कविता

हाइकु

1
श्रद्धा व आस
प्रतिमा बने मूर्ति
आन बसे माँ।

2
त्रिदेवी शक्ति
विरिंच भी माने माँ
जग निहाल।

3
तैर ना सकी
बुझी निशा की साँस
उषा की झील।

4
पिस ही गई
माँ दो बेटों के बीच
ठन ही गई।

5
क्रीड़क चवा(चारो ओर से बहने वाली हवा)
ढूंढे गुलों का वन
फैलाने रज।

6
साँझ सबेरे
लोहित नभ-धरा
उबाल मारे।

== नभ और धरा ==

स्त्री-पुरुष प्रतीक हैं
जो रिश्ते के
बचपन और बुढापे में
बहुत गर्मजोशी में रहते हैं
जैसे उबलते रहते हों ….
इसलिए खून की तरह लाल हैं ….
बीच अवस्था में तो
सब बस नून तेल लकड़ी के
जुगाड़ में ही रहते हैं ….
कूल कूल
उबलने की फुर्सत कहाँ
i am right or Wrong ??

7
रफ्फु थे जख्म
यादें खुरच डाले
जलाये चैन।

==

*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ

2 thoughts on “हाइकु

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया.

    • विभा रानी श्रीवास्तव

      आभार

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