लघुकथा

शौक

कृष्ण बचपन में पढने के साथ-साथ मूर्तिकला में भी निपुण था | उसके मम्मी-पापा उसके इस शौक को पढाई में बाधा मानते थे | लेकिन जब स्कूल में मूर्तिकला की प्रतियोगिता जो कि जिला स्तर की थी, उसमे कृष्ण ने भाग लिया और उसकी बनाई राधा कृष्ण की मूर्ति ने प्रथम स्थान पाया | स्कूल के हेड मास्टर जी ने उसमे असाधारण प्रतिभा देखी तो जा पहुँचे उसके घर, और बधाई के साथ जिला कलेक्टर के हस्ताक्षर युक्त प्रमाण -पत्र भी दिया | कृष्ण के मम्मी-पापा से ख़ुशी से कुछ भी बोलते नही बना तो हेड मास्टर साहब ने ही चुप्पी तोड़ी ” तुम्हारे होनहार बेटे को राज्य स्तरीय नवदुर्गा मूर्तिकला प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए मैंने इसका नाम भेज दिया है, और ये रोज उसके लिए दो घंटे अभ्यास करेगा, मैंने इसके लिए मूर्तिकला के अध्यापक को नियुक्त कर दिया है | कृष्णा के अथक प्रयास से उसकी स्कूल को राज्य में प्रथम पुरस्कार से नवाजा गया | कालान्तर में यही मूर्ति कला का शौक कृष्ण का भविष्य बन गया |

शान्ति पुरोहित

शान्ति पुरोहित

निज आनंद के लिए लिखती हूँ जो भी शब्द गढ़ लेती हूँ कागज पर उतार कर आपके समक्ष रख देती हूँ

4 thoughts on “शौक

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी लघुकथा. यदि प्रतिभाओं को सही प्रोत्साहन मिले तो सफलता निश्चित है.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    शांति बहन, बहुत दफा कुछ माँ बाप बच्चे की टैलंट को समझते नहीं , बहुत दफा तो कई टीचर भी यह बात नहीं समझ पाते . ऐसी एक सच्ची कहानी मेरे बचपन के दोस्त की है जो जब भी समय मिला मैं लिखूंगा . आप की यह कहानी लोगों को प्रेरत करेगी कि वोह अपने बच्चों को समझने की कोशिश करें .

    • आभारी हूँ गुरमेल भाई साहब आप मेरे लिखे को मान देते हो ….प्रणाम …नमन

Comments are closed.