कविता

~उद्धार~

रावण धू धू कर जल रहे थे
हम पैसों की बर्बादी देख दुखी हो रहे थे
अगल-बगल देखे रावण ही बिखरे थे
सब रावण के ज्वाला से ही निखरे थे
उनकी शक्ल भयावह दिख रही थी
आँखों में भी मक्कारी तैर रही थी
हमने झट प्रभु को याद किया
हे राम तुमने सतयुगी रावण का तो उद्धार किया
आज फिर कलयुग में सख्त जरुरत हैं आपकी
इन सभी पापियो का कर दो उद्धार
जो पापी बिखरे हैं हमारे ही आस-पास
आंख बंद कर कर ही रहे थे विनती
एक चिंगारी आ पड़ी मुझ पर ही जब चिटकी
हम ही जलने लगे आग झट पकड़ ली
बच्चे रोने बिलखने लगे
पतिदेव हम पर ही चीखने लगे
जब चिंगारी चिटकी तो क्या तुम सो रही थी
ऐसे तैसे राम जाने कैसे आग बुझी
उस आग से मैं जिन्दा बची थोड़ी सी ही बस सुलझी
प्रभु को फिर याद किया और पूछा
तूने मेरे से साथ ऐसा क्यों किया
प्रभु मंद मंद मुस्काए फिर बोले
रे मुरख तूने ही तो कहा था
आस-पास बिखरे कलयुगी रावण का उद्धार करो
तो सबसे पास तो तू ही थी
तुझसे ही शुरुआत किया
अब बोल क्या चाहती हैं
उद्धार करू या छोडू
हम स्तब्ध हो अपने ही गिरेबान में
झाँक बहुत ही शर्मिंदा थे
प्रभु अब क्षमा करो छोड़ ही दो
हम अज्ञानी थे
अब से नहीं देखेगें दुसरे के दोष
अपने ही पहले ढूढ समाप्त करेगें
प्रभु भी बहुत दयालु थे
झट मान गये
आगे से हम से यह मत कहना
साथ ही यह भी समझा गये
तब से जैसा चल रहा हैं चलने दे रहे हैं
रावण को जलता देख हम भी खुश हो रहे हैं| सविता मिश्रा

आप सभी को दशहरा की हार्दिक शुभ कामनाये

*सविता मिश्रा

श्रीमती हीरा देवी और पिता श्री शेषमणि तिवारी की चार बेटो में अकेली बिटिया हैं हम | पिता की पुलिस की नौकरी के कारन बंजारों की तरह भटकना पड़ा | अंत में इलाहाबाद में स्थायी निवास बना | अब वर्तमान में आगरा में अपना पड़ाव हैं क्योकि पति देवेन्द्र नाथ मिश्र भी उसी विभाग से सम्बध्द हैं | हम साधारण गृहणी हैं जो मन में भाव घुमड़ते है उन्हें कलम बद्द्ध कर लेते है| क्योकि वह विचार जब तक बोले, लिखे ना दिमाग में उथलपुथल मचाते रहते हैं | बस कह लीजिये लिखना हमारा शौक है| जहाँ तक याद है कक्षा ६-७ से लिखना आरम्भ हुआ ...पर शादी के बाद पति के कहने पर सारे ढूढ कर एक डायरी में लिखे | बीच में दस साल लगभग लिखना छोड़ भी दिए थे क्योकि बच्चे और पति में ही समय खो सा गया था | पहली कविता पति जहाँ नौकरी करते थे वहीं की पत्रिका में छपी| छपने पर लगा सच में कलम चलती है तो थोड़ा और लिखने के प्रति सचेत हो गये थे| दूबारा लेखनी पकड़ने में सबसे बड़ा योगदान फेसबुक का हैं| फिर यहाँ कई पत्रिका -बेब पत्रिका अंजुम, करुणावती, युवा सुघोष, इण्डिया हेल्पलाइन, मनमीत, रचनाकार और अवधि समाचार में छपा....|

One thought on “~उद्धार~

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कविता, बहिन जी. अन्दर के रावण को मारे बिना रावन के पुतले जलाने का कोई अर्थ नहीं है.

Comments are closed.