लघुकथा

बेटी तो होनी चाहिए….

बेटी तो होनी चाहिए  …….

चलो माँ मै तुम्हे लेने आया हूँ, बरसों बाद उसे किसी ने माँ कहा| विश्वास ही नही हुआ कानो पर ! टूटी डंडी का डोरी से जोड़कर लगाने लायक चश्मा लगा कर देखा तो मदिया था | गोमती देवी को अपनी आँखों पर विश्वास ही नही हुआ| जबसे मदिया के बापू छोडकर गये है ,तबसे लेकर आज तक तो इसे और बहु को डोकरी की याद नहीं आयी तो आज अचानक फर्ज कैसे याद आया| मन ही मन गोमती सोच रही थी कि तब तक मदिया पुरे घर का चक्कर लगा आया बोला ” ज्यादा कुछ मत सोचो मै तुम्हारा बेटा तुम्हे लेने आया हूँ चलने की तैयारी करो पाँच भजे की बस से निकलना है |, ”तैयारी क्या करनी है दो कपड़े दवा का डब्बा डालना है बस|, माँ ने कहा| मदिया पास में रह रहे लोगो से मिलने चला गया | गोमती के दिमाग में विचारो की आँधी चलने लगी कि हो न हो कोई तो बात है ऐसे ही तो मुझे लेने मदिया कभी नही आया |

बहू ने सास का आज बरसो  स्वागत किया, बहु का सास के प्रति मान-सम्मान ज्यादा दिनों तक नही टिका | अभी माँ को बेटे के पास आये दो माह ही गुजरे थे कि एक दिन उसने बहु- बेटे को बात करते सुना कि माँ के घर का सारा सामान तो सारा कल आ जायेगा और माँ के घर का सौदा भी तय हो गया है पुरे तीस लाख में बिकेगा घर ,आपनी तो चाँदी हो गयी ! पर हाँ माँ को कानो कान खबर ना होने पाए | कल पुरे पाँच लाख तो एडवांस मिल जायेंगे बाकी के कागजी कार्यवाही पूरी होने के बाद मिल जायेंगे | ये सब सुनकर गोमती गिरते-गिरते बची| उस दिन ना दिन में ना रात में रोटी का एक कौर हलक से नीचे नही गया | गोमती उदास रहने लगी | कहीं से बेटियों को ये खबर मिली कि माँ के जिन्दा रहते ही भाई ने घर का सौदा कर लिया | दोनों बेटियों ने हिम्मत का परिचय देते हुए माँ को भाई भाभी की अनुपस्तिथी में भाई के घर से वापस माँ के घर ले कर आयी | अपनी देख रेख में माँ के लिए सब खाने पीने का इंतजाम किया | मकान खरीदने वाले लोग जब मकान देखने आये तो माँ ने कहा ”अभी मै खुद जिन्दा हूँ ये घर मेरा है और मै इस घर में रहती हूँ | वो लोग तो बचारे अपना पैसा फंसते हुए जान मदिया के पास पहुँच गये | मदिया अब बहुत परेशान हुआ पर करे तो क्या करे उल्टा फंस गया वो तो अब | इधर माँ अपनी बेटियों के कारण आज अपने घर में चैन की साँस ले रही है| लेकिन जब भाई -भाभी को वापस आने पर ये सब पता चला तो तिलमिलाकर रह गया | पर माँ की रक्षा के लिए बहनों का दुर्गा रूप देख कर कुछ बोलते नही बना अपनी किस्मत को कोसता हुआ चुप बैठ गया | माँ बहुत खुश है और बातो ही बातो में बेटी से कहा ‘’बेटा तो हो तो ठीक है पर माँ के बेटी जरुर होनी चाहिए |

शान्ति पुरोहित

 

शान्ति पुरोहित

निज आनंद के लिए लिखती हूँ जो भी शब्द गढ़ लेती हूँ कागज पर उतार कर आपके समक्ष रख देती हूँ

2 thoughts on “बेटी तो होनी चाहिए….

  • विजय कुमार सिंघल

    उत्तम लघुकथा.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    शान्ति बहन , बहुत अच्छी लघु कथा है . आज कल तो बस खून पानी हो चला है . फिर भी एक बात है कि बेतीआं तो होनी ही चाहिए . इस में एक बात और भी आप ने बताई है कि अगर कोई भी बेटा पहले तो माँ बाप की परवाह नहीं करता , फिर अचानक उन के विवहार में अच्छा लगने लगे तो समझो कुछ गड़बड़ है . हुशिआर हो जाना चाहिए .

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