गीतिका/ग़ज़ल

मुझसे ज़रा बचकर, निकलने लगे है लोग

मुझसे ज़रा बचकर, निकलने लगे है लोग

कुछ बात होगी मुझमें, जलने लगे है लोग

 

क्या मैं भी इस शहर में मशहूर हो रहा हूँ

या यूँ ही..रंग अपना बदलने लगे हैं लोग

 

इल्म है उन्हें भी मुझे रोकना है मुशकिल

या यूँ ही…. साथ मेरे चलने लगे हैं लोग

 

नाकामियों पे शक़ है या हुनर पर भरोसा

या यूँ ही.. मेरे साँचे में ढलने लगे हैं लोग

 

क्या साथ तेरे होने से गमज़दा है दुनियाँ

या यूँ ही …हाँथ अपने मलने लगे है लोग

 

___________अभिवृत | कर्णावती

2 thoughts on “मुझसे ज़रा बचकर, निकलने लगे है लोग

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी ग़ज़ल, अभिवृत जी.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत अछे .

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