कैसे-कैसे रूप, हमें दिखाती है ज़िंदगी ,
कभी छाव कभी धूप, बन जाती है ज़िंदगी |
देती है कभी घाव ऐसा, जो भर पाए न उम्र भर ,
और मरहम कभी घाव पे, लगाती है ज़िंदगी |
खुशियों से कभी, दामन भर दे इंसान का ,
और कभी खून के, आंसू रुलाती है ज़िंदगी |
सच्चाई की राह, बहुत कठिन है मेरे दोस्त ,
कांटों की नोक पे, चलवा के आज़माती है ज़िंदगी |
मुश्किलों का दौर, जब इंसान पे आये ,
नंगे पांव कड़कती धूप में चलवाती है ज़िंदगी |
समय कभी एक सा, रहता नहीं इंसान पे ,
कभी हमें, हंसाती और कभी रुलाती है ज़िंदगी |
जब तक समझ पाएं, ज़िंदगी की अहमियत ,
पकड़ में न आने पाये, गुज़र जाती है ज़िंदगी |
9 thoughts on “ज़िंदगी”
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बहुत बढ़िया गुलमोहर सीलालिमा छा गयी इस धरा पर
कविता पसंद करने और अतिसुन्दर कमेंट के लिए तहे दिल से शुक्रिया भाई साहब
हार्दिक आभार
बहुत खुबसुरत …जिन्दगी काहाल कुछैसा ही है
होंसला अफजाई के लिए बहुत शुक्रिया दीदी
मंजीत , बहुत अच्छी कविता है , सौरी कुछ देर हो गई , अभी अभी ही मेरे धियान में आई , मज़ा आ गिया कविता पड़ कर जो जिंदगी की सचाई है .
कविता पसंद करने और होंसला अफजाई के लिए हार्दिक शुक्रिया भाई साहब । आप सॉरी मत कहिए देर सवेर तो चलती ही रहती है , आपको कविता पसंद आना मेरे लिए सौभाग्य की बात हैआप का आशीर्वाद मेरे लिए अनमोल है एक बार फिर से आपका हार्दिक शुक्रिया जी |
बहुत अच्छी कविता, बहिन जी.
बहुत शुक्रिया भाई साहब |