कविता

~ गुस्से से गुस्से की तकरार हो गयी ~

गुस्से से गुस्से की हो गयी जब तकरार
जिह्वा भी गुस्से की भेंट चढ़ खाए खार
द्वेष में बोले एक तो दूजा बोले चार
बेचारी जिव्हा हो गई शर्मसार
दो कटु वक्ता की आपस में रार हो गयी
गुस्से से गुस्से की तकरार हो गयी ……….

बकने लगे एक दूजे को
उद्धत है अब चढ़ बैठने को
गुब्बार निकालते-निकालते
अचानक शुरू हो गयी मारम-मार
एक चलाए हाथ दूजा करे पैर से वार
देखते-देखते कुटमकाट हो गयी |
गुस्से से गुस्से की तकरार हो गयी ……….

एक ने फोड़ा सर दूजे ने तोड़ा हाथ
आपस में काटम काट हो गयी
एक ने उठाई लाठी दूजा चलाये पत्थर
देखते ही नदियाँ खून की बह गयी |
दो लड़ाकुओ में लड़ाई हो गयी
गुस्से से गुस्से की तकरार हो गयी ……..

जब तक आपस में लड़ थक चूर ना हुए
धूल धरती का चाटने को मजबूर ना हुए
तब तक एक दूजे के खून के रहे प्यासे
भीड़ खड़ी देखती रही सारे तमाशे
मानवता यहाँ शर्मसार हो गयी |
गुस्से से गुस्से की तकरार हो गयी ……..

गुस्से से तमतमा खो गयी सहनशक्ति
आपस में खूब हुई रोष में गुथमगुत्थी
द्वेष ने न जाने कब उठाया सर
छोटी सी बात का बन गया बतंगण
क्रोध ने तूफान कर दिया खड़ा
आपस में ना जाने क्यों लड़ा
नासमझी में रार हो गयी
गुस्से से गुस्से की तकरार हो गयी ……

आया होश तो शर्म से हो गयी नजरे नीची
अपनी करनी पर हुआ पश्चाताप तब
गाली गलौज हुई ख़त्म कब हाथापाई पर
गुस्से पर गुस्सा प्रभावी ना जाने हुआ कब
गुस्से से गुस्से की तकरार जब हुई
आपस में असहमति ना जाने कब हुई
गुस्से से गुस्से की टकराव हुई
तकरार हुई ….सविता मिश्रा

*सविता मिश्रा

श्रीमती हीरा देवी और पिता श्री शेषमणि तिवारी की चार बेटो में अकेली बिटिया हैं हम | पिता की पुलिस की नौकरी के कारन बंजारों की तरह भटकना पड़ा | अंत में इलाहाबाद में स्थायी निवास बना | अब वर्तमान में आगरा में अपना पड़ाव हैं क्योकि पति देवेन्द्र नाथ मिश्र भी उसी विभाग से सम्बध्द हैं | हम साधारण गृहणी हैं जो मन में भाव घुमड़ते है उन्हें कलम बद्द्ध कर लेते है| क्योकि वह विचार जब तक बोले, लिखे ना दिमाग में उथलपुथल मचाते रहते हैं | बस कह लीजिये लिखना हमारा शौक है| जहाँ तक याद है कक्षा ६-७ से लिखना आरम्भ हुआ ...पर शादी के बाद पति के कहने पर सारे ढूढ कर एक डायरी में लिखे | बीच में दस साल लगभग लिखना छोड़ भी दिए थे क्योकि बच्चे और पति में ही समय खो सा गया था | पहली कविता पति जहाँ नौकरी करते थे वहीं की पत्रिका में छपी| छपने पर लगा सच में कलम चलती है तो थोड़ा और लिखने के प्रति सचेत हो गये थे| दूबारा लेखनी पकड़ने में सबसे बड़ा योगदान फेसबुक का हैं| फिर यहाँ कई पत्रिका -बेब पत्रिका अंजुम, करुणावती, युवा सुघोष, इण्डिया हेल्पलाइन, मनमीत, रचनाकार और अवधि समाचार में छपा....|

6 thoughts on “~ गुस्से से गुस्से की तकरार हो गयी ~

  • मनजीत कौर

    बहुत सुन्दर कविता , सविता जी | क्रोध वाक्य ही विनाशकारी होता है यह इंसान को शैतान बना देता है |

    • सविता मिश्रा

      शुक्रिया आपका दिल से

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत खूब ! अधिकांश लड़ाई झगडे निरर्थक क्रोध और अहंकार के कारण होते हैं.

    • सविता मिश्रा

      बहुत बहुत आभार भैया ..सही कहें आप

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    अच्छी कविता , यह कुछ लोगों की फितरत ही है कि छोटी सी बात को बतंगड़ बना कर लड़ाई शुरू कर देते हैं , और होश तब आता है जब दोनों का नुक्सान हो जाता है .

    • सविता मिश्रा

      आभार दिल से भैया आपका 🙂

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