कविता

दर्पण”

दर्पण”

तुम स्निग्ध चाँदनी की अंतिम किरण हो
शीतल भोर की पहली सुनहरी किरण हो

मेरे इंतज़ार में छाँव सी ठहरी रहती हो
मेरे मन के धूप का इंद्रधनुषी चित्रण हो

उन्मत लहरों सा आती जाती रहती हो
मेरे सपनों के तट में करती विचरण हो

मेरी तन्हाई जिसका करती अनुसरण है
रेत पर वो पद चिन्ह छोड़ जाती हो

सिर्फ़ तुम ही मेरी सच्चाई से अवगत हो
जिसके सम्मुख विदेह हूँ तुम वो दर्पण हो

मैं खींचा चला जा रहा हूँ जिसके तीव्र सम्मोहन में
सितारो के आभूषणों से अलंकृत तुम वो आकर्षण हो

किशोर कुमार खोरेंद्र

किशोर कुमार खोरेंद्र

परिचय - किशोर कुमार खोरेन्द्र जन्म तारीख -०७-१०-१९५४ शिक्षा - बी ए व्यवसाय - भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत एक अधिकारी रूचि- भ्रमण करना ,दोस्त बनाना , काव्य लेखन उपलब्धियाँ - बालार्क नामक कविता संग्रह का सह संपादन और विभिन्न काव्य संकलन की पुस्तकों में कविताओं को शामिल किया गया है add - t-58 sect- 01 extn awanti vihar RAIPUR ,C.G.