं किया समझते हैं कि तीरथ आस्थानों पर करम काण्ड करके और उस पर पैसे खर्च करके किया मिलेगा जब कि वोह नौकर जो उनके घर का काम करता है उस की मिहनत की कमाई भी दे नहीं सकते . इस को कहते हैं दीये के नीचे अँधेरा .

  • विजय कुमार सिंघल

    हा…हा…हा… बढ़िया लघुकथा, बहिन जी.

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