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गांवों को विकास की धुरी बनाने के पक्षधर थे पं दीनदयाल

एकात्मक मानववाद के प्रणेता पंडित दीनदयाल महान दार्शनिक, विचारक, इतिहासकार और राजनीतिक भी थे। उन्होंने देश के विकास के लिए गांवों को विकास की धुरी मानते हुए देशी माडल तैयार करने की जोरदार वकालत की थी। उनमें गजब की सांगठनिक क्षमता थी जिसकी बदौलत उन्होंने राजनीतिक क्षेत्र में अलग पहचान कायम की। आज जब केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई वाली राष्ट्रवादी विचारधारा की सरकार है ऐसे में लोगों के मन में यह सवाल उठना लाजिमी है कि आगे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पंडित दीनदयाल उपाध्याय के सपनों को साकार करने के लिए कौन.कौन सी योजनाएं बनाएंगे।

deen dayal

दीनदयाल का जन्म 25 सितंबर 1916 को उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के नगला चंद्रभान गांव में हुआ। उनके पिता का नाम भगवती प्रसाद था जो अच्छे ज्योतिषी के रूप में विख्यात थे। माता का नाम रामप्यारी था। अल्पायु में ही उनके पिता और माता का निधन हो गया। कालांतर में उनकी परवरिस मामा की देखरेख में हुई। उनकी शुरुआती पढ़ाई मामा.मामी की देखरेख में हुई। हाई स्कूल की परीक्षा देने के लिए उन्होंने सीकर के हाईस्कूल में प्रवेश लिया। वे बोर्ड की परीक्षा मेें प्रथम स्थान प्राप्त किया। इस पर सीकर के महाराजा कल्याण सिंह ने उनके लिए दस रुपये ंमासिक बतौर वजीफा और 250 रुपये पुस्तकीय सहायता के रुप में देने की घोषणा की। साथ गोल्ड मेडल से भी उन्हें नवाजा। दीनदयाल ने जीडी बिड़ला कालेज पिलानी से सन 1937 में इंटरमीडिएट की परीक्षा अच्छे अंकों के साथ पास की। बाद में सन 1939 से सनातन धर्म कालेज कानपुर से प्रथम श्रेणी में उन्होंने स्नातक की परीक्षा पास की।

बाद में अंगे्रजी साहित्य में मास्टर डिग्री हासिल करने के लिए सेंट जान्स कालेज आगरा में उन्होंने प्रवेश लिया। वहां उन्होंने प्रथम वर्ष की परीक्षा में प्रथम श्रेणी के अंक हासिल किए लेकिन पारिवारिक कारणों से वे दूसरे वर्ष की परीक्षा में शामिल नहीं हो पाए। घरेलू कारणों ने उन्हें प्राविंशियल सेवा की परीक्षा देने को विवश किया। वे परीक्षा में शरीक हुए, पास हुए लेकिन नौकरी ज्वाइन नहंी की। वे आम आदमी के लिए उनके बीच रहकर ही कुछ ठोस काम करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने बीटी करने की मंशा से प्रयाग की ओर प्रस्थान किया। स्नातक की पढ़ाई के समय कानपुर प्रवास के दौरान ही सन 1937 में वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डा. केबी हेडगेवार के संपर्क में आए। उनसे मिलने के बाद वे बड़े प्रभावित हुए। इसी के बाद उन्होंने सन 1942 से संघ की विचारधारा के प्रसार के लिए आजीवन काम करने का संकल्प ले लिया और उसका निर्वहन किया। यद्यपि उन्होंने बीटी की परीक्षा पास कर ली थी लेकिन नौकरी नहीं ज्वाइन की।

आदर्शवादिता उनमें कूट.कूटकर भरी थी। साथ ही वे बहुत अच्छे संगठक भी थे। इसका असर यह रहा कि वे संघ के काम को फैलाने में सफल रहे। वे अच्छे वक्ता, लेखक और पत्रकार भी थे। उन्होंने सन 1940 से उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनउ से राष्ट्रधर्म नामक मासिक पत्रिका निकाली जो काफी लोकप्रिय हुई। इस पत्रिका के माध्यम से उन्होंने राष्ट्रवादी विचारधारा का बखूबी प्रचार किया। कालांतर में उन्होंने साप्ताहिक पांचजन्य और दैनिक स्वदेश का प्रकाशन शुरू कराया जो आज भी राष्ट्रवादी विचारधारा के प्रचार और प्रसार में जुटे। जब डा.श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने जब राजनीतिक दल भारतीय जनसंघ की स्थापना की तो दीनदयाल उपाध्याय महामंत्री बनाए गए। सन 1953 में डा. मुखर्जी के निधन के बाद उपाध्याय जनसंघ के सर्वेसर्वा यानी अगुवा बने। उन्होंने अपनी सांगठनिक क्षमता से जनसंघ के जनाधार में निरंतर विस्तार किया। उन्होंने जनसंघ के लिए ऐसे कार्यकर्ताओं की जमात तैयार की जो राष्ट्रवाद की विचारधारा को विस्तार देने में सक्षम साबित हुए।

वे यह मानते थे कि जब तक देश के सभी युवाओं को उत्पादन से न जोड़ा जाएगा तब तक देश की अर्थव्यवस्था को उन्नत नहीं बनाया जा सकता। वे किसानों के चेहरों पर रौनक लाने के लिए उचित नीतियां बनाने और उन्हें लागू करने के हिमायती थे। किसानों और नौजवानों को कंेद्र में रखते हुए ही भारतीय जनसंघ ने सन 1967 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान यह नारा दिया…हर हाथ को काम और हाथ को पानी।

वे भारत के विकास के लिए देशी माडल विकसित किए जाने पर जोर देते थे। उनका मानना था कि पश्चिमी देशों की अंधी नकल कर अपनाए गए विकास के माडल सही मायने में देश का विकास नहीं कर सकते। पश्चिमी देशों का माडल भारतीय समाज की समस्याएं निपटाएगा नहीं वरन और भी जटिलताएं पैदा करेगा। गरीब और गरीब तथा अमीर और अमीर होगा। भारत के लिए विकास का माडल तय करते वक्त हमें अपने देश की सीमाओं और विशेषताओं की पहचान करनी होगी। वे भारतीय अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भर बनाने और सरकार की नीतियों और शक्तियों को विकेंद्रीकृत करने के पक्षधर थे।

इस महामानव को 11 फरवरी 1968 को मुगलसराय रेलवे स्टेशन के यार्ड में खड़ी़ एक रेलगाड़ी में रहस्यमय परिस्थितियों में मृत पाया गया।

सन 1984 के बाद पहली दफा कोई स्पष्ट बहुमत की सरकार केंद्र में गठित हुई है और साथ ही साथ यह सरकार उसी विचारधारा की समर्थक है जिसका प्रचार पंडित दीनदयाल उपाध्याय करते रहे। ऐसे में लोगों के मन में यह सवाल उठ रहे हैं कि क्या केंद्र की मौजूदा सरकार उनके सपनों को ध्यान में रखते हुए कोई ठोस योजना बनाएगी। जनसंचार और पत्रकारिता संस्थान के विभागाध्यक्ष डा.सीपी पैन्यूली कहते हैं कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय के एकात्मक मानववाद के सिद्धांत पर आधारित योजनाओं के सिरे चढ़ने की संभावनाएं बलवती हुई हैं क्योंकि अब केंद्र सरकार में वे ही लोग हैं जो इस विचारधारा का प्रसार करते रहे।

उमेश शुक्ल

उमेश शुक्ल पिछले 34 साल से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं। वे अमर उजाला, डीएलए और हरिभूूमि हिंदी दैनिक में भी अहम पदों पर काम कर चुके हैं। वर्तमान में बुंदेलखंड विश्वविद्यालय,झांसी के जनसंचार एवं पत्रकारिता संस्थान में बतौर शिक्षक कार्यरत हैं। वे नियमित रूप से ब्लाग लेखन का काम भी करते हैं।

One thought on “गांवों को विकास की धुरी बनाने के पक्षधर थे पं दीनदयाल

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छा लेख. प. दीन दयाल जी की आर्थिक विचारधारा हमारी सांस्कृतिक और आर्थिक परम्पराओं के अनुकूल थी. यदि उसका पालन किया जाता तो हमारा देश बहुत विकसित होता.

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