लघुकथा

ख़ुशी

‘सूरज,की पहली किरण जैसे ही धरती पर अपनी लालिमा बिछाती है…नीरू रोज सुबह सूरज निकलने से पहले ही उठ जाती थी…और सूरज का स्वागत करती थी | ये ही वो वक़्त था जिसे वो अपने लिये जीती थी |जैसे ही सूरज की किरण धरती पर आती है ,वो उन्हें अपनी बांहों में समेट लेती और दस मिनिट तक तक आँखे बंद करके खुद मे खो जाती है |उसी वक़्त घर मे से आवाजे आनी शुरू  हो जाती है | ‘मम्मी जल्दी क्यों नहीं उठाया, मुझे आज जल्दी कालेज जाना था’ नीरू के बेटे जीत की आवाज आई अभी वो इसका कुछ जवाब दे, तभी नीरू की तेरह की साल की बेटी पिंकी कहती है, “मम्मी आज मेरे टिफिन मे सेंडविच बना के  डालना मेरे फ्रेंड्स को बहुत पसंद है |”

जैसे ही ये दोनों काम नीरू ख़तम करती है,तभी ससुर जी की आवाज आती है ’नीरू चाय मुझे बाहर आँगन मे ही दे जाना आज यही पर बैठ कर चाय पीने का मन कर रहा है|’ तभी सासुजी की आवाज नीरू के कानो मे आती है , “नीरू बेटा मुझे चाय कमरे मे ही दे जाना बाहर थोड़ी ठण्ड है |” एक को इधर एक को उधर, तभी उसे याद आया की आज ‘ नीरव की शर्ट भी इस्त्री करनी है, नहीं तो सुबह–सुबह डांट खानी पड़ जाएगी | वो दौड़ कर इस्त्री करने चली गयी |

फिर उसने नीरव को उठाया……नीरव चाय पीता है, तब रोज दस मिनिट उनके पास बैठना पड़ता है | ये दस मिनिट वो नीरव के लिए मुश्किल से निकालती , अपने आप से ही सवाल करती है कि वो इतने से वक़्त मे क्या काम लेगी | नीरव उसे कितना प्यार करता है पर वो दस मिनिट भी नहीं निकाल पाती | नीरव को नीरू का दस मिनिट उसके पास बैठना समझ ही नहीं आता, क्योंकि उस वक़्त नीरू का ध्यान उसका टिफिन बनाने मे लगा रहता था |

सबके चले जाने के बाद वो खुद की चाय ले कर बैठी ही थी की ससुर जी की आवाज आई ‘नीरू मेरा तौलिया कहाँ है , वो चाय रख कर तौलिया देने गयी. वापस आई तब तक चाय ठंडी हो गयी |वैसी ही चाय को पीकर वो चल दी वापस बाकी के काम निपटाने | शाम कब हो जाती थी उसे पता नहीं चलता था |अब वापस वो ही शाम का खाना बानाना वो ही शिकायते, ये क्यों बनाया , वो क्यों नहीं बनाया ,क्या करती हो सारा दिन |रोज रोज ये ही सब सुन कर अब नीरू तंग आगयी थी |

आज उसकी शादी की शालगिरह है, पर घर मे किसी को भी याद नहीं, सब अपने अपने काम मे जुटे थे और अपनी अपनी जरुरत की चीज मांगने मे लगे थे |यहाँ तक कि खुद नीरव को भी अपने शादी की शालगिरह याद नहीं थी | सब चले गये तो नीरू की आँखों मे आंसू आ गये | अपनी सासुजी के पास बैठ कर रोई और उन्हें कहा कि शायद माँ अपने बेटे की शादी इसलिए करती है कि उसे आगे जाकर कोई काम न करना पड़े. राधा देवी उसकी सासुजी सुनकर कुछ नहीं बोली ,बस उठ कर अपने कमरे मे चली गयी |

शान्ति पुरोहित

निज आनंद के लिए लिखती हूँ जो भी शब्द गढ़ लेती हूँ कागज पर उतार कर आपके समक्ष रख देती हूँ

3 thoughts on “ख़ुशी

  • सविता मिश्रा

    बहुत सुन्दर कहानी दी _/_

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    मेरा विचार है जिंदगी में एक रूटीन सा बन जाता है और हर कोई अपने अपने काम में विअस्त हो जाता है . हम पती पत्नी एक दुसरे के विचारों और उनकी रुचिओं का धियान रखते हैं . लेकिन कभी हम नहीं भी एक दुसरे की हैल्प कर पाते लेकिन कभी किसी के मन में ऐसा विचार नहीं आया कि उस को ज़िआदा काम करना पड़ता है . हाँ एक बात जरुर है कि कभी किसी ग्रैह्नी को नौकरों की तरह रखा जाए , यह सरासर अनिआए है .

  • विजय कुमार सिंघल

    यह तो घर घर की कहानी है.

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