कविता

~कृपा बरसा जाना~

 

धर्म विरुद्ध कभी ना चले हम
मैया तू सदा मार्गदर्शन करती रहना
मैया हम तो तेरी ही संतान हैं
हम पर सदा अपनी नजर बनाये रखना
माना मानुष तन में रह खुद पर
कभी गर्व कर कभी इठला जाते हैं
तू तो सर्वव्यापी सर्वशक्तिशाली हो मैया
हम नादाँ कमजोर अज्ञानी है मैया
तू बस नादान बालक समझ अपना
हमको क्षमा कर अपना बना लेना
भटक गये जो सत्कर्मो से अपने हम
हमें सच्ची राह अवश्य ही दिखा जाना
मैया तू अपनी कृपा हम सब पर
इस बार अवश्य ही बरसा जाना|

…सविता मिश्रा

जय माता दी ….

http://kavitabhawana2.blogspot.in/2013/10/blog-post_13.html

*सविता मिश्रा

श्रीमती हीरा देवी और पिता श्री शेषमणि तिवारी की चार बेटो में अकेली बिटिया हैं हम | पिता की पुलिस की नौकरी के कारन बंजारों की तरह भटकना पड़ा | अंत में इलाहाबाद में स्थायी निवास बना | अब वर्तमान में आगरा में अपना पड़ाव हैं क्योकि पति देवेन्द्र नाथ मिश्र भी उसी विभाग से सम्बध्द हैं | हम साधारण गृहणी हैं जो मन में भाव घुमड़ते है उन्हें कलम बद्द्ध कर लेते है| क्योकि वह विचार जब तक बोले, लिखे ना दिमाग में उथलपुथल मचाते रहते हैं | बस कह लीजिये लिखना हमारा शौक है| जहाँ तक याद है कक्षा ६-७ से लिखना आरम्भ हुआ ...पर शादी के बाद पति के कहने पर सारे ढूढ कर एक डायरी में लिखे | बीच में दस साल लगभग लिखना छोड़ भी दिए थे क्योकि बच्चे और पति में ही समय खो सा गया था | पहली कविता पति जहाँ नौकरी करते थे वहीं की पत्रिका में छपी| छपने पर लगा सच में कलम चलती है तो थोड़ा और लिखने के प्रति सचेत हो गये थे| दूबारा लेखनी पकड़ने में सबसे बड़ा योगदान फेसबुक का हैं| फिर यहाँ कई पत्रिका -बेब पत्रिका अंजुम, करुणावती, युवा सुघोष, इण्डिया हेल्पलाइन, मनमीत, रचनाकार और अवधि समाचार में छपा....|

2 thoughts on “~कृपा बरसा जाना~

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कविता. जय माता दी !

    • सविता मिश्रा

      शुक्रिया भैया …सादर नमस्ते

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